Wednesday 30 October 2013

♥♥कलम की रोशनी ..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥कलम की रोशनी ..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कलम मुखर रखना है हमको, भाव नहीं मरने देना है!
ये आंसू हैं बड़े कीमती, इनको न झरने देना है!
लोग हमारा नाम देखकर, जो कोसें और लानत बख्शें,
हमको अपनेआपे से वो, काम नहीं करने देना है!

हमको ऊर्जा रखनी होगी, और हमको ये बल रखना है!
हमको अपने हाथ में देखो, इस भारत का कल रखना है!

हमको अपने जीते जी ये, वतन नहीं बिकने देना है!
कलम मुखर रखना है हमको, भाव नहीं मरने देना है!

हमको संयम रखना है पर, नहीं जवानी मृत करनी है!
अपने मन से कभी जीत की, सोच नहीं निवृत करनी है!
"देव" कभी ईमान बेचकर, न दौलत की हसरत रखना,
और निराशा के भावों से, नहीं सोच विकृत करनी है!

अपने छोटे जीवन में हम, बड़ी बड़ी मंजिल पायंगे!
कायरता की मृत्यु पाकर, नहीं जहाँ से हम जायेंगे!

न खोएंगे अपनी ऊर्जा, न खुद को डरने देना है!
कलम मुखर रखना है हमको, भाव नहीं मरने देना है"

...............…चेतन रामकिशन "देव"…..............
दिनांक-३०.१०.२०१३

Tuesday 29 October 2013

♥♥शब्दों की अमरता...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥शब्दों की अमरता...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
भले ही सांसें थम जायें पर, ये अल्फाज़ नहीं मरते हैं!
शब्द हमेशा दीपक बनकर, दुनिया को रौशन करते हैं!

कलम के नायक देह त्यागकर, दुनिया से बेशक जाते हैं,
किन्तु उनके शब्द जहाँ को, सूरज जैसे दमकाते हैं!

मौत की आहट पाकर के भी, सच्चे शब्द नहीं डरते हैं!
भले ही सांसें थम जायें पर, ये अल्फाज़ नहीं मरते हैं....

राजेंद्र से कलम के प्रहरी, मरकर के भी मर नहीं सकते!
लालच, मिथ्या और स्वार्थ से, वो समझोता कर नही सकते!

इन लोगों के शब्द ही देखो, मजलूमों का हित करते हैं!
भले ही सांसें थम जायें पर, ये अल्फाज़ नहीं मरते हैं...

 "देव" सदा ही याद रहेगा, शब्दों का संसार अमर है!
इन शब्दों में मानवता की, कोमलता का हरा शज़र है!

सच्चे और खरे शब्दों से, लोगों में ऊर्जा भरते हैं!
भले ही सांसें थम जायें पर, ये अल्फाज़ नहीं मरते हैं!"

................…चेतन रामकिशन "देव"….................
दिनांक-२९. १०. २०१३ 

Wednesday 23 October 2013

♥♥आदमी..♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥आदमी..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
बहशियत को छोड़कर के, आदमी बनकर तो देखो!
तुम किसी मुफलिस के छाले, कुछ घड़ी गिनकर तो देखो!

रूह को आराम होगा और दिल भी चैन पाए,
तुम किसी बेघर की खातिर, घोंसला बुनकर तो देखो!

अपने आंसू, अपनी पीड़ा, कम लगेगी देखो उस दिन,
तुम किसी भूखे का दुखड़ा, कुछ घड़ी सुनकर तो देखो!

तब तुम्हे दुनिया में देखो, दर्द का एहसास होगा,
एक काँटा तुम किसी के, पांव से चुनकर तो देखो!

"देव" तुमको सारी दुनिया, अपने ही जैसी लगेगी,
छोड़कर काँटों की फितरत, फूल तुम बनकर तो देखो!"

..............…चेतन रामकिशन "देव"…................
दिनांक-२३.१०.२०१३

Tuesday 22 October 2013

♥♥विश्वास...♥♥

♥♥♥♥विश्वास...♥♥♥♥
हर कोई दिन खास होगा,
मन में गर विश्वास होगा!

मंजिले नजदीक होंगी,
और मकसद पास होगा!

घर भी एक मंदिर लगेगा,
प्यार का जब वास होगा!

जो करेगा काम उम्दा,
उसका ही इतिहास होगा!

जीतने का बल बढे जब,
हार का एहसास होगा!

जो इरादे ठोस हों तो,
क़दमों में आकाश होगा!

"देव" जिस दिन हम मिलेंगे,
हर्ष का आभास होगा!"

.…चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक-२३.१०.२०१३

♥♥♥प्रेम के धागे...♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रेम के धागे...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
प्रेम के धागों से निर्मित, आज ये आकाश लगता!
चंद्रमा भी आज देखो, मुझको मेरे पास लगता!

होने तो सारी दुनिया, सारा आलम खुबसूरत,
पर जहाँ में मेरे दिल को, एक तू ही खास लगता!

तेरी आंखे झील सी हैं, तेरी बोली में शहद में है,
और तेरा दिल ये मुझको, प्रेम का आवास लगता!

आँखों में आंसू तेरे बिन, और चहरे पर उदासी,
बिन तेरे मेरा ये जीवन, मुझको तो वनवास लगता!

"देव" जब से मिल गए हो, मुझको तुम इस जिंदगी में,
तब से हर दिन, हर सवेरा, मुझको तो मधुमास लगता!"

…............…चेतन रामकिशन "देव".....................
दिनांक-२२.१०.२०१३

Monday 21 October 2013

♥♥प्यार की मेहँदी...♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥प्यार की मेहँदी...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
प्यार की मेहँदी हमारे, दिल पे हमदम सज रही है!
चूड़ियाँ भी झूमती हैं, और पायल बज रही है!

मेरी खिलती मांग में ये, आपका सिंदूर है!
मेरे चेहरे पे भी हमदम, बस तुम्हारा नूर है!
देख कर तस्वीर तेरी, कर लूँ अपने पास में,
क्या हुआ जो आज मुझसे, तू जो मीलों दूर है!

प्यार की इस चांदनी से, मेरी दुनिया सज रही है!
चूड़ियाँ भी झूमती हैं, और पायल बज रही है….

हाँ मगर तुम जल्दी आना, दूरियां भाती नहीं! 
बात जो तुझमें है वो, तस्वीर से आती नहीं!
"देव" तुमसे मिलने पे, बातें हजारों मैं करुँगी!
रात-दिन और हर घड़ी बस, प्यार तुमसे मैं करुँगी!

