Sunday 30 June 2013

♥♥माँ( एक अनमोल शख्सियत)♥♥

♥♥माँ( एक अनमोल शख्सियत)♥♥
माँ की दुआ के जैसी, कोई दुआ नहीं!
धरती पे माँ के जैसा, कोई खुदा नहीं!
आया जो बुरा वक़्त तो, अपने बदल गए,
माँ ऐसे वक़्त में भी, होती जुदा नहीं!

माँ है तो रोशनी है, माँ है तो खुशी है!
माँ है तो आदमी के, अधरों पे हंसी हैं!

माँ की छुअन से बढ़कर, कोई दवा नहीं!
माँ की दुआ के जैसी, कोई दुआ नहीं...

पोषण की भावना है, नेकी का पाठ है!
माँ सूर्य की लाली है, पूनम की रात है!
दुनिया की कोई उलझन, उसको न सताए,
जिस आदमी के सर पे, जो माँ का हाथ है!

माँ प्रेम की घोतक है, ममता की खान है!
बच्चों से उसकी खुशियाँ, बच्चों में जान है!

बच्चों की गलती माँ को, लगती खता नहीं!
माँ की दुआ के जैसी, कोई दुआ नहीं....

माँ है तो जिंदगी में, कोई कमी नहीं!
माँ से बड़ा न अम्बर, और ये जमीं नहीं!
सुन "देव" माँ के दिल को, कोई ठेस न देना,
माँ को यहाँ रुलाकर, कोई सुखी नहीं!

माँ प्रेम का सागर है, आशाओं की नदी!
ममता है अमर माँ की, देखो युगों, सदी!

माँ की तरह बच्चों पर, कोई फिदा नहीं!
माँ की दुआ के जैसी, कोई दुआ नहीं!"


"
माँ-एक ऐसी शख्शियत, जिसका वजूद इंसान के जीवन में, सर्वोच्च है! माँ, है तो जन्म है, माँ है तो ममता है, माँ है तो लालन, पालन, पोषण है! माँ, दुनिया में माँ का कोई विकल्प नहीं, तो आइये माँ, को नमन करें!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-०१.०७.२०१३

"मेरी ये रचना, मेरी माँ कमला देवी जी एवं प्रेम लता जी को समर्पित"
"
सर्वाधिकार सुरक्षित"
मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित!




♥♥चाँद से सुन्दर..♥♥

♥♥♥♥♥♥चाँद से सुन्दर..♥♥♥♥♥
तु मिली है मुझे मेरी तकदीर से,
अच्छे लोगों की वरना कमी है बहुत!

लोग तो चाँद को, यूँ ही सुन्दर कहें,
वरना तू चाँद से भी, हसीं है बहुत!

भीगकर मेरा मन, मेरा तन झूमता,
ये मोहब्बत की बारिश, घनी है बहुत!

एक पल को भी, तू दूर जाना नहीं,
मेरी आँखों में तुम बिन, नमी है बहुत!

न सताओ मुझे, अब तो आ जाओ तुम,
रात अपने लिए ही, थमी है बहुत!

तू मिली तो मुझे, देख ऐसा लगा,
मेरी तकदीर सच में, धनी है बहुत!

"देव" तुम बिन, मुझे कुछ नहीं चाहिए,
तुमसे ही मेरी दुनिया, बनी है बहुत!"

........चेतन रामकिशन "देव"........
दिनांक-३०.०६.२०१३

Friday 28 June 2013

♥♥गम से डरना नहीं ..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥गम से डरना नहीं ..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
गम से डरना नहीं जिंदगी में कभी, आज हैं गम मगर, कल खुशी पाओगे!
अपने मन के इरादों को जिन्दा रखो, एक दिन जीत पर तुम पहुँच जाओगे!

दिल न छोटा करो दर्द को देखकर, दर्द को अपनी हिम्मत बनाकर रहो!
हर गलत सोच को मन से मुक्ति दिला, रूह से अपनी नजरें मिलाकर रहो!
अपने दिल को मोहब्बत से रौशन करो, नफरतों से यहाँ कुछ भी मिलता नहीं,
तुम मिटाकर निराशा का काला तिमिर, मन में आशा का दीपक जलाकर रहो!

दर्द की आह भी देखो दब जाएगी, सब्र का गीत जो तुम यहाँ गाओगे!
गम से डरना जिंदगी में कभी, आज हैं गम मगर, कल खुशी पाओगे...

