Saturday 31 January 2015

♥♥पत्रक...♥♥


♥♥♥♥♥♥पत्रक...♥♥♥♥♥♥♥
रिश्तों का संसार लिखा था। 
भावों का विस्तार लिखा था। 
जला दिया उसने वो पत्रक,
जिसपर मैंने प्यार लिखा था। 

जिसकी खातिर अपनापन हो,
वही ग़मों से भर देता है। 
शीशे जैसे नाजुक दिल को,
टुकड़े टुकड़े कर देता है। 

लूटा उसने बेरहमी से,
वो जिसको हक़दार लिखा था। 
जला दिया उसने वो पत्रक,
जिसपर मैंने प्यार लिखा था...

मन के उपवन की भूमि पर,
खून की बारिश कर देते हैं। 
अपने मंसूबों की धुन में,
किसी को तन्हा कर देते हैं। 

पतझड़ उसने दिया है मुझको,
वो जिसको सिंगार लिखा था। 
जला दिया उसने वो पत्रक,
जिसपर मैंने प्यार लिखा था...

अपने होते नहीं नाम के,
दुख का बोध किया करते हैं। 
नहीं दंड दें बिना जुर्म के,
न अवरोध किया करते हैं। 

"देव" कर रहा वो अपमानित,
वो जिसको सत्कार लिखा था। 
जला दिया उसने वो पत्रक,
जिसपर मैंने प्यार लिखा था। "

.......चेतन रामकिशन "देव"……।
दिनांक--३१.०१.१५

Thursday 29 January 2015

♥♥माँ(एक अनुपम छवि )♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥माँ(एक अनुपम छवि )♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥

दुआ माँ की यहाँ, हर एक सफर आसान करती है। 
हवाले हमको माँ खुशियों की, देखो खान करती है। 
वो अपने दूध से सींचे, नये अंकुर से बच्चे को,
हजारो ग़म सहे फिर भी, ख़ुशी का दान करती है। 

छवि माँ की अनुपम है, हसीं किरदार माँ का है। 
समूचे विश्व से ऊपर, धरा पे प्यार माँ का है। 

बड़ा ही मखमली दिल है, नहीं अभिमान करती है। 
दुआ माँ की यहाँ, हर एक सफर आसान करती है...

है ममता की नदी कोई, धरा पे ईश जैसी माँ। 
हंसी देती, ख़ुशी देती, दुआ, आशीष जैसी माँ। 
उजाला दीप की तरह, भरे बच्चों के जीवन में,
बड़ी सुन्दर, मनोहारी, सुमन के शीश जैसी माँ। 

है चंदा की धवल बारिश, मधुर प्रभात जैसी है। 
सुलाये लोरियां गाकर, सुकूं की रात जैसी है। 

बड़ी होकर भी माँ बच्चों का, हर पल मान करती है। 
दुआ माँ की यहाँ, हर एक सफर आसान करती है...

बड़ा ही त्याग करती है, हर एक इच्छा को मारेगी। 
मगर संतान का अपनी, सदा जीवन संवारेगी। 
नहीं है "देव" दुनिया में, कोई समकक्ष भी माँ के,
है वो एक माँ जो बच्चों के लिये, जीवन गुजारेगी। 

मधुर है माँ शहद जैसी, वो रेशम सी मुलायम है। 
दिखे मामूली पर दुनिया, उसी के दम पे कायम है। 
  
गलत क़दमों पे वो झिड़के, सही का ज्ञान करती है। 
दुआ माँ की यहाँ, हर एक सफर आसान करती है। "

"
माँ-एक ऐसी अनुपम छवि, जिसके व्यक्तित्व एवं कृतत्वों के समकक्ष कोई दूसरा नहीं ठहरता, माँ है तो दुनिया पे जीवन है, माँ है तो आँगन में लोरियों की गूंज और स्नेह की छुअन है, तो आइये माँ को नमन करें। "

" माँ शब्द एवं रूप का सम्मान करते हुये, मेरी ये रचना मेरी जन्मदायित्री माँ कमला देवी जी एवं मानस माँ प्रेमलता जी को समर्पित। "

" सर्वाधिकार सुरक्षित, मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित। "