बिन तुम्हारे जिंदगी की, हर गली बस कज* रही है!
प्यार की मेहँदी हमारे, दिल पे हमदम सज रही है!"

…...........…चेतन रामकिशन "देव".................
दिनांक-२१.१०.२०१३

(*-टेढ़ी-मेढ़ी, वक्र)

Sunday 20 October 2013

♥♥परी.♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥परी.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मैंने परियों की कहानी, बचपने में जो सुनी थी,
देखकर तुझको लगे ये, तु वही सुन्दर परी है!

तूने वश में कर लिया है, मेरे मन को, मेरे दिल को,
तु निधि है अपनेपन की, प्रेम भावों से भरी है!

जब से तूने रंग दिया है, प्यार के रंगों से मुझको,
तब से मेरी जिंदगी ये, पतझड़ों में भी हरी है!

बिन तेरे मैं जी रहा था, बस उदासी, नाखुशी में,
तूने ही हमदम सजावट, जिंदगानी में करी है!

प्यास मन की बुझ गयी है, तेरी इन नजदीकियों से,
बूंद बनकर जब से तू जो , मेरे दामन में गिरी है!

जब तुम्हारे पास आकर, मैंने जो तुमको निहारा,
तब से शर्म-ओ-हया से, पास आने में डरी है!

"देव" मुझको बिन तुम्हारे, कोई सरगम न सुहाए,
तेरी वाणी की मधुरता, मेरे जीवन में भरी है!"

….......…चेतन रामकिशन "देव"..............
दिनांक-२०.१०.२०१३

Saturday 19 October 2013

♥♥तुम्हारी ख्वाहिशें..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥तुम्हारी ख्वाहिशें..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
प्यार तेरा मिल गया तो, ये जहाँ भी खिल गया है!
प्यार के मरहम से मेरा, घाव एक एक सिल गया है!
जिंदगी में कोई हसरत, कोई ख्वाहिश न रही अब,
जब से तेरा प्यार पाया, मुझको सब कुछ मिल गया है!

बिना परों के उड़ रहा हूँ, मैं तुम्हारा प्यार पाकर!
लिख रहा हूँ गीत कोई, तुमको शब्दों में वसाकर!
आज बेशक हम ख्यालों की, डगर पर चल रहे हैं,
एक दिन पर आएगा जब, हम मिलेंगे पास आकर!

प्यार की भीगी लहर से, सूखा तट भी धुल गया है!
प्यार तेरा मिल गया तो, ये जहाँ भी खिल गया है!

हमको हसरत है तुम्हारी, तुमको चाहत है हमारी!
कुछ हमारी खींचातानी, कुछ शरारत है तुम्हारी!
"देव" एक पल की भी दूरी, रास अब आती नहीं है,
हमको तेरी आरजू है, तुमको है आदत हमारी!

प्यार पाकर जिंदगी में, द्वार सुख का खुल गया है!
प्यार तेरा मिल गया तो, ये जहाँ भी खिल गया है!"

….........…चेतन रामकिशन "देव"..............
दिनांक-१९.१०.२०१३

Friday 18 October 2013

♥आज अपनी लेखनी से...♥

♥♥♥♥♥आज अपनी लेखनी से...♥♥♥♥♥♥♥
आज अपनी लेखनी से, गीत फिर मैंने रचाया!
अपने शब्दों से जगत को, नेह का मतलब सिखाया!
कुछ समर्पण, कुछ मधुरता, भावना लेकर के मन की,
मैंने अपनी लेखनी में, पीड़ितों का दुख वसाया!

खुद की खातिर ही जिए जो, आदमी किस काम का है!
फिर तो जीवन आदमी का, सिर्फ खाली नाम का है!

वो ही अच्छा आदमी है, औरों के जो काम आया!
आज अपनी लेखनी से, गीत फिर मैंने रचाया!

देश में वंचित करोड़ों, देश में भूखे बहुत हैं!
उनके आंगन में लगे वो, पेड़ अब सूखे बहुत हैं!
न ही नेता, न ही अफसर, "देव" कोई न सुने अब,
इन बड़े लोगों के दिल तो, आजकल रूखे बहुत हैं!

भूख की इस वेदना को, शब्द मेरे सुन रहे हैं!
एक दिन बदलाव होगा, ऐसे सपने बुन रहे हैं!

मिट गया उसका जहाँ भी, जिसने लोगों को सताया
आज अपनी लेखनी से, गीत फिर मैंने रचाया!"

…........…चेतन रामकिशन "देव".................
दिनांक-१९.१०.२०१३

♥♥चंद्रमा की श्वेत किरणें...♥♥

♥♥♥♥♥चंद्रमा की श्वेत किरणें...♥♥♥♥♥♥♥
चंद्रमा की श्वेत किरणें, भरके अपने अंजुली में!
कर रहा हूँ लेप उसका, शब्द रूपी हर कली में !

चन्द्र किरणों की छुअन से, शब्द उद्धृत हो रहे हैं!
चांदनी का साथ पाकर, वो अलंकृत हो रहे हैं!
चांदनी की पायलों ने, गीत में सरगम भरी है,
चांदनी के साथ मिलकर, भाव झंकृत हो रहे हैं!

चांदनी ने प्राण भेजे, फूल में, फल और फली में!
चंद्रमा की श्वेत किरणें, भरके अपने अंजुली में!

आज हम अपनी सखी संग, चांदनी में संग चलेंगे!
चांदनी की रौशनी में, प्रेम के उपवन खिलेंगे!

चांदनी का रूप समरस, गाँव, कस्बे और गली में!
चंद्रमा की श्वेत किरणें, भरके अपने अंजुली में!"

….........…चेतन रामकिशन "देव"..................
दिनांक-१८.१०.२०१३

♥♥अब तुम्हारे गेसुओं में...♥♥

♥♥♥♥♥अब तुम्हारे गेसुओं में...♥♥♥♥♥♥♥
अब तुम्हारे गेसुओं में, प्यार का मौसम नहीं!
प्यार की कसमों-वफ़ा में, लग रहा के दम नहीं!
आज तुम हमसे बने हो, इस तरह से अजनबी,
साथ मेरा छोड़कर भी, आंख तेरी नम नहीं!

आज बेशक जा रहे हो, साथ मेरा छोड़कर!
कांच से नाजुक मेरा दिल, एक पल में तोड़कर!
एक दिन लेकिन जहाँ में, तुम बहुत पछताओगे!
जब कभी तुम अपने दिल को, देखो टूटा पाओगे!