ख्वाब देखो नए रोशनी के लिए, तंग दिल बनके तुम देखो रहना नहीं!
अपने हक के लिए तुम करो युद्ध भी, तुम हकों का दमन देखो सहना नहीं!
"देव" दुनिया में तुमको मिले दर्द पर, तुम किसी की खुशी को नहीं लूटना,
सच के साथी बनो, सच के प्रहरी बनो, सच को भूले से भी झूठ कहना नहीं!

तुम नजर रखके मंजिल पे मेहनत करो, एक दिन सारी दुनिया पे तुम छाओगे!
गम से डरना जिंदगी में कभी, आज हैं गम मगर, कल खुशी पाओगे!"

.............................चेतन रामकिशन "देव".....................................
दिनांक-२८.०६.२०१३

♥♥प्यार की कोशिश..♥♥

♥♥♥♥♥प्यार की कोशिश..♥♥♥♥♥♥
तुमको तुमसे चुराने की कोशिश में हूँ!
तुमको अपना बनाने की कोशिश में हूँ!

तुमसे मैं प्यार करता हूँ कितना सनम,
बस तुम्हें ये जताने की कोशिश में हूँ!

पढ़ लो चाहत को मेरी, निगाहों में तुम,
तुमसे नजरें मिलाने की कोशिश में हूँ!

एक अरसे से तरसा, महक के लिए,
प्यार का गुल खिलाने की कोशिश में हूँ!

"देव" तुमको किसी की नजर न लगे,
तुमको दिल में छुपाने की कोशिश में हूँ!"

............चेतन रामकिशन "देव"...........
दिनांक-२८.०६.२०१३

Thursday 27 June 2013

♥♥♥इरादे..♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥इरादे..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
आशाओं के दीये हैं, ख्वाबों का सिलसिला!
बेशक ही जिंदगी में, गम है बहुत मिला!
उम्मीद है एक दिन, ये हालात बदलेंगे,
मिट जाएगा जीवन से, ये दुख का जलजला!

गम भी है, दर्द भी, यहाँ पर है खुशी भी!
आंसू हैं, बेबसी भी, चेहरे पे हंसी भी!

कांटे हों चाहें कितने, पर फूल है खिला!
आशाओं के दीये हैं, ख्वाबों का सिलसिला...

यूँ बैठकर के कोई, काम होता नहीं है!
बेकार से हुनर का, दाम होता नहीं है!
तुम "देव" जरा देख लो, इतिहास की तरफ,
नाकारा आदमी का, नाम होता नहीं है!

मेहनत के भरोसे जो, अपना काम करते हैं!
ऐसे ही लोग जग में, अपना नाम करते हैं!

साहस हो इरादों में तो, पर्वत भी है हिला!
आशाओं के दीये हैं, ख्वाबों का सिलसिला!"

............चेतन रामकिशन "देव"............
दिनांक-२७.०६.२०१३

♥♥देख के तुझको.♥♥

♥♥♥♥♥♥♥देख के तुझको.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
देख के तुझको मेरे दिल को, खुशी मिलती है!
तेरी चाहत से मोहब्बत की, कली खिलती है!

मैंने जिस ओर भी देखा, नजर घुमाकर के,
तुम्हारे प्यार की दुनिया ही, सजी मिलती है!

जब भी देखा है मैंने, रात की गहराई में,
बस तेरे ख्वाब की, दुनिया ही वसी मिलती है!

अपने दिल में जो मैंने झांक के देखा हमदम,
तेरी सूरत की हसीं एक, परी मिलती है!

"देव" उस वक्त मेरा रंग निखर जाता है,
तेरे एहसास की जिस रोज नदी मिलती है!"

............चेतन रामकिशन "देव"..............
दिनांक-२७.०६.२०१३

Tuesday 25 June 2013

♥♥विश्वास ...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥विश्वास  ...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
रिश्ता चाहें जो भी हो पर, है उसमें विश्वास जरुरी!
प्यार की दूरी कितनी हो पर, है उसमें एहसास जरुरी!
मानवता के पथ पे देखो, अच्छाई इतनी आवश्यक,
जैसे भू के सिरहाने पर, होता है आकाश जरुरी!

जो बस अपने हित की सोचें, वो मानवता खाक करेंगे!
जिनके मन में पाप भरा हो, वो क्या जग को पाक करेंगे!