चेतन रामकिशन "देव" 
दिनांक-३०.०१.२०१५ 

♥♥कायनात...♥♥


♥♥♥♥♥कायनात...♥♥♥♥♥
चाँद, तारों से बात हो जाती। 
मेरी रंगीन रात हो जाती। 

तू जो मिलती तो मेरे आंचल में,
सारी ये कायनात हो जाती। 

डाल बन जाता मैं तुम्हारे लिये,
और तू मेरी पात हो जाती। 

टूट जातीं मजहब की जंजीरें,
अपनी इंसानी जात हो जाती। 

"देव" फूलों से मुस्कुराते हम,
दर्द की देखो मात हो जाती। "

.......चेतन रामकिशन "देव"…..
दिनांक-- २९ .०१.१५

Tuesday 27 January 2015

♥♥मज़बूरी...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥मज़बूरी...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
उसे किरदार फिर कोई निभाना पड़ रहा होगा। 
बहुत मज़बूरी में मुझको भुलाना पड़ रहा होगा। 

वो मुफ़लिस बाप की बेटी, कहाँ से लायेगी गाड़ी,
सहमकर आप ही खुद को, जलाना पड़ रहा होगा। 

यहाँ न प्यार की कीमत, नहीं के मेल हो दिल का ,
फ़क़त वो नाम का रिश्ता, जताना पड़ रहा होगा। 

हसीं इस चाँद को गहरी, अमावस कर रही काला,
वो माँ को भूखा ही बच्चा, सुलाना पड़ रहा होगा। 

हुये हैं चीथड़े दिल के, जफ़ा की चोट खाकर के,
जनाजा आप ही खुद को, उठाना पड़ रहा होगा। 

उम्र भर भूख पैसों की, बनाये हैं महल ऊँचे,
जो आई मौत तो खाली ही, जाना पड़ रहा होगा। 

सुनो तुम "देव" मेरी माँ, न पढ़ले दर्द चेहरे का,
मुझे हंसकर तभी हर गम, छुपाना पड़ रहा होगा।" 

................चेतन रामकिशन "देव"…...........
दिनांक--२८.०१.१५


♥♥♥आँचल...♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥आँचल...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जो मेरे हाथ से आँचल, तेरा फिसला नही होता। 
सफ़र ये जिंदगी का फिर, कभी धुंधला नहीं होता। 

जलाये हैं बहुत दीपक, मशालें भी जलाईं पर,
ये तन्हा याद का रस्ता, कभी उजला नही होता। 

हवायें प्यार से भीगीं, तपन कम कर रहीं होतीं,
तेरी दहलीज से आगे, मैं जो निकला नहीं होता। 

हँसी होती, ख़ुशी होती, झलकता नूर चेहरे पर,
अगर तेज़ाब सीने में, मेरे उबला नहीं होता। 

नदी के छोर पर बैठे, सुनाते प्यार की बातें,
अहम में रुख जो मैंने, अगर बदला नहीं होता। 

सहारा हर घड़ी मिलता, डगर आसान हो जाती,
जो लावा झूठ का दिल में, मेरे पिघला नही होता। 

मैं तुझसे "देव" माफ़ी भी, यहाँ पर मांग लेता पर, 
मेरे हाथों से तेरा दिल, अगर उछला नहीं होता। "

.................चेतन रामकिशन "देव"….............
दिनांक--२७.०१.१५





Monday 26 January 2015

♥♥चरागों की लौ...♥♥


♥♥♥♥♥♥चरागों की लौ...♥♥♥♥♥♥♥♥
चरागों की लौ का, उजाला है तुमसे। 
मोहब्बत का हर ख्वाब, पाला है तुमसे। 
तुम्हे देखकर ही, खिले चांदनी ये,
नहीं चाँद देखो, निराला है तुमसे। 

हो तुम जो मेरे साथ, तो न अँधेरा,
तुम्हारी मोहब्बत में, कुछ ग़म नहीं है। 
तुम्हारे ही अहसास से, मिलती ताक़त,
हराये जो मुश्किल में, वो दम नहीं हो। 

तुम्हारे ही छूने से, कलियाँ उमड़तीं,
ये सुन्दर से फूलों की, माला है तुमसे 
तुम्हे देखकर ही, खिले चांदनी ये,
नहीं चाँद देखो, निराला है तुमसे.... 