दर्द का सागर मिला है, ये जरा भी कम नहीं!
आज तेरे गेसुओं में, प्यार का मौसम नहीं 

मेरे दिल में बद्दुआ न, कोई भी तुमसे गिला!
मान लूँगा मेरे हाथों ही, हमारा घर जला!
"देव" तुमको याद मेरी, देखो उस दिन आएगी!
जब तेरी आँखों की निंदिया, दर्द में छिन जाएगी! 

जिंदगी तो जीनी ही है, साथ बेशक तुम नहीं!
आज तेरे गेसुओं में, प्यार का मौसम नहीं!"

….....…चेतन रामकिशन "देव"................
दिनांक-१८.१०.२०१३

Thursday 17 October 2013

♥♥पत्थर का नगीना...♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥पत्थर का नगीना...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
हमने पत्थर का नगीना, अपनी किस्मत में जड़ा है!
दर्द लेकिन बाहें खोले, अब भी रस्ते में खड़ा है!

काटने को काट लेंगे, बिन तेरे ये जिंदगी पर ,
बिन तुम्हारे जिंदगी का, इम्तहां बेहद कड़ा है!

चंद लोगों ने भले ही, नाम दौलत में किया पर,
आज भी भारत का मुफलिस, देखो सड़कों पे पड़ा है!

लिखने को तो लिखते बेशक, लोग के ढेरों किताबें,
पर वो उम्दा है जो जिसके, सीने में ये दिल बड़ा है!

"देव" उसने मेरी चाहत को, यहाँ ठुकराया लेकिन,
फिर भी मेरा दिल न जाने, प्यार की जिद पे अड़ा है!"

..............…चेतन रामकिशन "देव"......................
दिनांक-१८.१०.२०१३

Wednesday 16 October 2013

♥♥शब्दों के फूल...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥शब्दों के फूल...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
शब्द मेरे फूल बनकर, एक दिन महका करेंगे!
बनके पंछी आसमां में, रात दिन चहका करेंगे!
वो सुबह की धूप मलकर, अपनी सूरत को सजाकर,
गेंहू की बाली की तरह, रात दिन लहका करेंगे!

अपने शब्दों में भरी है, मैंने है ये आवाज़ मन की!
शब्द मेरे जानते हैं, वेदना देखो दुखन की!

दर्द में गम को हराकर, हर्ष में बहका करेंगे!
शब्द मेरे फूल बनकर, एक दिन महका करेंगे

जो मेरे दिल को दुखाकर, खुद हंसी में रह रहे हैं!
शब्द मेरे फिर भी देखो, उनको अपना कह रहे हैं!
"देव" मैं शब्दों की अपने, और क्या बातें बताऊँ,
देखो हंसकर शब्द मेरे, मेरे गम को सह रहे हैं!

अपने शब्दों से जहाँ में, प्रेम का दीपक जलाऊं!
नफरतों को, साजिशों को, रंजिशों को मैं भुलाऊं!

अपने हक की जंग में ये, आग बन दहका करेंगे!
शब्द मेरे फूल बनकर, एक दिन महका करेंगे!"

.............…चेतन रामकिशन "देव"................
दिनांक-१७.१०.२०१३


♥♥मेरे मन की कोशिकायें♥♥

♥♥♥♥♥♥मेरे मन की कोशिकायें♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
बिन तुम्हारे शांत सी हैं, मेरे मन की कोशिकायें!
न दवाओं का असर है, न ही लगती हैं दुआयें!
तुम नहीं तो किसको देखें, तुम नहीं तो किसको बोलें,
बिन तुम्हारे हाल दिल का, हम भला किसको सुनायें!

बिन तेरे न चेतना है, बस उदासी ही वसी है!
मन की आशा टूटती हैं, न हंसी है, न खुशी है!
"देव" अब तो बिन तुम्हारे, सांस भी भारी हुई है!
जिंदगी पीड़ा के हाथों, लगता है हारी हुयी है!

कौनसी युक्ति है जिससे, हम तुम्हें दिल से भुलायें!
बिन तुम्हारे शांत सी हैं, मेरे मन की कोशिकायें!

प्रेम की विरह की पीड़ा, कंठ से मैं क्या सुनाऊं!
बस रहूँ मैं खोया खोया, और मैं आंसू बहाऊं!
हर घड़ी तुमसे मिलन की, बस यहाँ उम्मीद रखूं,
बिन तुम्हारे जिंदगी मैं, किस तरह तन्हा बिताऊं!

कौन देखे टूटे दिल को, किसको हम जाकर दिखायें!
बिन तुम्हारे शांत सी हैं, मेरे मन की कोशिकायें!"

..............…चेतन रामकिशन "देव"..................
दिनांक-१६.१०.२०१३

♥♥टूटते तारों से...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥टूटते तारों से...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
टूटते तारों से मन्नत, मांगकर भी क्या मिला है!
आज भी तो जिंदगी में, दर्द का एक सिलसिला है!

अपने हाथों से तराशा, मैंने अपनी देह को,
तब कहीं मेरा बदन ये, आदमी जैसा ढ़ला है!

दर्द की फरियाद देखो, कोई सुनता ही नहीं, 
इसीलिए तो अब जहाँ में, चुप ही रहने में भला है!

जिंदगी में जब से मेरी, वक़्त ये आया बुरा,
तब से देखो चांदनी में भी, हमारा घर जला है!

तब से मेरा रंग खिलकर, चाँद सा उजला हुआ,
जब से मैंने आंसुओं को, अपने चेहरे पे मला है!

आज फिर डूबी हैं आँखे, आंसुओं की बाढ़ से,
ऐसा लगता है ग़मों की, बर्फ का पर्वत गला है!

"देव" फिर भी जिंदगी से, न गिला मुझको कोई,
रात दिन किस्मत ने बेशक, मेरी खुशियों को छला है!"  

............…चेतन रामकिशन "देव".....................
दिनांक-१६.१०.२०१३

♥♥वेदना की आंच ..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥वेदना की आंच ..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
गीत का सम्बन्ध मेरे, मन के गहरे भाव से है!
आपकी स्मृतियों का, नेह मन के घाव से है!
वेदना की आंच पे मैं तप के, कुंदन हो गया हूँ,
केंद्रबिंदु अब विषय का, बस इसी बदलाव से है!

कैसे मन से वेदना की धार को, अवमुक्त कर दूँ!
कैसे मैं संवेदना को, अपने मन से सुप्त कर दूँ!
एक क्षण की छूट से भी, बाढ़ का खतरा बना है,
कैसे दुख की बाढ़ से मैं, नव किरण को लुप्त कर दूँ!

मन की मखमल सी सतह का, ध्यान करता जा रहा हूँ!
इसीलिए मैं अपने दुख का, पान करता जा रहा हूँ!

वेदना को ये समर्पण, मानसिक सद्भाव से है!
गीत का सम्बन्ध मेरे, मन के गहरे भाव से है…

वेग दुख का नापने को, युक्तियाँ कुछ जान ली हैं!
कुछ चनौती जिंदगी में, फिर से मैंने ठान ली हैं!
"देव" मैंने वेदना के कड़वे रस का पान करके,
देखकर दर्पण में खुद को, अपनी कमियां जान ली हैं!

वेदना के भ्रूण से मैं, सुख की रचना कर रहा हूँ!
लिखके मैं आवाज मन की, काव्य रचना कर रहा हूँ!

मेरा चिंतन भी प्रभावित, प्रेम के बिखराव से है!
गीत का सम्बन्ध मेरे, मन के गहरे भाव से है!"

.............…चेतन रामकिशन "देव"................
दिनांक-१६.१०.२०१३

Monday 14 October 2013

♥♥माँ की लोरी(एक मधुर स्वर)..♥♥♥


♥♥♥♥♥माँ की लोरी(एक मधुर स्वर)..♥♥♥♥♥♥♥
माँ की लोरी का मधुर स्वर, सात सुर की गीतमाला!
माँ से चंदा में रजत है, माँ से सूरज में उजाला!
माँ की सूरत फूल जैसी, माँ का आँचल रेशमी है,
माँ ने हर मुश्किल से देखो, हर घड़ी हमको निकाला!

माँ खुशी देती है हमको, माँ दुआ है, माँ दवा है!
शीत में ऊष्मा की प्रेषक और घुटन में वो हवा है!

लड़खड़ाया जब भी मैं तो, माँ ने ही मुझको संभाला!
माँ की लोरी का मधुर स्वर, सात सुर की गीतमाला! ….

मन को भाये माँ से मिलना और माँ से बात करना!
अपने सुख में, अपने दुख में, माँ को हर पल साथ करना!
माँ का दिल ममता भरा है, माँ का साया छाँव जैसा,
तुम दुखाकर माँ के दिल को, न कभी अपराध करना!

माँ है कोमल दूब जैसी, माँ सुनहरी धूप जैसी! 
कोई जग में हो न पाए, माँ के ममता रूप जैसी!

यूँ तो रिश्ते हैं कई पर, माँ का कद सबसे निराला!
माँ की लोरी का मधुर स्वर, सात सुर की गीतमाला …।

क्रोध भी माँ के देखो, प्रेम है और एक दिशा है!
माँ के उजले नाम से तो, देखो रौशन हर निशा है!
"देव" माँ ने मुझको हर पल, सच का रस्ता है दिखाया,
माँ के दिल में, माँ के मन में, प्रेम का सागर वसा है!

माँ की वाणी में मधुरता, माँ के मन में है सरलता !
माँ भले ही दुख में हो पर, चाहे हम सबकी कुशलता!

आज भी देती है दुनिया, माँ की कसमों का हवाला!
माँ की लोरी का मधुर स्वर, सात सुर की गीतमाला!!"

"
माँ-बहुत विनम्र, बहुत ममता से भरा सम्बन्ध, एक ऐसा ममतामयी जिसका विस्तार, कोई शब्दों से नहीं कर सकता! शब्दों से, केवल माँ  के व्यापक स्वरूप का संदर्भ दिया जा सकता है, व्याख्या नहीं, क्यूंकि माँ, माँ है, तो आइये माँ को नमन करें!"

" रचना मेरी दोनों माताओं कमला देवी जी एवं प्रेमलता जी को समर्पित"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-१५.१०.२०१३

"
सर्वाधिकार सुरक्षित"
" मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित"


♥♥ज्वार भाटा..♥♥

♥♥♥♥ज्वार भाटा..♥♥♥♥♥♥
बड़ी मुश्किल से मैंने काटा है!
दर्द का ये जो ज्वार भाटा है!

खून से मेरे हाथ भीग गए,
मैंने काँटों को अपने छांटा है!

मेरे अश्कों की हिफाजत के लिए,
मुझे कुदरत ने दर्द बांटा है! 

देखकर गम न मुझसे पूछे कोई,
अपने सीने में इसे पाटा है!

देखो गाँधी के मुल्क में भी अब,
आज इंसानियत में घाटा है!

उसको होती है कद्र मंजिल की,
जिसने काँटों का सफर काटा है!

"देव" हिम्मत के आगे दुनिया में,
देखो कद मुश्किलों का नाटा है!"

..…चेतन रामकिशन "देव".....
दिनांक-१४.१०.२०१३


Sunday 13 October 2013

♥♥आज कल का आदमी ..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥आज कल का आदमी ..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
आज कल का आदमी तो, आदमी बस नाम का है!
आदमी का अब ईमां भी, कुछ टकों, कुछ दाम का है!
कोई चोखट पर किसी की, तोड़ दे दम मिन्नतों में,
पर कहे उस घर का मालिक, वक़्त का ये आराम का है!

आज कल का आदमी तो, भावना से रिक्त है!
मार कर इंसानियत वो, बहशियत में लिप्त है!

आज कल का आदमी प्यासा, लहू के जाम का है!
आज कल का आदमी तो, आदमी बस नाम का है….

आदमी अब आदमी का, खून पीना चाहता है!
आदमी भगवान बनकर, जग में जीना चाहता है!
"देव" बस खुद को यहाँ पर, धूल तक भी न छुए,
पर वो मेहनत मुफलिसों की, और पसीना चाहता है!

आज कल इंसानियत को, आदमी ही लूटता है!
जेल, थाने और कचहरी, में रकम छूटता है!

बगलों में छुरियां हैं लेकिन, नाम मुख पे राम का है!
आज कल का आदमी तो, आदमी बस नाम का है!"

…………चेतन रामकिशन "देव".......................
दिनांक-१४.१०.२०१३

♥♥आसमां की प्यास ..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥आसमां की प्यास ..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
चलो धीरे धीरे यूँ चलते रहो तुम, ठहरने से मंजिल नहीं पास होती!
के होती ही जिनकी दिलों में निराशा, उन्हें जिंदगी से नहीं आस होती!
वो कैसे रहेंगे यहाँ एक होकर, के जिनको मोहब्बत नहीं ख़ास होती,
जो बैठे हैं हाथों में बस हाथ लेकर, उन्हें खुद की मेहनत नहीं रास होती!

जो इतिहास जग में बनाने की खातिर, चले हैं सफर चाहें कांटो भरा हो!
वो सी लेते हैं घाव हाथों से अपने, भले घाव देखो के कितना हरा हो!
सुनो "देव" वो क्या करेंगे मोहब्बत, ख्यालों में  जिनके जहर एक भरा हो,
नहीं फर्क तन के रंगों से पड़ेगा, वो दिल जिनके सीने में देखो खरा हो!

वो होकर के पर भी नहीं उड़ सकेंगे, जिन्हें आसमां की नहीं प्यास होती!
चलो धीरे धीरे यूँ चलते रहो तुम, ठहरने से मंजिल नहीं पास होती!"

.........................चेतन रामकिशन "देव".....................................
दिनांक-१३.१०.२०१३

♥♥नाम अम्बर पे...♥♥

♥♥♥♥नाम अम्बर पे...♥♥♥♥
नाम अम्बर पे लिख दिया तेरा,
और धरती तुम्हीं से प्यारी है!

तेरी चाहत, तेरी मोहब्बत से,
मेरे जीवन में खुशगवारी है!

न अँधेरा हमें सताएगा,
चाँद-तारों से अपनी यारी है!

तुमसे मिलकर ही चैन आएगा,
देखो इतनी ये बेकरारी है!

इश्क के दुश्मनों की भीड़ बहुत,
प्यार सदियों से मगर जारी है!

उसको नफरत यहाँ पे छू न सके,
प्यार का जो यहाँ पुजारी है!

"देव" दुनिया में प्यार के बिन तो,
सांस पत्थर से ज्यादा भारी है!"

...चेतन रामकिशन "देव"....
दिनांक-१३.१०.२०१३

Saturday 12 October 2013

♥♥मिन्नतों का लिहाज..♥♥

♥♥♥मिन्नतों का लिहाज..♥♥♥
मिन्नतों का लिहाज कर लेते!
प्यार थोड़ा सा आज कर लेते!

सारी दुनिया को दे रहे हो दुआ,
हम पे भी थोड़ा नाज कर लेते!

आंसुओं से बनाके गीत कोई,
अपनी आहों को साज कर लेते!

तेरे हाथों की हम छुअन पाकर,
दर्दे -दिल का इलाज कर लेते!

देखो मजहब से पहले इन्सां हम,
साथ पूजा, नमाज कर लेते!

प्यार की, दोस्ती की, चाहत की,
पूरी रस्मों-रिवाज कर लेते!

"देव" बाँहों में तेरी रोकर के,
खुद को हम खुश-मिजाज कर लेते!"

...चेतन रामकिशन "देव"...
दिनांक-१२.१०.२०१३


Friday 11 October 2013

♥♥प्रेम की प्रस्तावना..♥♥

♥♥♥♥♥♥प्रेम की प्रस्तावना..♥♥♥♥♥♥♥♥
प्रेम की प्रस्तावना में नाम तेरा ही निहित है!
तेरी वाणी में मधुरता और तेरा मन सुचित है!
प्रीत ने मुझको तुम्हारी, हर घड़ी बस ये सिखाया,
हर किसी मानव के हित में, प्रेम का रस्ता उचित है!

प्रेम की इस धारणा को, अपने मन में धर लिया है!
प्रेम की धारा को मैंने, अपने मन में भर लिया है!

प्रेम का पथ न ही दूषित, प्रेम का पथ न दुरित है!
प्रेम की प्रस्तावना में नाम तेरा ही निहित है….

तुम सबद हो प्रेम पूरित, तुम सवेरा प्रीत का हो!
तुम कविता की रचयिता, भाव तुम ही गीत का हो!
तुमसे ही जीवन में मेरे, प्रेरणा का रंग भरा है,
तुम ही आशा की लड़ी हो, तुम समर्थन जीत का हो!

उगते सूरज की किरण हो, पूर्णिमा की रात हो तुम!
जिंदगी की इस गति में, प्राण बनकर साथ हो तुम!

प्रेम का रंग आसमानी, आत्मा से ये उदित है!
प्रेम की प्रस्तावना में नाम तेरा ही निहित है……

प्रेम बिन कुछ भी नहीं है, प्रेम हर एहसास में है!
प्रेम में वो दूर होकर भी, हमारे पास में है!
प्रेम से रातें मनोरम, प्रेम से दिन भी सुहाना,
ये विरह में, ये मिलन में, प्रेम हर आभास में है!

"देव" जबसे प्रेम की, बूंदों ने मेरा मन छुआ है!
तब से मेरा दिल भी देखो, प्रेम का सागर हुआ है!

प्रेम जाति, धर्म, मजहब और हिंसा से रहित है!
प्रेम की प्रस्तावना में नाम तेरा ही निहित है!"
"
प्रेम-एक ऐसा शब्द, जिसका विस्तार पटल सागर से भी विस्तृत! प्रेम का एहसास, चाहें वो प्रेमी-प्रेमिका के मध्य हो, अथवा सम्बन्धियों के, वो समाज के भीतर का हो अथवा देश के समर्पण से जुड़ा, प्रेम, हर भाव, हर सम्बन्ध में अमुल्य होता है! प्रेम हेतु परस्पर सम्मुख होना ही शर्त नहीं, प्रेम तो एहसास की वो पावन अनुभूति है, जिसे आत्मा से महसूस किया जा सकता है, तो आइये प्रेम करें।"

चेतन रामकिशन "देव"

दिनांक-१२.१०.२०१३

" सर्वाधिकार सुरक्षित"

♥♥दर्द की कहानी..♥♥

♥♥♥दर्द की कहानी..♥♥♥♥
दर्द की एक नयी कहानी है!
मेरी आँखों का जो ये पानी है!

अब मुझे चाँद की तरह न कहो,
मेरी तस्वीर ये पुरानी है!

रात की नींद, दिन का चैन गया,
प्यार की देखो ये निशानी है!

बोझ समझो न कभी बेटी को,
बेटी तो नूर की रवानी है!

माँ का चेहरा जमीं पे रब जैसा,
माँ का आंचल भी आसमानी है!

मुल्क के काम न जो आ पाए,
नाम की फिर तो वो जवानी है!

