Monday 14 October 2013

♥♥माँ की लोरी(एक मधुर स्वर)..♥♥♥


♥♥♥♥♥माँ की लोरी(एक मधुर स्वर)..♥♥♥♥♥♥♥
माँ की लोरी का मधुर स्वर, सात सुर की गीतमाला!
माँ से चंदा में रजत है, माँ से सूरज में उजाला!
माँ की सूरत फूल जैसी, माँ का आँचल रेशमी है,
माँ ने हर मुश्किल से देखो, हर घड़ी हमको निकाला!

माँ खुशी देती है हमको, माँ दुआ है, माँ दवा है!
शीत में ऊष्मा की प्रेषक और घुटन में वो हवा है!

लड़खड़ाया जब भी मैं तो, माँ ने ही मुझको संभाला!
माँ की लोरी का मधुर स्वर, सात सुर की गीतमाला! ….

मन को भाये माँ से मिलना और माँ से बात करना!
अपने सुख में, अपने दुख में, माँ को हर पल साथ करना!
माँ का दिल ममता भरा है, माँ का साया छाँव जैसा,
तुम दुखाकर माँ के दिल को, न कभी अपराध करना!

माँ है कोमल दूब जैसी, माँ सुनहरी धूप जैसी! 
कोई जग में हो न पाए, माँ के ममता रूप जैसी!

यूँ तो रिश्ते हैं कई पर, माँ का कद सबसे निराला!
माँ की लोरी का मधुर स्वर, सात सुर की गीतमाला …।

क्रोध भी माँ के देखो, प्रेम है और एक दिशा है!
माँ के उजले नाम से तो, देखो रौशन हर निशा है!
"देव" माँ ने मुझको हर पल, सच का रस्ता है दिखाया,
माँ के दिल में, माँ के मन में, प्रेम का सागर वसा है!

माँ की वाणी में मधुरता, माँ के मन में है सरलता !
माँ भले ही दुख में हो पर, चाहे हम सबकी कुशलता!

आज भी देती है दुनिया, माँ की कसमों का हवाला!
माँ की लोरी का मधुर स्वर, सात सुर की गीतमाला!!"

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माँ-बहुत विनम्र, बहुत ममता से भरा सम्बन्ध, एक ऐसा ममतामयी जिसका विस्तार, कोई शब्दों से नहीं कर सकता! शब्दों से, केवल माँ  के व्यापक स्वरूप का संदर्भ दिया जा सकता है, व्याख्या नहीं, क्यूंकि माँ, माँ है, तो आइये माँ को नमन करें!"

" रचना मेरी दोनों माताओं कमला देवी जी एवं प्रेमलता जी को समर्पित"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-१५.१०.२०१३

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सर्वाधिकार सुरक्षित"
" मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित"


♥♥ज्वार भाटा..♥♥

♥♥♥♥ज्वार भाटा..♥♥♥♥♥♥
बड़ी मुश्किल से मैंने काटा है!
दर्द का ये जो ज्वार भाटा है!

खून से मेरे हाथ भीग गए,
मैंने काँटों को अपने छांटा है!

मेरे अश्कों की हिफाजत के लिए,
मुझे कुदरत ने दर्द बांटा है! 

देखकर गम न मुझसे पूछे कोई,
अपने सीने में इसे पाटा है!

देखो गाँधी के मुल्क में भी अब,
आज इंसानियत में घाटा है!

उसको होती है कद्र मंजिल की,
जिसने काँटों का सफर काटा है!

"देव" हिम्मत के आगे दुनिया में,
देखो कद मुश्किलों का नाटा है!"

..…चेतन रामकिशन "देव".....
दिनांक-१४.१०.२०१३