सफर ये तेरे बिन, नहीं है गुजरता।
दुआ मेरी खातिर, नहीं कोई करता। 
तुम्ही "देव" देखो, वसे जिंदगी में,
यहाँ प्यार तुमसा, नहीं कोई करता। 

तुम्हारे ही संग में है, मेरी दीवाली, 
ये होली पे भी रंग, डाला है तुमसे।  
तुम्हे देखकर ही, खिले चांदनी ये,
नहीं चाँद देखो, निराला है तुमसे। "

.......चेतन रामकिशन "देव"…....
दिनांक--२६.०१.१५

Sunday 25 January 2015

♥गणित...♥


♥♥♥♥♥गणित...♥♥♥♥♥♥
मैं शब्दों का गणित न जानूं। 
केवल खुद का हित न जानूं। 
नहीं बोल सकता जिव्हया से,
मौन प्रेम है लिखित न जानूं। 

लाज भरा स्वभाव है मेरा,
तुमसे कुछ न कह पाता हूँ। 
किन्तु सच है बिना तुम्हारे,
क्षण भर भी न रह पाता हूँ। 

बिना तुम्हारे प्राण को अपने,
किसी मनुज में निहित न मानूं। 
नहीं बोल सकता जिव्हया से,
मौन प्रेम है लिखित न जानूं... 

नहीं मौन, न चुप्पी तोड़ो,
नयनों से सम्प्रेषण होगा। 
अपनेपन के दीप जलेंगे ,
भावुकता का प्रेषण होगा। 

बिना तुम्हारे अस्त हुआ हूँ,
अनुचित और उचित न जानूं। 
नहीं बोल सकता जिव्हया से,
मौन प्रेम है लिखित न जानूं... 

मौन प्रेम की भाषा होगी।
और भेंट की आशा होगी। 
"देव" यहाँ हम मिल जायेंगे,
परिणय की जिज्ञासा होगी। 

सदा कामना अच्छे की हो,
कभी किसी का अहित न जानूं। 
नहीं बोल सकता जिव्हया से,
मौन प्रेम है लिखित न जानूं। "

....चेतन रामकिशन "देव"…..
दिनांक--२५.०१.१५

Saturday 24 January 2015

♥♥पीले फूल...♥♥


♥♥♥♥पीले फूल...♥♥♥♥
पीले फूल खिले हैं मन में। 
रंग आ गया है यौवन में। 
भाव नये कुछ शब्द मिले हैं,
जगी कविता अंतर्मन में। 

रूप बसंती प्यारा लगता,
धरा सुगन्धित हो जाती है। 
पुलकित होते नयन देखकर,
माला सुरभित हो जाती है। 

थकन मिटी, उल्लास मिला है,
ऊर्जा आयी है जीवन में। 
भाव नये कुछ शब्द मिले हैं,
जगी कविता अंतर्मन में... 

खेतों में नवजीवन आया। 
सरसों ने मन को महकाया। 
चहक रहीं हैं प्यारी चिड़ियाँ,
उनका कलरव मन को भाया। 

कई माह के सूनेपन के,
बाद ख़ुशी आयी आँगन में। 
भाव नये कुछ शब्द मिले हैं,
जगी कविता अंतर्मन में... 

आओ बसंती पर्व मनायें। 
गीत प्रेम के मन से गायें। 
हिंसा, घृणा विस्मृत करके,
"देव" प्रेम का जल बरसायें। 

मेलजोल में ही मधुकर है,
नहीं रखा कुछ भी अनबन में। 
भाव नये कुछ शब्द मिले हैं,
जगी कविता अंतर्मन में। "

....चेतन रामकिशन "देव"…..
दिनांक--२४.०१.१५

Friday 23 January 2015

♥♥याद...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥याद...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
याद आँगन में दबे, पांव तेरी आती है। 
ख्वाब आँखों में नये, प्यार के सजाती है। 