"देव" तुम हाथ न छुड़ाओ अभी,
दोस्ती उम्र भर निभानी है!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-११.१०.२०१३

Thursday 10 October 2013

♥♥♥ग़मों की बरफ..♥♥♥



♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥ग़मों की बरफ..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जमे आंसुओं की बरफ को ग़मों की, अगन में तपाकर बहाने का मन है!
मुझे अपने माथे पे पड़ती शिक़न को, के झूठी हंसी से दबाने का मन है!
ये दुनिया है पत्थर मगर फिर भी इसको, के अपने दुखों को सुनाने का मन है,
के मैं रो रहा हूँ मगर इस जहाँ को, के अपने से हुनर से हंसाने का मन है!

यहाँ पे निवेदन, यहाँ मिन्नतों की, कद्र देखो कोई भी करता नहीं है!
किसी के ज़ख्म को मरहम और दवा से, कोई एक पल को भी भरता नहीं है!

इसी वास्ते देखो अपने ज़ख्म पर, के अब खुद ही मरहम लगाने का मन है!
जमे आंसुओं की बरफ को ग़मों की, अगन में तपाकर बहाने का मन है…

यहाँ हसरतों की जली आज होली, के इस रौशनी से दिवाली मनाऊं!
कोई आदमी तो नहीं सुन रहा है, के अब पत्थरों को मोहब्बत सिखाऊं!
सितमगर बहुत हैं, नहीं कोई अपना, मैं किसको जहाँ में के अपना बताऊँ,
मेरे दिल ने देखो पढ़ी है मोहब्बत, इसी वास्ते मैं मोहब्बत निभाऊं!

अभी बेबसी है, कभी तो ख़ुशी पर, के मेरी तरफ को भी आया करेगी!
के पायल हंसी की कभी तो हमारे, के कानों में गुंजन सुनाया करेगी!

इसी वास्ते देखो इस दर्दे गम को, के सीने से अपना लगाने का मन है!
जमे आंसुओं की बरफ को ग़मों की, अगन में तपाकर बहाने का मन है…

नहीं दर्द पाकर के थमना है मुझको, नहीं चोट खाकर के रुकना है मुझको!
ग़मों से नहीं खौफ खाना है मुझको, नहीं दर्द के आगे झुकना है मुझको!
सुनो "देव" हम तो बढे जायेंगे अब, के हम जंग जीवन से करते रहेंगे!
यहाँ नूर बनकर के लफ्जों से अपने, के दुनिया में हम तो बिखरते रहेंगे!

कोई साथ दे या नहीं साथ दे अब, के मुझको किसी से शिकायत नहीं है!
के मैं जैसा हूँ मैं तो वैसा दिखूंगा, मेरी शख्सियत में रवायत नहीं है!

मशीनों के युग में, बिना दिल के बुत को, के ममता की लोरी सुनाने का मन है!
जमे आंसुओं की बरफ को ग़मों की, अगन में तपाकर बहाने का मन है!"

"
दर्द-एक ऐसा शब्द जिससे हर कोई बचना चाहता है पर दर्द भी गतिशील होता है, वो जीवन पथ में मानव से जरुर भेंट करता है, जब व्यक्ति उस दर्द को अपने अनुभव में समाहित कर लेता है तो वो दर्द, शक्ति का काम करता है, हाँ अत्यंत पीड़ा व्यक्ति को परिवर्तित करने का प्रयास करती है मगर जो दर्द को शक्ति बना लेते हैं वे योद्धा हो जाते हैं, तो आइये दर्द को शक्ति बनायें!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-११.१०.२०१३ 

♥जरा सा दिल...♥♥

♥♥♥♥जरा सा दिल...♥♥♥♥♥♥
शब्दों का कद तो बड़ा है लेकिन,
देखो सीने में दिल जरा सा है!

मैंने घावों पे मला जबसे नमक,
तब से हर घाव कुछ भरा सा है!

कैसे कोई किसी का दर्द सुने,
दिल का एहसास अब मरा सा है!

जब से पाए हैं, इश्क में आंसू,
तब से दिल प्यार से डरा सा है!

देखकर सूखा कोई फूंक न दे,
पेड़ पतझड़ में भी हरा सा है!

मेरा चेहरा भले ही उजला नहीं,
दिल मेरा पर बहुत खरा सा है!

"देव" मंजिल की झलक दिखने लगी,
काम जब हाथ से करा सा है!"

…चेतन रामकिशन "देव"...
दिनांक-१०.१०.२०१३





Wednesday 9 October 2013

♥♥गुनाहों से तौबा..♥♥

♥♥♥♥♥गुनाहों से तौबा..♥♥♥♥♥♥♥
के सीने में अपने सिसकता हुआ दिल,
के देखा है हमने निगाहों से अपनी!

बुरे वक़्त में दूर जाते हुए मैंने,
देखा है अपनों को राहों से अपनी!

यहाँ लोग इंसानियत को ही देखो,
जुदा कर रहे हैं पनाहों से अपनी!

उन्हें बस फ़िक्र है के अपनी ख़ुशी की,
के मैं हूँ परेशां कराहों से अपनी!

मगर जिंदगी है खुदा की अमानत,
इसी अपने हाथों से ठुकराऊं कैसे!

के मैं पत्थरों की तरफ देखकर के,
के दिल अपना पत्थर बनाऊं भी कैसे!

के मैं आदमी हूँ, के वो आदमी हैं,
तो फिर मैं जहाँ को सताऊं भी कैसे!

नहीं "देव" मेरी तड़प से जो मतलब,
तो मैं दर्द दिल का बताऊँ भी कैसे!

कभी तो बुरा वक़्त मेरा ढलेगा,
वो तौबा करेंगे गुनाहों से अपनी!

के सीने में अपने सिसकता हुआ दिल,
के देखा है हमने निगाहों से अपनी!"

.....चेतन रामकिशन "देव".....
दिनांक-१०.१०.२०१३

♥♥आँखों में चाँद ...♥♥

♥♥♥आँखों में चाँद ...♥♥♥♥♥♥
फिर नया ख्वाब नजर आया है!
चाँद आँखों में उतर आया है!

हर तरफ है नया उजाला सा,
नूर धरती पे बिखर आया है!

मुस्कराहट है मेरे चेहरे पर,
प्यार का जब से असर पाया है!

आंख में देखो एक नमी आई,
किसी बिछड़े ने जो घर पाया है!

जब से अश्कों की स्याही से लिखा,
तब से हर लफ्ज निखर आया है!

लोग देते हैं यहाँ दाद मुझे,
मैंने हंसने का हुनर पाया है!

"देव" बस तुझको देखता ही रहूँ,
आज ये वक़्त ठहर आया है!"

