Sunday 26 May 2013

♥♥प्रेम-गीत..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रेम-गीत..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
गीत गुनगुनाना चाहता हूँ, यदि हमारा गीत बनो तुम!
तुम बनकर एहसास हमारे, सखी हमारी मीत बनो तुम!
बिना तुम्हारे धूप की गर्मी, मेरे तन को जला रही है,
तुम ही छाया बनो वृक्ष की, तुम ही वर्षा, शीत बनो तुम!

इस जीवन के पथ पर देखो, जिस दिन हम तुम मिल जायेंगे!
उस दिन देखो जीवन पथ में, फूल खुशी के खिल जायेंगे!

मस्तक मेरा उठ जायेगा, यदि हमारी जीत बनो तुम!
गीत गुनगुनाना चाहता हूँ, यदि हमारा गीत बनो तुम...

तुम संग नया सवेरा, साँझ खुशी से भर जाएगी!
सखी तुम्हारे रूप में देखो, कुदरत मेरे घर आएगी!
तुम जब साथ रहोगी तो फिर, मुश्किल से घबराना कैसा,
देख तुम्हारे दिव्य रूप को, मुश्किल देखो डर जाएगी!

अनुभूति के सागर तट पर, हम लहरों से मिलन करेंगे!
हम दोनों एक दूजे का दुःख, सहज भाव से सहन करेंगे!

गीत मेरा दिल को छू लेगा, यदि मेरा संगीत बनो तुम!
गीत गुनगुनाना चाहता हूँ, यदि हमारा गीत बनो तुम...

प्रेम का अर्थ नहीं के इसमें, मीत का ही भूषण होता है!
प्रेम तो जग में हर मानव के, मन का आभूषण होता है!
"देव" प्रेम की खुश्बू से तुम, अपने मन को भरकर देखो,
प्रेम की युक्ति से मानव की, खुशियों का पोषण होता है!

मानवता से प्रेम का जिस दिन, देखो दीपक जल जाता है!
उस दिन हिंसा, छुआछुत का, जलता सूरज ढल जाता है!

घृणा सारी मिट जाएगी, प्रेम की व्यापक रीत बनो तुम!
गीत गुनगुनाना चाहता हूँ, यदि हमारा गीत बनो तुम!"

"
प्रेम-जहाँ परस्पर प्रेम होता है, वो प्रेम चाहें, प्रेमी-प्रेमिका के मध्य हो, या मानव और मानव के मध्य, वहां हिंसा, घृणा, छुआछुत का कोई स्थान नहीं होता! प्रेम, जहाँ परस्पर समर्पण भाव से होता है, वहां लोग अभावों में भी अपने जीवन को हंसकर जीते हैं! तो आइये अपने मन को प्रेम से भूषित करें!"

..चेतन रामकिशन "देव"..
दिनांक-२७.०५.२०१३

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