देखना चाहूँ अगर, खोल के पलक अपनी,
अपने आँचल से मेरी आँख, वो छुपाती है।  

मुझसे हौले से मेरे दिल का हाल पूछे पर,
मैं जो पूछूं तो वो शरमा के, सर झुकाती है। 

सोचकर उसको मेरी धड़कनें हुईं भारी,
उसको छू लूँ तो, बिजली सी कौंध जाती है। 

मेरा हर लफ्ज़ नया, और ताजगी से भरा,
याद उसकी जो मेरे दिल से, गीत गाती है। 

धूप में जब भी तेरी, याद से करूँ बातें,
तेरी आदत, वो शरारत, मुझे बताती है। 

"देव" ये याद तेरी, तुझसे भी लगे प्यारी,
एक पल को भी नहीं दूर, मुझसे जाती है। "

............चेतन रामकिशन "देव"…........
दिनांक--२३ .०१.१५
· 

Thursday 22 January 2015

♥♥अधूरापन...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥अधूरापन...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
ग़मों की आग में ये दिल, मेरा जलने लगा है। 
अधूरापन तुम्हारे बिन, बहुत खलने लगा है। 

वो जिसको गोटियां रखने का, हुनर बख़्शा था,
वही अब चाल मेरे साथ में, चलने लगा है। 

सहारे मुफ़लिसों के जिसने पायी थी हुकूमत,
गरीबों के हक़ों को, आज वो छलने लगा है। 

अहम इंसान का शीशे की, माफ़िक टूट जाये,
जो आई रात तो, सूरज भी ये ढ़लने लगा है। 

यहाँ सच्चाई से जिस रोज पाला पड़ गया तो,
वो झूठा बादशाह भी, आँख को मलने लगा है। 

बिना तुमसे मिले, पाये, मुझे हो चैन कैसे,
तुम्हारा ख्वाब जबसे आँख में, पलने लगा है। 

सुनो तुम "देव" बनकर मोम, वो जलने लगे तो,
मेरा किरदार भी फिर, बर्फ सा गलने लगा है। "

................चेतन रामकिशन "देव"…............
दिनांक--२२.०१.१५

Wednesday 21 January 2015

♥♥♥जंग...♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥जंग...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
न भाई की यहाँ पर भाई से, अब जंग हो कोई। 
तमंचा, तोप न तलवार, अपने संग हो कोई। 

यहाँ रंग जाये हर चेहरा, मोहब्बत के गुलालों से,
नहीं सड़कों पे बिखरा, खून का अब रंग हो कोई। 

नहीं हो घाव अब गहरा, शिफ़ा मुफ़लिस को मिल जाये, 
दवा के बिन अपाहिज न किसी का, अंग हो कोई।  

मोहब्बत है खुदा बचपन से, मैं ये सीखता आया,
तपस्या प्यार की पल भर को भी न, भंग हो कोई। 

इमां कायम रहे, बाकि सलीका जिंदगी में हो,
तरक्की, नाम को, इंसां नहीं, बेढंग हो कोई। 

किसी का दिल नहीं टूटे, बदौलत मेरी न आंसू,
उजाला हाथ से मेरे, नही बेरंग हो कोई। 

सुनो तुम "देव" ये दुनिया, बनेगी खूबसूरत तब,
अगर इंसानियत का हर तरफ, सतरंग हो कोई। "

................चेतन रामकिशन "देव"…............
दिनांक--२१.०१.१५


Wednesday 14 January 2015

♥वज्रपात...♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥वज्रपात...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
वज्रपात भी मौसम अब तो, निर्धन पे करने निकला है। 
गिरता पारा उघड़े तन के, जीवन को हरने निकला है। 
रह सहकर जिनके सर छप्पर, वो भी पहुंचे बदहाली में,
सर्दी में बारिश का पानी, उनका घर भरने निकला है। 

रेन वसेरा हुआ नाम का और अलावों में घोटाला। 
चंहुओर लगता है देखो, निर्धन की किस्मत पे ताला। 

शीतकाल भी दानव बनकर, निर्धन को चरने निकला है। 
वज्रपात भी मौसम अब तो, निर्धन पे करने निकला है। "