.....चेतन रामकिशन "देव".....
दिनांक-०९.१०.२०१३

♥♥खून ...♥♥

♥♥♥♥♥खून ...♥♥♥♥♥
खून रिसता है मेरे घावों से,
कोई मरहम, दवा लगाता नहीं!

सब चुभाते हैं गम के ख़ार मुझे,
कोई राहों में गुल बिछाता नहीं!

रात दिन जिसको अपना समझा है,
वही अब प्यार को निभाता नहीं!

जिसको देखो वही तमाशाई,
लुटती इज्ज़त कोई बचाता नहीं!

चोट इतनी लगी है इस दिल को,
चाहके भी मैं मुस्कुराता नहीं!

एक दिन सबकी वापसी होगी,
कोई सदियों के लिए आता नहीं!

"देव" बस दर्द का ही सूरज है,
छाँव का चाँद झिलमिलाता नहीं!"

...चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक-०९.१०.२०१३


Tuesday 8 October 2013

♥♥ऐतबार ....♥♥

♥♥♥♥♥ऐतबार ....♥♥♥♥♥
बेकरारी में भी करार रखो!
होंसला अपना बरक़रार रखो!

जो सिखाया है बुजुर्गों ने हमें,
हर घड़ी उनकी यादगार रखो!

चाहें दुख हो, या गमों के आंसू,
अपने चेहरे को खुशगवार रखो!

हर एक इन्सां यहाँ पे अपना है,
न ही रंजिश, नहीं दीवार रखो!

बाद मरने के लोग याद करें,
अपने सीने में इतना प्यार रखो!

प्यास से मरते हुए मुफलिस को,
बारिशों सी हसीं फुहार रखो!

"देव" मिल जाएगी हर एक मंजिल,
हाँ मगर, खुद पे ऐतबार रखो!"

..चेतन रामकिशन "देव"..
दिनांक-०९.१०.२०१३





♥♥आफ़्ताब....♥♥

♥♥♥♥♥आफ़्ताब....♥♥♥♥♥
तुम किसी आफ़्ताब जैसे हो!   
मेरी आँखों के ख्वाब जैसे हो!

तुमको पढ़कर के मेरा दिल न भरे,
प्यार की इक किताब जैसे हो!

देखो इतने बड़े जहाँ में तुम,
कुदरती एक ख़िताब जैसे हो!

मेरे लफ्जों की जिंदगानी में,
नूर का एक बहाव जैसे हो!

न ही मुश्किल, के नहीं बोझ कोई,
उँगलियों के हिसाब जैसे हो!

देखकर तुमको मैं महक जाऊं,
एक खिलते गुलाब जैसे हो!

"देव" एहसास की मोहब्बत में,
रेशमी एक लगाव जैसे हो!"

.….चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक-०८.१०.२०१३

Monday 7 October 2013

♥♥चन्दन का अधिवास....♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥चन्दन का अधिवास....♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुम्ही आंसू में हो, तुम्ही मेरी हंसी, तुम्ही सावन, तुम्ही तो मधुमास हो! 
तुम्ही उम्मीद में, आरजू में तुम्ही, तुम्ही इच्छाओं में, तुम्ही विश्वास हो!
चांदनी में तुम्ही, ज्योत में भी तुम्ही, तुम्ही हो लालिमा, तुम्ही प्रकाश हो!
तुमसे मीलों का है फासला ये मगर, मेरे दिल के सखी तुम सदा पास हो!

गीत की भावना में झलक है तेरी, मेरी आँखों में देखो चमक है तेरी!
मेरे लफ्जों में देखो तुम्हारी दमक, मेरे कानों में हर पल खनक है तेरी!

तुम्ही बारिश में हो, तुम्ही बादल में हो, सात रंगों का झिलमिल सा आकाश हो!
तुम्ही आंसू में हो, तुम्ही मेरी हंसी, तुम्ही सावन, तुम्ही तो मधुमास हो……

न ही सीमा कोई, न ही हैं बंदिशें, प्यार की भावना तो ये आज़ाद है!
नफरतों से यहाँ देखो गुल न खिलें, प्यार से बागवां देखो आबाद है!
"देव" रजनी तुम्ही, तुम्ही प्रभात हो, तुम्ही हो नम्रता, तुम्ही फरियाद हो!
कर्म की व्यस्तता में भी विस्मृत नहीं, हर घड़ी मेरे दिल को तुम्ही याद हो!

तुम बदलकर के पथ अपना जाओ मगर, दिल की आवाज लेकिन नहीं मारना!
तुम भले ही गगन में न उड़ना मगर, अपनी परवाज़ लेकिन नहीं मारना!

तुम्ही हो वंदना, तुम्ही आराधना, तुम्ही चन्दन का मिश्रित अधिवास हो!
तुम्ही आंसू में हो, तुम्ही मेरी हंसी, तुम्ही सावन, तुम्ही तो मधुमास हो!"

….......................चेतन रामकिशन "देव"………........................
दिनांक-०७.१०.२०१३

Saturday 5 October 2013

♥♥♥दास्ताँ दर्द की....♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥दास्ताँ दर्द की....♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
दास्ताँ दर्द की लिखी मैंने, पास आ जाओ मैं सुना दूंगा!
मेरे दिल में हैं कितने घाव बने, आओ तुमको सभी गिना दूंगा!
बैठने को जगह नहीं तो क्या, मैं ख्यालों के घर बना दूंगा!
धीरे धीरे ही मगर सुनते रहो, पूरी ही ज़िन्दगी सुना दूंगा!

मेरे पैरों में कंकरों की चुभन, घाव रिस रिस के यहाँ बहते हैं!
कल तलक जो मेरे अपने थे यहाँ, आज गैरों की तरह रहते हैं!

प्यास की तुम न यहाँ फ़िक्र करो, आंसुओं की नदी बना दूंगा! 
दास्ताँ दर्द की लिखी मैंने, पास आ जाओ मैं सुना दूंगा!

लोग पल भर में यहाँ देखो तो, मौसमों की तरह बदल जायें!
छोड़कर राह वो हमदर्दी की, देखकर दूर से निकल जायें!
"देव" वो आग न बुझाते हैं, लोग बेशक ही यहाँ जल जायें!
कोई घावों पे न रखे मरहम , अंग बेशक ही यहाँ गल जायें!

कोई आवाज़ नहीं सुनता है, कोई न दर्द को सहारा दे!
पार कर लेते हैं नदी सब पर, कोई डूबे को न किनारा दे!