मानवता में एक दूजे की, पीड़ा का आभास जरुरी!
रिश्ता चाहें जो भी हो पर, है उसमें विश्वास जरुरी....

झूठ बोलकर जो औरों के, दामन को गंदा करते हैं!
जो खुद होकर झूठ के पुतले, औरों की निंदा करते हैं!
"देव" जहाँ में उन लोगों को, एक दिन पछताना होता है,
जो मुफलिस का खून बेचकर, बस अपना धंधा करते हैं!

ऐसे लोगों ने ही जग में, मानवता को क्षीण किया है!
दुनिया को अँधेरा देकर, अपना घर प्रवीण किया है!

ऐसे लोगों से दूरी को, हर पल है प्रयास जरुरी!
रिश्ता चाहें जो भी हो पर, है उसमें विश्वास जरुरी!"

..................चेतन रामकिशन "देव"................
दिनांक-२६.०६.२०१३

♥♥भीग गए अल्फाज ...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥भीग गए अल्फाज ...♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सखी तुम्हारे एहसासों से, भीग गए अल्फाज हमारे!
बड़े भाग्य से आया हमदम, प्रेम तुम्हारा मेरे द्वारे!
मैं लफ्जों की सुन्दरता से, करता हूँ सिंगार तुम्हारा,
तेरी मांग में भरता हूँ मैं, अनुभूति के चाँद सितारे!

मन को तुमसे प्रेम बहुत है, सखी बड़ी मनभावन हो तुम!
हरियाली सी हरी भरी हो, गंगाजल सी पावन हो तुम!

सखी तुम्हारे भीतर दिखते, कुदरत के नायाब नजारे!
सखी तुम्हारे एहसासों से, भीग गए अल्फाज हमारे...

तेरे प्यार के एहसासों से, जीवन में खुशियाँ आती हैं!
तेरे प्यार से अंतर्मन पे, भावों की बदली छाती हैं!
"देव" तुम्हारे प्यार से मुझको, अपनायत का बोध हुआ है,
सखी तुम्हारे प्यार की कलियाँ, मेरे मन को महकाती हैं!

प्यार यहाँ कुदरत जैसा है, प्यार का कोई मोल नहीं है!
शब्दकोश में प्रेम से बढ़कर, देखो कोई बोल नहीं है!


सखी तुम्हारे प्रेम से मैंने, अपने मन के दोष निखारे!
सखी तुम्हारे एहसासों से, भीग गए अल्फाज हमारे!"

.............चेतन रामकिशन "देव"............
दिनांक-२५.०६.२०१३

Monday 24 June 2013

♥♥चलें कुछ दूर...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥चलें कुछ दूर...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
चलें कुछ दूर हाथों में पकड़कर हाथ हम दोनों!
यकीं है सात जन्मों तक, रहेंगे साथ हम दोनों!

सुबह से शाम हो जाये, सवेरा या नया आये,
करेंगे एक दूजे से सदा ही, बात हम दोनों!

तुम्हारा दर्द मेरा है, मेरा हर गम तुम्हारा है,
करेंगे अपनी आँखों से, यहाँ बरसात हम दोनों!

चलेंगे साथ मिलकर के कंटीले रास्तों पर भी,
हर एक मुश्किल दे देंगे, यहाँ पर मात हम दोनों!

तुम्हारे बिन नहीं कटता है, देखो "देव" एक भी दिन,
रहेंगे चांदनी बनकर, यहाँ हर रात हम दोनों!"

...............चेतन रामकिशन "देव"................
दिनांक-२४.०६.२०१३

♥♥सच्चाई की राह...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥सच्चाई की राह...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सच्चाई की राह पे चलकर,  मैंने बस इतना पाया है!
गैरों की तो बात छोड़िये, अपनों ने भी ठुकराया है!
जो मेरी आँखों में अक्सर, सपनों के अंकुर बोता था,
आज उसी ने देखो मेरा, एक एक सपना बिखराया है!

हाँ ये सच है सच के कारण, अपनों की दूरी सहता हूँ!
माँ ने सच का पाठ पढाया, इसीलिए पर सच कहता हूँ!

तेजाबी बारिश करता है, गगन में जो बादल छाया है!
सच्चाई की राह पे चलकर,  मैंने बस इतना पाया है..