....................चेतन रामकिशन "देव"…..................
दिनांक--१४.०१.१५

Monday 12 January 2015

♥♥♥♥क्यों...♥♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥क्यों...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
गिराना ही अगर था तो, मुझे परवाज़ क्यों दी थी। 
बिछड़ कर दूर होना था, तो फिर आवाज़ क्यों दी थी। 

बिना एहसास के पत्थर का ही, बुत बनके मैं खुश था,
मुझे इन्सां बनाने की तलब, आगाज़ क्यों की थी। 

मेरे लफ़्ज़ों के टुकड़े हो गये हैं, चोट से गम की,
अगर था हश्र ये करना, तो उनको साज़ क्यों दी थी। 

नहीं मरहम, दुआ कोई, दवा न कोई अपनापन,
तसल्ली झूठ की तुमने मेरे, हमसाज़ क्यों की थी। 

कहें क्या "देव " अब तुमसे, शिकायत में भी क्या रखा,
गिला कुदरत से है किस्मत को, इतनी नाज़ क्यों दी थी। "

....................चेतन रामकिशन "देव"….................
दिनांक--१३.०१.१५

♥♥किरदार...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥किरदार...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मेरे डूबे हुए किरदार को, पहचान दे जाओ। 
चुराकर आँख से आंसू, मुझे मुस्कान दे जाओ। 

तुम्हारे बिन महज मिटटी सरीखा है बदन मेरा,
मुझे छूकर मेरे मुर्दा जिस्म में, जान दे जाओ। 

यहाँ सिक्कों में बिकते देखता हूँ, आदमी को मैं,
जो बोलूं, सच को जो मैं सच, वही ईमान दे जाओ। 

नहीं नफरत का दामन थामने की, कोई नौबत हो,
मेरे लफ़्ज़ों को तुम अब, प्यार का उन्वान दे जाओ। 

सुनो अब "देव" तुम बिन है, अधूरी जिंदगी मेरी,
मेरे जीवन में रच वसकर, ख़ुशी की खान दे जाओ। "

..................चेतन रामकिशन "देव"…...........
दिनांक--१२.०१.१५

Wednesday 7 January 2015

♥♥सात जनम...♥♥


♥♥♥♥♥सात जनम...♥♥♥♥♥♥
बिछड़ न जायें संभल के रहना। 
सदा मेरे आँचल में रहना। 
एक जनम तो नाकाफी है,
सात जनम तक दिल में रहना। 

अभी अभी तो शुरू किया है,
हम दोनों ने सफर प्यार का। 
अभी तो हल भी ढूंढ सके न,
हम अपने दिल बेकरार का। 
धीरे धीरे, बारीकी से, 
प्यार का हर पहलु जानेंगे,
अभी सहन करना सीखेंगे,
सखी दर्द हम इंतजार का। 

कल तुमसे था, आज में तुम हो,
साथ साथ तुम कल में रहना। 
एक जनम तो नाकाफी है,
सात जनम तक दिल में रहना... 

गीत लिखेंगे, छंद लिखेंगे। 
प्रेम का ये सम्बंध लिखेंगे। 
तुम अपना कर्तव्य उकेरो,
हम अपना प्रबंध लिखेंगे। 
तेरे शब्दों की खुशबु से,
मेरा यौवन खिल जायेगा,
साथ रहेंगे हर सुख दुख में,
मिलजुल ये सौगंध लिखेंगे। 

मैं तुमको साहस सौंपूंगा,
और तुम मेरे बल में रहना। 
एक जनम तो नाकाफी है,
सात जनम तक दिल में रहना... 

गृहकार्य में तुम पारंगत,
मैं धन अर्जित करना सीखूं। 
नींव रखो तुम हाथ से अपने,
मैं घर निर्मित करना सीखूं। 
"देव" ये सज्जा दीवारो की,
और आँगन की नाम आपके,
मैं घर के कोने कोने को,
प्यार से पुलकित करना सीखूं। 

तुमको छूकर पावन हो लूँ,
तुम गंगा के जल में रहना। 
एक जनम तो नाकाफी है,
सात जनम तक दिल में रहना। "

........चेतन रामकिशन "देव"…......
दिनांक--०७.०१.१५

Monday 5 January 2015

♥♥दहलीज...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥दहलीज...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तेरी दहलीज पे आया नहीं था, दूर जाने को। 
हजारो लफ्ज़ जोड़े थे, तुझे दिल की सुनाने को। 

