Tuesday 5 July 2016

♥बूँद बूँद आंसू......♥

♥♥♥♥♥♥बूँद बूँद आंसू......♥♥♥♥♥♥♥♥♥
बूँद बूँद आंसू फूटे हैं, और हमारे दिल टूटे हैं। 
जो कहते थे हमको अपना, आज उन्होंने घर लूटे हैं। 
मानवता को तार तार कर, भरा खून से मेरा दामन,
अपना दर्द बताया हमने, तो कहते हैं हम झूठे हैं। 

ये कैसी दुनिया है जिसमें, नहीं दर्द की सुनवाई है। 
दिल रोता है बिलख बिलख कर, आँख हमारी भर आई है। 

पतझड़ है खुशियों पर फिर से, पीड़ा के अंकुर फूटे हैं। 
अपना दर्द बताया हमने, तो कहते हैं हम झूठे हैं....

वो सिक्कों के सौदागर, वो अपनायत क्या जानेंगे। 
जब मन होगा ठुकरा देंगे, जब मन होगा पहचानेंगे। 
हत्यारे हैं मेरे दिल के, रौंद दिया है अरमानों को,
कातिल हैं वो उन्हें पता है, लेकिन फिर भी न मानेंगे। 

दिल में कितना ज़हर भरा है, आज झलक ये दिखलाई है। 
फूल सूख कर बिखरे बिखरे, और कली भी मुरझाई है। 

लोग गिराकर आगे बढ़ते, लेकिन हम पीछे छूटे हैं। 
अपना दर्द बताया हमने, तो कहते हैं हम झूठे हैं....

नफ़रत का बारूद भरा है, पर नफरत से क्या मिलता है। 
फूल भी देखो सौंधी सौंधी सी, मिटटी में ही खिलता है। 
"देव " जहर नफरत का भरके, चैन रूह को मिल नहीं सकता,
चैन, सुकून तो इस दुनिया में, प्यार की बातों से मिलता है। 

केवल हाथ मिलाना छोड़ो, दिल में जो गहरी खाई है। 
मुझसे पूछो, मेरे लफ्ज़ से, ऐसा मंजर दुखदाई है। 

ख्वाब उसी की आँख से देखे, बदल गया, वो सब टूटे हैं। 
अपना दर्द बताया हमने, तो कहते हैं हम झूठे हैं। "

बदलाव और अभिमान का चश्मा लगाकर लोग, किसी की अन्तर्निहित भावना को, उसकी पीड़ा को, उसकी अनुभूति को ऐसे अनदेखा कर देते हैं, जैसे उनके अतिरिक्त इस संसार में किसी की भावना का कोई मूल्य न हो, पर किसी की पीड़ा, किसी की भावना को जान बूझकर हतोउत्साहित करना, सही तो नहीं ..............

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-०६.०७.२०१६ 
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मेरी ये कविता मेरी वेबसाइट एवं ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित।