Tuesday 26 August 2014

♥♥वक़्त के साथ...♥♥


♥♥♥♥वक़्त के साथ...♥♥♥♥
वक़्त के साथ जो बदल जाता!
तो मुझे याद वो नहीं आता!

अपने दिल को जो तोड़ लेता मैं,
प्यार का दीप फिर न जल पाता!

किसको फुर्सत थी मेरा दर्द सुने,
कौन चाहत के फूल बिखराता!

जी तो सकता हूँ इन दवाओं से,
चैन तुम बिन मुझे नहीं आता!

कोई तुमसे नहीं मिला मुझको,
जो मेरे दिल को ख्वाब दिखलाता!

तुमने चाहा ही न कभी दिल से,
वरना चाहत का फूल खिल जाता!

"देव" तुमसे नहीं गिला, शिकवा,
जो न किस्मत में, वो न मिल पाता!

.......चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक-२७.०८. २०१४





Saturday 23 August 2014

♥♥♥प्यार का जहाज..♥♥♥

♥♥♥♥♥प्यार का जहाज..♥♥♥♥♥
दर्द का फिर इलाज़ ढूँढेंगे!
अपना हंसमुख मिजाज़ ढूँढेंगे!

कल तलक जो हमें न मिल पाया,
उसको शिद्दत से आज ढूँढेंगे!

जो चकाचोंध में हुआ है गुम,
हम वो खोया लिहाज़ ढूँढेंगे!

आदमी-आदमी से मिल जाये,
प्यार का वो जहाज ढूँढेंगे!

हिन्दू, मुस्लिम हों, सिख, ईसाई एक,
ऐसा खिलता समाज ढूँढेंगे!

हारकर जीतने का दम न मरे,
जोश का वो रियाज़ ढूँढेंगे!

"देव" रिश्ता यहाँ जुड़े दिल से,
एक दमकता रवाज ढूँढेंगे! "

.......चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक-२४.०८. २०१४






Sunday 17 August 2014

♥♥प्रेम की दिव्य ज्योत..♥♥

♥♥♥♥प्रेम की दिव्य ज्योत..♥♥♥♥
प्रेम की दिव्य ज्योत जलने लगी!
राधिका श्याम से जो मिलने लगी!
ढ़ल गई सारी अमावस पल में,
चांदनी मानो कोई खिलने लगी!

प्रेम का रंग हो यदि गहरा!
अपना मन भी हो बस वहीँ ठहरा!
कितनी तड़पन की बात हो जाये,
भेंट करने पे जब लगे पहरा!

श्याम भी भेंट को हुए आतुर,
राधिका भी वहां मचलने लगी!

प्रेम की दिव्य ज्योत जलने लगी...

श्याम कर्तव्य की लड़ाई में!
राधिका शोक की लिखाई में!
धार अश्रु की फूटती ही रही,
न ही आराम था दवाई में!

राधिका श्याम के प्रण के लिए,
उनके रस्ते से दूर चलने लगी!

प्रेम की दिव्य ज्योत जलने लगी...

श्याम, राधा का साथ टूटन पे,
राधिका फूट फूट रोने लगी!
श्याम भी हो गए बहुत बेबस,
राधिका मौन रूप होने लगी!

प्रेम की एक ये अमर गाथा,
देखो इतिहास को बदलने लगी!

प्रेम की दिव्य ज्योत जलने लगी,
राधिका श्याम से जो मिलने लगी!"

.....चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक-१७.०८. २०१४ 

Wednesday 13 August 2014

♥प्रेम सम्पदा..♥

♥♥♥♥प्रेम सम्पदा..♥♥♥♥♥♥
अनुभूति विस्थापित कर दूँ!
प्रेम को कैसे बाधित कर दूँ!
जो वर्षों से वसा है मन में,
क्यों उसको निष्काषित कर दूँ!

क्यों तोडूं विश्वास किसी का,
क्यों भूलूँ एहसास किसी का,
क्यों मैं क्षण में खंडहर कर दूँ,
खिला हुआ आवास किसी का!

क्यों मिथ्या की संरचना को,
शब्दों से सत्यापित कर दूँ!
जो वर्षों से वसा है मन में,
क्यों उसको निष्काषित कर दूँ...

उसे बदलना है वो बदले,
नहीं बदलना मुझको आता!
बस उससे ही मेल है मन का ,
नहीं दूसरा मुझको भाता!
"देव" मेरे नयनों में अब तक,
बस उसका ही चित्र वसा है,
धवल आत्मिक प्रेम सम्पदा,
नहीं शरीरों का बस नाता!