कुछ लम्हों को लहर झूठ की, भले खुशी से भर सकती है!
लेकिन इस दुनिया से देखो, नहीं हकीक़त मर सकती हो!
"देव" दिलों में सच की ताकत, सूरज बनकर करे उजाला,
लेकिन दिल में झूठ की रौनक, नहीं उजाला कर सकती है!

कागज के सुन्दर फूलों से, जीवन नहीं खिला सकते हैं!
झूठ बोलने बाले खुद से, नजरें नहीं मिला सकते हैं!

अल्प समय के बाद ही जग में, झूठ का पौधा मुरझाया है!
सच्चाई की राह पे चलकर,  मैंने बस इतना पाया है!"

...............चेतन रामकिशन "देव".................
दिनांक-२४.०६.२०१३





Sunday 23 June 2013

♥♥चांदनी के दीये..♥♥

♥♥♥♥♥चांदनी के दीये..♥♥♥♥♥
चांदनी के हजारों दीये जल गए!
आसमां में सितारों के गुल खिल गए!
प्यार की लहरें देखो मचलने लगीं,
एक दूजे से जब अपने दिल मिल गए!

प्यार से चांदनी भी, निखरने लगी!
हर तरफ रौशनी सी, बिखरने लगी!

लाज इतनी हुई है, लब सिल गए!
चांदनी के हजारों दिए जल गए...

चांदनी रात का ये मिलन खास है!
मैं तेरे पास हूँ, तू मेरे पास है!
तुमसे मिलकर मुझे "देव" ऐसा लगा,
मैं जमीं और तू मेरा आकाश है!

प्यार के सपने दिल में सजाते रहो!
प्यार जन्मों-जन्म तक निभाते रहो!

प्यार से अपने ख्वाबों के तन धुल गए!
चांदनी के हजारों दिए जल गए!"

......चेतन रामकिशन "देव"......
दिनांक-२३.०६.२०१३

♥♥दर्द की निशानी..♥♥

♥♥♥♥♥दर्द की निशानी..♥♥♥♥♥
जिंदगी से उलझकर ही रहने लगे!
आंख से आंसू दिन रात बहने लगे!

जो भी सपने सजाये थे मैंने कभी,
वक़्त की ठोकरों से वो ढहने लगे!

रौशनी ने पलटकर ही देखा नहीं,
हम अंधेरों को ही अपना कहने लगे!

प्यार में जो मिला वो निशानी समझ,
दर्द हंसकर के दिन रात सहने लगे!

वंदना जिसकी हम करते आये सदा,
उसकी धारा में जज्बात बहने लगे!

मेरे भीतर का कुंदन निखरने लगा,
हम गमों की तपिश जबसे सहने लगे!

"देव" अपनों ने मुड़कर नहीं देखा तो,
हम रकीबों को ही अपना कहने लगे!"

..........चेतन रामकिशन "देव"........
दिनांक-२३.०६.२०१३

Thursday 20 June 2013

♥♥दर्द की धूप... ♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥दर्द की धूप... ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
दर्द ने अधमरा है मुझे कर दिया, फिर से जीने का मुझको हुनर चाहिए!
दर्द की धूप में जल रहा हूँ बहुत, कोई राहत का मुझको शज़र चाहिए!
रास्ते बंद हैं सारी खुशियों के पर, फिर भी उम्मीद दिल में बची है जरा,
थोडा टुकड़ा मिले बस जमीं का मुझे, न ही चाहा के मुझको शिखर चाहिए!

रौशनी मंद है और अँधेरा घना, पर किसी से जरा भी शिकायत नहीं!
जिनको चाहा है उनको कहूँ बेवफा, मेरे दिल की मुझे ये इजाजत नहीं!

दर्द के इस सुलगते बियांबान में, एक पानी की मुझको लहर चाहिए! 
दर्द ने अधमरा है मुझे कर दिया, फिर से जीने का मुझको हुनर चाहिए...

नासमझ बनके जो मुझको समझाते हैं, वो सुनेंगे दुखन क्या मेरे दर्द की!
वो यहाँ मुझको देंगे दवा क्या भला, जिसने पाई नहीं हो तपन दर्द की!
"देव" मैं अपने अश्कों को पीता रहा, उम्र के आखिरी छोर तक भी मगर,
कोई ऐसा मुझे पर नहीं मिल सका, जिसने समझी चुभन हो मेरे दर्द की!