दर्द को तुम जो नहीं जानो अगर, उसकी तस्वीर मैं बना दूंगा!
दास्ताँ दर्द की लिखी मैंने, पास आ जाओ मैं सुना दूंगा!"
        
…........................चेतन रामकिशन "देव"………...............
दिनांक-०६.१०.२०१३

♥♥ये मौत भी देखो....♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥ये मौत भी देखो....♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
ये मौत भी देखो है क्रूर कितनी, नहीं चीख सुनती, नहीं दर्द जाने!
नहीं रोते मुखड़ों से इसको मोहब्बत, और ये बिछड़ने की पीड़ा न जाने!
नहीं देखो मिन्नत सुने ये किसी की, नहीं देखो कोई निवेदन भी माने!
जड़ों को यहाँ दर्द होता है कितना, ये पौधे उखड़ने की पीड़ा न जाने!

मगर मौत सच है, ये आएगी निश्चित, नहीं मौत से हम यहाँ बच सकेंगे!
जब पूरी होंगी ये सांसें हमारी, नहीं सांस हाथों से हम रच सकेंगे!

ये मौत देखो चलाती है अपनी, नहीं तंज सुनती, नहीं सुनती ताने!
ये मौत भी देखो है क्रूर कितनी, नहीं चीख सुनती, नहीं दर्द जाने!

नहीं तन पे करना अभिमान लेकिन, मगर जीते जी खुद को मुर्दा न मानो!
जियो आखिरी सांस तक तुम यहाँ पर, के तुम खुद के जीवन के मतलब जानो!
सुनो "देव" सपने नहीं तोड़ना तुम, के आँखों में सपने सजाकर के रखना!
जो मरकर भी तुमको करे याद दुनिया, मोहब्बत की दुनिया वसाकर के रखना!

नहीं मौत से डर के जीना है तुमको, यहाँ मौत सच है, यही जानना है!
के हम सब हैं मिट्टी के पुतले यहाँ पर, यही सोचना है, यही मानना है!

बनो जीते जी कुछ यहाँ जिंदगी में, जो मरकर भी दुनिया तेरा नाम जाने!
ये मौत भी देखो है क्रूर कितनी, नहीं चीख सुनती, नहीं दर्द जाने!"

….......................चेतन रामकिशन "देव"………...................
दिनांक-०५.१०.२०१३

Friday 4 October 2013

♥♥लिख रहा हूँ ग़ज़ल....♥♥

♥♥♥♥♥लिख रहा हूँ ग़ज़ल....♥♥♥♥♥♥♥
लिख रहा हूँ ग़ज़ल, फिर तेरी नाम की मैं,
के तुझ बिन तो दिल का गुजारा नहीं है!

के होने को तो सारी, दुनिया है लेकिन,
मगर बिन तुम्हारे सहारा नहीं है!

तेरी याद में धोया, अश्कों से चेहरा,
इसे धूप मलकर निखारा नहीं है!

प्यार देखो के चखकर, शहद की तरह है,
ये देखो समुन्दर सा, खारा नहीं है!

मैं तुझसे नजर से, के चुराऊं भी कैसे,
के तू चाँद है, कोई तारा नहीं है!

बिन तेरे देखो उतरा है, ये मेरा चेहरा,
के मुझको किसी दुख ने मारा नहीं है!

"देव" आ जाओ तुम, अब सुनो दर्द मेरा,
यूँ दिल से किसी को, पुकारा नहीं है!"

….....चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक-०४.१०.२०१३

Thursday 3 October 2013

♥मेरे एहसास की दुआ....♥

♥♥♥♥♥♥♥♥मेरे एहसास की दुआ....♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मेरे एहसास की दुआओं में, नाम तेरा है, सिर्फ तेरा है!
तेरा ये साथ रोशनी की तरह, बिन तेरे हर तरफ अँधेरा है!
तुमसे मिलने की हसरतों में सनम, देखो दिल बेकरार मेरा है,
देखकर तुझको ऐसा लगता है, चांदनी में भी रूप तेरा है!

तू घुटन में हवा के जैसा असर करती है!
दर्द में तू दवा के जैसा असर करती है!

तेरी यादों से रंग ख्वाबों का, बड़ा दिलकश, बड़ा सुनहरा है!
मेरे एहसास की दुआओं में, नाम तेरा है, सिर्फ तेरा है….


तेरी चाहत, तेरी हसरत, तेरी उम्मीद रखूं!
प्यार के रंग से तेरा, मैं दिल पे नाम लिखूं!
मैं सुबह उठकर तेरी सूरत का दीदार करूँ!
मैं तुझे प्यार, बहुत प्यार, बहुत प्यार करूँ!

तेरी सीरत बड़ी उजली है, तेरी सूरत हमें लुभाती है!
बिन तेरे दिन में चैन मिलता नहीं, बिन तेरे नींद नहीं आती है!

तेरी जुल्फों में शाम है हमदम, तेरी सूरत में सवेरा है!
मेरे एहसास की दुआओं में, नाम तेरा है, सिर्फ तेरा है…….

आ चलो दूर कहीं बैठकर के बात करें!
चलो जीवन में हंसी प्यार की बरसात करें!
"देव" तुमसे ही मेरी जिंदगी में नूर खिला!
"देव" तुमसे ही अंधेरों में, नया दीप जला!

तुम मेरे हाथ में यूँ हाथ लेके चलती रहो!
मैं संभालूँगा तुम्हें, प्यार में फिसलती रहो!

शाख पे फूटने लगीं कोंपल, जब तूने किया वसेरा है!
मेरे एहसास की दुआओं में, नाम तेरा है, सिर्फ तेरा है!"

................चेतन रामकिशन "देव".........................
दिनांक-०३.१०.२०१३

Wednesday 2 October 2013

♥झूठ का लिबास....♥

♥♥झूठ का लिबास....♥♥♥
जिंदगी से निराश न होना!
मेरे यारों उदास न होना!

साथ रहना सदा ही सच के तुम,
झूठ का तुम लिबास न होना!

जो किसी के बिना न जी पाओ,
दर्द के इतने पास न होना!

जीत जाओ तो गुरुर करो,
हार कर बदहवास न होना!

दिल के जज्बात को न समझें जो,
ऐसे लोगों के दास न होना!

आखिरी सांस तलक जंग करो,
जीते जी जिंदा लाश न होना!

"देव" मुफलिस के भी सुनो आंसू,
बस अमीरों के ख़ास न होना!"

....चेतन रामकिशन "देव"....
दिनांक-०३.१०.२०१३