प्रेम भावना के पत्रों को,
क्यों कर मैं सम्पादित कर दूँ!
जो वर्षों से वसा है मन में,
क्यों उसको निष्काषित कर दूँ! "

.....चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक-१३ .०८. २०१४  


Monday 11 August 2014

♥तुम्हारी याद का लम्हा...♥

♥♥♥♥♥♥तुम्हारी याद का लम्हा...♥♥♥♥♥♥♥
मैं ज़ख्मों पे नमक फिर से, लगाकर देख लेता हूँ!
तुम्हारी याद का लम्हा, उठाकर देख लेता हूँ!

मेरी किस्मत, मेरी तक़दीर ने तो कुछ नहीं बख्शा,
लकीरें हाथ की अब आजमाकर, देख लेता हूँ!

सिसकते दर्द के कांटे, बदन पे जब भी चुभते हैं,
ग़मों की चांदनी मैं तब, बिछाकर देख लेता हूँ!

यहाँ इंसान बहरे हैं, गुहारें सुन नहीं पाते,
बुतों को दर्द अब अपना, सुनाकर देख लेता हूँ!

सुकूं जब रूह को न हो, हो ठहरी बेबसी दिल में,
ग़ज़ल मैं फिर तेरी एक, गुनगुनाकर देख लेता हूँ!

मिलन की चाह हो लेकिन, तेरे बदलाव का आलम,
तेरा रस्ता, तेरा कूचा, भुलाकर देख लेता हूँ!

कहीं पायल की रुनझुन हो, तेरे आने की उम्मीदें,
मैं एक अरसे से सूना घर, सजाकर देख लेता हूँ!

लगे तू चाँद सा मुखड़ा, अमावस चीर आएगा,
मैं अपनी रात फिर, बाहर बिताकर देख लेता हूँ!

तुम्हें सब कुछ बताया है, नहीं तुम "देव" झुठलाओ,
मैं बिखरे लफ्ज़ के टुकड़े, मिलाकर देख लेता हूँ! "

 .................चेतन रामकिशन "देव"….........
दिनांक-१२ .०८. २०१४ 

Saturday 9 August 2014

♥♥मोहब्बत की सादगी..♥♥

♥♥♥♥मोहब्बत की सादगी..♥♥♥♥♥
प्यार में सादगी तुम्ही से है!
फूल में ताजगी तुम्ही से है!

आशिकी तुम हो, जुस्तजु मेरी,
मेरी दीवानगी तुम्ही से है!

राह देखी क्यों तुम नहीं आईं,
दिल को नाराजगी तुम्ही से है!

देख कर तुमने जो चुराई नज़र,
तब से हैरानगी तुम्ही से है!

मैं बहकता हूँ सिर्फ तेरे लिए,
मेरी आवारगी तुम्ही से है!

बिन तेरे नींद भी नहीं आती,
आँख मेरी जगी तुम्ही से है!

"देव" दुनिया तो मतलबी है बस,
रूह मेरी सगी तुम्ही से है!"

......चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक-०९ .०८. २०१४

♥♥दर्द का काल..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥दर्द का काल..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
भूतकाल भी दर्द भरा था, वर्तमान में आँखे नम हैं!
एक अरसे तक नहीं बदलते, पीड़ा के ऐसे मौसम हैं!
जिसकी मर्जी वही दर्द दे, आह कोई न सुनता मेरी,
लगता है सबकी नजरों में, पत्थर के बुत जैसे हम हैं!

पत्थर का दर्जा देकर के, तुमको क्या कुछ मिल पायेगा!
एक दिन देखो झूठ का पर्दा, इन आँखों से हट जायेगा!

सुन लेता हूँ हौले हौले, दर्द भरे सारे आलम हैं!
भूतकाल भी दर्द भरा था, वर्तमान में आँखे नम हैं...

क्यों लोगों को अपने दुख के, सिवा कुछ नहीं दिख पाता है!
क्यों शायर का कलम आजकल, नहीं हक़ीक़त लिख पाता है!
"देव" आईने में वो अपनी, शिक़न देखकर घबरा जाते,
मगर मेरे दिल के टुकड़ों का, ढ़ेर उन्हें न दिख पाता है!

बुरा वक़्त है इसीलिए तो, मेरी कुछ सुनवाई नहीं है!
इसीलिए तो हवा आजतक, ख़ुशी का झोंका लाई नहीं है!