भले तू अपना पूरा दिल, न मेरे नाम कर लेकिन,
जगह दे दो मुझे थोड़ी, जरा ये सर छुपाने को। 

ये माना इस जनम में तुम, हमारी हो नहीं सकतीं,
जनम फिर लेना चाहूंगा, तुम्हारा प्यार पाने को। 

न जीते जी मुझे तुमने, पनाहें प्यार की बख्शीं,
मगर तुम कब्र पे आना मेरी, दीया जलाने को। 

हाँ माना चाँद हो तुम, और मैं रस्ते का एक पत्थर,
नहीं समझा सका दिल को, मगर तुझको भुलाने को।  

नहीं कुछ पास में मेरे, मैं खाली हाथ हूँ बेशक,
तुम्हारे नाम पर करता, दुआ के हर खजाने को। 

चलो तुम "देव" जो सोचो, निभाओ साथ या न तुम,
कसर कोई नहीं बाकी रखी, तुझको मनाने को। "

...............चेतन रामकिशन "देव"…............
दिनांक--०५.०१.१५

♥♥प्रेम की विधा...♥♥

♥♥♥♥प्रेम की विधा...♥♥♥♥
छंद, गीत, दोहा, चोपाई। 
सबमें तेरी छवि समाई। 
बड़ा भाग्य है सखी हमारा,
तेरी प्रीत जो हमने पाई। 

तेरी प्रीत सुख का उजियारा। 
तेरी प्रीत की गंगा की धारा। 
तेरी प्रीत में भाव हैं बल के,
तेरी प्रीत का हर क्षण प्यारा। 

मंत्र प्रेम के जपे जो तुमने,
विधा वही हमने दोहराई। 
बड़ा भाग्य है सखी हमारा,
तेरी प्रीत जो हमने पाई। 

धैर्यवान हो, तुम साधक हो। 
प्रेम धर्म की आराधक हो। 
सुचित पथों की प्रहरी हो तुम,
गलत मार्ग की तुम बाधक हो। 

कंठ दिया मेरे शब्दों को,
मेरी लेखनी नहीं दबाई। 
बड़ा भाग्य है सखी हमारा,
तेरी प्रीत जो हमने पाई


मंत्रमुग्ध करने वाली हो। 
ओस में भीगी हरियाली हो। 
"देव" हमारे जीवन में तुम,
हर्षित अमृत की प्याली हो। 

मेरे नयन पटल, अधरों पर,
प्रीत की तुमने नदी बहाई। 
बड़ा भाग्य है सखी हमारा,
तेरी प्रीत जो हमने पाई। "

.....चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक--०५.०१.१५

Sunday 4 January 2015

♥♥बदलाव...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥बदलाव...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
बदलते दौर का रिश्ता है ये, बदलाव मांगेगा। 
कभी आंसू कभी ये खून का, सैलाब मांगेगा। 
मेरे चलने से ही सूरत पे मेरी, है चमक देखो,
अगर मैं थम गया तो, वक़्त ये ठहराव मांगेगा।

नये इस दौर में,  चाहत, वफ़ा बेमोल लगती है। 
तमाशा देखते हैं सब, जो मेरी आँख दुखती है। 
किसे से दर्द बांटो तो, मिले उपहास का तोहफा,
यहाँ सब तापते हैं, जो मेरे घर आग लगती है। 

दवा मिलती नहीं, मरहम भले हर घाव मांगेगा। 
बदलते दौर का रिश्ता है ये, बदलाव मांगेगा... 

