Tuesday 2 June 2015

♥प्रेम-दर्शन...♥

♥♥♥♥♥♥प्रेम-दर्शन...♥♥♥♥♥♥♥♥
चित्त हर्षित हो, भाव खिल जाये। 
प्रेम की गंध मुझमे घुल जाये। 
तेरे दर्शन निकट से होंगे जब,
चन्द्रमा मानो मुझको मिल जाये। 

प्रेम के पथ पे होगा जब भी मिलन। 
मन से फूटेंगी भावना की किरन। 
शब्द धीमे से लाज खायेंगे,
बोलते पर रहेंगे अपने नयन। 

प्रेम रंगों से चित्रकारी हो,
चित्र परिणय दिशा में ढ़ल जाये।  
तेरे दर्शन निकट से होंगे जब,
चन्द्रमा मानो मुझको मिल जाये। 

तुम कथन प्रेम का जो व्यक्त करो। 
कांपते अधरों को सशक्त करो। 
हर दिवस रात मेरे साथ रहो,
खुद को क्षण भर भी न विलुप्त करो। 

रूप उज्जवल ये देखकर तेरा,
हर दिशा का तिमिर भी धुल जाये। 
तेरे दर्शन निकट से होंगे जब,
चन्द्रमा मानो मुझको मिल जाये। 

तुम ही सौंदर्य हो कविता का। 
तुम ही प्रभाव को सुचिता का। 
"देव" तुमसे हो मन मेरा शीतल,
तुम ही आधार हो सरिता का। 

प्रेम अपना जो होगा ताकतवर,
देखो चट्टान तक भी हिल जाये।  
तेरे दर्शन निकट से होंगे जब,
चन्द्रमा मानो मुझको मिल जाये। "

.....चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक-०२.०६.२०१५ 
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