झूठ का चेहरा उजला उजला, सच के मानों बुरे करम हैं!
भूतकाल भी दर्द भरा था, वर्तमान में आँखे नम हैं! "

.................चेतन रामकिशन "देव"….............
दिनांक-०९ .०८. २०१४

Thursday 7 August 2014

♥♥खून पसीना..♥♥

♥♥♥♥♥खून पसीना..♥♥♥♥♥
खून पसीना बहुत बहाया!
तब जाकर के जीना आया!
बुरे वक़्त में सब बदले थे,
किसी ने मरहम नहीं लगाया!

सब उपहास उड़ाने वाले,
नहीं दर्द की बातें जानें!
भूख प्यास से व्याकुल दिन और,
नहीं किसी की रातें जानें!

ठोकर खाकर गिरा कभी जब,
किसी ने मुझको नहीं उठाया!
बुरे वक़्त में सब बदले थे,
किसी ने मरहम नहीं लगाया...

साथ किसे के न देने से,
हाँ तन्हाई तड़पाती है!
मगर आंसुओं की ये धारा,
हमको जीना सिखलाती है!

देख हमारे इस साहस को,
ढ़लता उपवन भी मुस्काया!
बुरे वक़्त में सब बदले थे,
किसी ने मरहम नहीं लगाया...

अपने गम से मिला तजुर्बा ,
और पीड़ा ने सोच सुधारी !
"देव" होंसला जगा लिया तो,
नहीं सांस लगती है भारी!

सीख गया काँटों पे चलना,
नहीं आग से मैं घबराया!
बुरे वक़्त में सब बदले थे,
किसी ने मरहम नहीं लगाया! "

......चेतन रामकिशन "देव"…..
दिनांक-०८ .०८. २०१४

Monday 4 August 2014

♥♥मुफ़लिसी♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥मुफ़लिसी♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
खून बहा जाये ज़ख्मों से, दवा कोई करने नहीं आता !
मुफ़लिस के भूखे बच्चे को, कोई रोटी नहीं खिलाता !
आँख से आंसू बहते रहते, चीख चीख कर दिल रोता है,
करते हैं दुत्कार उसे सब, गले से नहीं कोई लगाता!

मुफ़लिस के नन्हे बच्चों को, बाल श्रम करना पड़ता है!
भूख प्यास में आंसू पीकर, पेट यहाँ भरना पड़ता है!

घोर उदासी है सूरत पर, न वो हँसता, न मुस्काता!
खून बहा जाये ज़ख्मों से, दवा कोई करने नहीं आता !

बिना दवा के मर जाता है, दवा बहुत महंगी मिलती है!
घोर वेदना सहता है वो, नहीं ख़ुशी कोई मिलती है!
"देव" वतन में मुफ़लिस को, एक घर तक नहीं मयस्सर होता,
नहीं अँधेरा छंट पाता है, नहीं कोई ज्योति खिलती है!

क़र्ज़ में डूबे मुफ़लिस की बस, अंतिम आस यही होती है!
किसी पेड़ पे या खम्बे पे, उसकी लाश रही होती है!

मुफ़लिस के पथरीले पथ पर, कोई रेशम नहीं बिछाता!
खून बहा जाये ज़ख्मों से, दवा कोई करने नहीं आता ! "

....................चेतन रामकिशन "देव"….................
दिनांक-०५ .०८. २०१४


हम तुम जब एक

♥♥हम तुम जब एक♥♥♥
हम तुम जब एक हो जायेंगे!
जगमग तारे हो जायेंगे!
सखी डूब जाना तुम मुझमें,
हम भी तुझमें खो जायेंगे!
धवल चांदनी का वो पर्दा,
आसमान में लहराएगा,
एक दूजे की नजदीकी में,
हम चुपके से सो जायेंगे!

प्यार के मीठे सपने होंगे,
शोर शराबा थम जायेगा!
हम दोनों के प्यार के देखो,
हसीं सिलसिला बन जायेगा!

हम सपनों में मिलन भाव के,
नव अंकुर को बो जायेंगे!
हम तुम जब एक हो जायेंगे!
जगमग तारे हो जायेंगे। ...

बीच रात में आँख खुले तो,
गीत प्यार का तुम दोहराना!
नाम मेरा लेकर हौले से,
सखी नींद से मुझे जगाना!
हम दोनों फिर प्यार वफ़ा की,
बातों का एहसास करेंगे,
मैं भी साथ रहूँगा तेरे,
तुम भी मेरा साथ निभाना!