यहाँ पैसों की बातें हों, दिलों को कौन चुनता है। 
यहाँ सब हो गए बहरे, मेरा गम कौन सुनता है। 
कहुँ क्या "देव" कुछ कहने को, वाकी है नहीं अब कुछ,
जिसे अपना कहा फांसी का फंदा, वो ही बुनता है। 

जिसे भी देखो वो खुद के लिए, रुआब मांगेगा। 
बदलते दौर का रिश्ता है ये, बदलाव मांगेगा। "

.............चेतन रामकिशन "देव"…............
दिनांक--०४.०१.१५

Saturday 3 January 2015

♥♥दर्द की सीमा...♥♥



♥♥♥♥♥♥♥♥♥दर्द की सीमा...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सहें हम दर्द ये कितना, कोई सीमा तो तय कर दो। 
दुआ देकर मेरा डूबा हुआ, सूरज उदय कर दो। 
मेरी चौखट पे भी दस्तक, ख़ुशी की अब जरुरी है,
बहुत कोशिश में हूँ कुदरत, चलो मेरी विजय कर दो। 

नहीं मैं पूर्ण हूँ मेरा, अधूरापन तुम्ही हर दो। 
मेरी मासूमियत से भूल हो, तो माफ़ तुम कर दो। 
मेरी किस्मत पे पाबन्दी की, बेड़ी तोड़कर के तुम,
मेरी आँखों की सूनी राह पे, अब तुम दमक कर दो। 

मुझे तुम धैर्य देकर के, मेरे मन को अभय कर दो। 
सहें हम दर्द ये कितना, कोई सीमा तो तय कर दो... 

हमारी सांस भारी है, हमारी आँख में जल है। 
मेरा आकाश काला है, मेरी सुखी हुयी थल है। 
मैं इन्सां हूँ बहुत कोशिश भी करके जीत न पाया,
सुनो कुदरत, क्या मेरी उलझनों का अब कोई हल है। 

मेरी सांसो की बिखरी पंक्तियों में अब तो लय कर दो।  
सहें हम दर्द ये कितना, कोई सीमा तो तय कर दो... 

भरोसा है तुम्ही पर, तो ही तुमसे बात करता हूँ। 
उम्मीदें लेके आये कल, इसी में रात करता हूँ। 
ए कुदरत "देव" की सुनना, सुनो हर एक परेशां की,
हवाले मैं तुम्हे दिल के, सभी जज्बात करता हूँ। 

बुरा ये वक़्त अब जाये, जरा अच्छा समय कर दो। 
सहें हम दर्द ये कितना, कोई सीमा तो तय कर दो। "

...............चेतन रामकिशन "देव"…................
दिनांक--०४.०१.१५


Friday 2 January 2015

♥प्रेम-संवाद...♥

♥♥♥♥प्रेम-संवाद...♥♥♥♥
निकट नहीं अवसाद रहेगा। 
जब अपना संवाद रहेगा। 
जीवन हो व्यतीत हर्ष में,
न कोई परिवाद रहेगा।

तुम मुझको भूषित कर देना। 
तुम क्षमता प्रेषित कर देना,
समस्याओं से घिरुं यदि तो,
मुझको ऊर्जा से भर देना। 
किसी क्षेत्र में तुम आगे हो,
किसी क्षेत्र में मैं प्रथम हूँ,
दोनों का बल युग्मित करके,
तुम उसको दोहरा कर देना।

प्रेम सफल हो जायेगा फिर, 
न कोई अपवाद रहेगा। 
जीवन हो व्यतीत हर्ष में,
न कोई परिवाद रहेगा...

बिन कारण के क्रोध न करना,
तथ्यों के संग बात बताना। 
नहीं वेदना, न मनमानी,
मेरे मन को नहीं दुखाना। 
मैं भी अपने कर्तव्यों का,
पालन तेरे लिये करूँगा,
मुझसे कोई गलती हो तो,
सही बात मुझको समझाना।

कठिन क्षणों का सरल बनाना,
न भ्रमित अनुवाद रहेगा। 
जीवन हो व्यतीत हर्ष में,
न कोई परिवाद रहेगा...

सखी शब्द का परिचय बनना,
मेरे गीतों की लय बनना। 
"देव" हमारा हाथ थामकर ,
संघर्षों की तू जय बनना। 
प्रेम भाव के पावन जल से,
ये कोमल मन धुल जायेगा।
न फिर कोई अड़चन होगी,
बंद मार्ग भी खुल जायेगा।

तुम संग न आवेश कोई भी,
न मन में उन्माद रहेगा। 
जीवन हो व्यतीत हर्ष में,
न कोई परिवाद रहेगा। "
.....चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक--०२.०१.१५