Friday 18 October 2013

♥आज अपनी लेखनी से...♥

♥♥♥♥♥आज अपनी लेखनी से...♥♥♥♥♥♥♥
आज अपनी लेखनी से, गीत फिर मैंने रचाया!
अपने शब्दों से जगत को, नेह का मतलब सिखाया!
कुछ समर्पण, कुछ मधुरता, भावना लेकर के मन की,
मैंने अपनी लेखनी में, पीड़ितों का दुख वसाया!

खुद की खातिर ही जिए जो, आदमी किस काम का है!
फिर तो जीवन आदमी का, सिर्फ खाली नाम का है!

वो ही अच्छा आदमी है, औरों के जो काम आया!
आज अपनी लेखनी से, गीत फिर मैंने रचाया!

देश में वंचित करोड़ों, देश में भूखे बहुत हैं!
उनके आंगन में लगे वो, पेड़ अब सूखे बहुत हैं!
न ही नेता, न ही अफसर, "देव" कोई न सुने अब,
इन बड़े लोगों के दिल तो, आजकल रूखे बहुत हैं!

भूख की इस वेदना को, शब्द मेरे सुन रहे हैं!
एक दिन बदलाव होगा, ऐसे सपने बुन रहे हैं!

मिट गया उसका जहाँ भी, जिसने लोगों को सताया
आज अपनी लेखनी से, गीत फिर मैंने रचाया!"

…........…चेतन रामकिशन "देव".................
दिनांक-१९.१०.२०१३

♥♥चंद्रमा की श्वेत किरणें...♥♥

♥♥♥♥♥चंद्रमा की श्वेत किरणें...♥♥♥♥♥♥♥
चंद्रमा की श्वेत किरणें, भरके अपने अंजुली में!
कर रहा हूँ लेप उसका, शब्द रूपी हर कली में !

चन्द्र किरणों की छुअन से, शब्द उद्धृत हो रहे हैं!
चांदनी का साथ पाकर, वो अलंकृत हो रहे हैं!
चांदनी की पायलों ने, गीत में सरगम भरी है,
चांदनी के साथ मिलकर, भाव झंकृत हो रहे हैं!

चांदनी ने प्राण भेजे, फूल में, फल और फली में!
चंद्रमा की श्वेत किरणें, भरके अपने अंजुली में!

आज हम अपनी सखी संग, चांदनी में संग चलेंगे!
चांदनी की रौशनी में, प्रेम के उपवन खिलेंगे!

चांदनी का रूप समरस, गाँव, कस्बे और गली में!
चंद्रमा की श्वेत किरणें, भरके अपने अंजुली में!"

….........…चेतन रामकिशन "देव"..................
दिनांक-१८.१०.२०१३

♥♥अब तुम्हारे गेसुओं में...♥♥

♥♥♥♥♥अब तुम्हारे गेसुओं में...♥♥♥♥♥♥♥
अब तुम्हारे गेसुओं में, प्यार का मौसम नहीं!
प्यार की कसमों-वफ़ा में, लग रहा के दम नहीं!
आज तुम हमसे बने हो, इस तरह से अजनबी,
साथ मेरा छोड़कर भी, आंख तेरी नम नहीं!

आज बेशक जा रहे हो, साथ मेरा छोड़कर!
कांच से नाजुक मेरा दिल, एक पल में तोड़कर!
एक दिन लेकिन जहाँ में, तुम बहुत पछताओगे!
जब कभी तुम अपने दिल को, देखो टूटा पाओगे!

दर्द का सागर मिला है, ये जरा भी कम नहीं!
आज तेरे गेसुओं में, प्यार का मौसम नहीं 

मेरे दिल में बद्दुआ न, कोई भी तुमसे गिला!
मान लूँगा मेरे हाथों ही, हमारा घर जला!
"देव" तुमको याद मेरी, देखो उस दिन आएगी!
जब तेरी आँखों की निंदिया, दर्द में छिन जाएगी! 

जिंदगी तो जीनी ही है, साथ बेशक तुम नहीं!
आज तेरे गेसुओं में, प्यार का मौसम नहीं!"

….....…चेतन रामकिशन "देव"................
दिनांक-१८.१०.२०१३