खूब पड़ेगी प्यार की बारिश,
बादल सुरमई हो जायेंगे!
हम तुम जब एक हो जायेंगे!
जगमग तारे हो जायेंगे! "


......चेतन रामकिशन "देव"…....
दिनांक-०४ .०८. २०१४


Sunday 3 August 2014

♥प्रेम भावना..♥

♥♥♥
♥♥♥♥प्रेम भावना..♥♥♥♥
प्रेम भावना मेरे मन की!
तुम अनुभूति हो जीवन की!
मेरे नयनों की ज्योति हो,
तुम ऊर्जा हो मेरे तन की!

स्वप्नों में तुम ही आती हो!
गीत प्रेम का तुम गाती हो!
फूलों सी देह तुम्हारी,
घर आँगन को महकाती हो!

बस तुमको ही छूना चाहूँ,
तुम भावुकता आलिंगन की!
प्रेम भावना मेरे मन की!
तुम अनुभूति हो जीवन की ...

प्रेम मुक्त है हर सीमा से,
सागर के जैसा गहरा है!
सब जिज्ञासा शांत हो गयीं,
मन जब से तुमपे ठहरा है!

तुम पावन हो गंगाजल सी,
न नीति हो प्रलोभन की!
प्रेम भावना मेरे मन की!
तुम अनुभूति हो जीवन की ...

विरह भाव का विष पीकर भी,
मैंने तुमको याद किया है!
यदि नहीं प्रत्यक्ष रहे तुम,
सपनों में संवाद किया है!

तेज मेरे चेहरे का तुमसे,
तुम्ही चपलता अंतर्मन की!
प्रेम भावना मेरे मन की!
तुम अनुभूति हो जीवन की ...

फिर से मेरे पथ आओगे,
यही सोच प्रतीक्षा करता!
"देव" मिलन की व्याकुलता में,
अश्रु से आँचल को भरता!

न कोई समकक्ष तुम्हारे,
यथा योग्य तुम अभिनन्दन की!
तुम अनुभूति हो जीवन की!
प्रेम भावना मेरे मन की! "

प्रेम-जिसके प्रति होता है, अनेकों, असीम, अपार अनुभूतियाँ उसके लिए हृदय में उत्पन्न होती हैं,
प्रेम की लहरों को, किसी सीमा में बांधा नहीं जा सकता, प्रेम की भावनायें कभी मंद नदी सी स्थिर तो कभी सुनामी जैसी गतिमान होती हैं, तो आइये प्रेम की इस जल धारा का पान करें "

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-०४.०८.२०१४







Saturday 2 August 2014

♥कहाँ हैं दोस्त वो..♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥कहाँ हैं दोस्त वो..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
नज़र आते नहीं अब तो, मुझे अब दोस्त वो अपने,
जो मेरी आह सुनकर के, बहुत बेचैन होते थे!

हजारों दोस्त दिखते हैं, मगर हैं नाम के केवल,
कहाँ हैं दोस्त वो, जो दुःख मैं मेरे साथ रोते थे!

नहीं कोई कपट मन में, नहीं छल, न ही लालच था,
मोहब्बत के नए पौधे, सभी जो साथ बोते थे !

चलो एक रस्म का दिन है, निभाकर देख लेते हैं,
कहीं गुम हो गए, जो उम्र भर को साथ होते थे!

नहीं होली, न दिवाली, नहीं वो ईद, न लोहड़ी,
चुके वो दौर जो त्यौहार में, संग साथ होते थे!

कसम टूटी, वफ़ा झूठी, यहां कुछ दिन का किस्सा है,
नहीं वो दोस्त जो, जो वादे वफ़ा संग में पिरोते थे!

चलो अब हारकर मैं, "देव " सच ये ओढ़ लेता हूँ,
पुराना दौर था जिसमें, बड़े दिल सबके होते थे! "

..................चेतन रामकिशन "देव"….............
दिनांक-०३.०८. २०१४


♥बिन तेरे..♥

♥♥♥♥♥♥बिन तेरे..♥♥♥♥♥♥
प्यार में मेरे क्या गलत पाया!
तुमने क्यों प्यार मेरा ठुकराया!

मेरी आँखों में आ गए आंसू,
तुमने जब गैर मुझको बतलाया!

बिन तेरे अब तो बस उदासी है,
हर तरफ दर्द का धुआं छाया!

सारे एहसास हैं तुम्हारे लिए,
अपनी चाहत का रंग दिखलाया!

चिट्ठियां मैंने तो लिखीं थीं बहुत,
खत तेरा एक भी नहीं आया!

यूँ तो हर साल ही लगा मेला,
मुझको बिन तेरे कुछ नहीं भाया !

"देव" आ जाओ ग़र सुना हो तो,
प्यार का गीत मैंने दोहराया! "

.....चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक-०२.०८. २०१४