थोड़ी हिम्मत बची है जिये जाऊंगा, अपने हाथों से मरना गवारा नहीं!
मेरी तन्हाई हर पल मेरे साथ है, क्या हुआ जो किसी का सहारा नहीं!

दर्द से लड़ जो सकूँ निहत्थे भी में, हौंसले का मुझे वो ज़हर चाहिए!
दर्द ने अधमरा है मुझे कर दिया, फिर से जीने का मुझको हुनर चाहिए!"

................................चेतन रामकिशन "देव".....................................
दिनांक-२०.०६.२०१३

Wednesday 19 June 2013

♥♥कुदरत का कहर.. ♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥कुदरत का कहर.. ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कुदरत के इस कहर के आगे, फिर इन्सां की हार हो गयी!
पल भर में ही खिलती क्यारी, उजड़ के देखो खार हो गयी!
जिस मंदिर के इर्द गिर्द अरसे से, गंगाजल बहता था,
आज उसी स्थल पे देखो, खून की गाढ़ी धार हो गयी!

पलक झपकते ही कुदरत ने, सब कुछ मटियामेट कर दिया!
जिस मानव को जनम दिया था, उसका ही आखेट कर दिया!

हँसते गाते लोगों के घर, पीड़ा की झंकार हो गयी! 
कुदरत के इस कहर के आगे, फिर इन्सां की हार हो गयी...

हाँ ये सच है इंसानों ने, इस कुदरत का दमन किया है!
लेकिन गलती हो जाने पर, कुदरत को ही नमन किया है!
"देव" यहाँ कुदरत के आगे, नहीं किसी की चल पाती है,
कुदरत ने खिलती बगिया को, देखो उजड़ा चमन किया है!

नहीं पता के इस कुदरत का, गुस्सा जाने कब कम होगा!
नहीं पता उजड़ी बगिया का, हरा भरा कब मौसम होगा!

जिस कुदरत ने जन्म दिया था, उसकी हम पर मार हो गयी!
कुदरत के इस कहर के आगे, फिर इन्सां की हार हो गयी!"

.........................चेतन रामकिशन "देव"........................
दिनांक-१९.०६.२०१३

Tuesday 18 June 2013

♥♥भारी सांसें.. ♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥भारी सांसें.. ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
भारी सांसें उठ नहीं पातीं, कुछ पल को आराम चाहिए!
कई दशक से चलता आया, कुछ पल को विश्राम चाहिए!
जिसके दामन में सर रखकर, मैंने दर्द बताना चाहा,
वही शख्स कहता है मुझसे, उसे दुआ का दाम चाहिए!

बिना जुर्म के ही दुनिया ने, मुझको मुजरिम बना दिया है!
मेरी पीड़ा सुने बिना ही, अपना निर्णय सुना दिया है!

बिना कत्ल के ही अब मुझको, कातिल जैसा नाम चाहिए!
भारी सांसें उठ नहीं पातीं, कुछ पल को आराम चाहिए...

नहीं चुका हूँ, नहीं थका हूँ, मैं जीवन से डरा नहीं हूँ!
मिटटी को जड़वत रोके हूँ, बेशक ही मैं हरा नहीं हूँ! 
"देव" मेरे नाजुक से दिल ने, दुनिया के सदमे झेले हैं,
इसीलिए बस मुरझाया हूँ, लेकिन मन से मरा नही हूँ!

मैंने जिसकी खातिर देखो, अपना गाढ़ा खून बहाया!
उस इन्सां ने ही दुनिया में, मेरे दिल को बहुत रुलाया!

जो आँखों को सुकूं दे सके, मुझको वो गुलफ़ाम चाहिए!
भारी सांसें उठ नहीं पातीं, कुछ पल को आराम चाहिए!"

................चेतन रामकिशन "देव"..................
दिनांक-१९.०६.२०१३

Monday 17 June 2013

♥♥प्रीत के बादल..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रीत के बादल..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तेरे प्यार के बादल उमड़े, बरस रहा है रिमझिम पानी!
फूलों की खुश्बू लायी है, तेरे प्यार की मधुर निशानी!
सखी जहाँ में प्रेम से बढ़कर, कोई भी सम्बन्ध नहीं है,
मरकर भी जीवित रहती है, ये रूहों की प्रेम कहानी!

मेरी किस्मत अच्छी है जो, सखी तुम्हारी प्रीत मिली है!
सखी तुम्हारी प्रीत से मुझको, हर मंजिल पे जीत मिली है!

प्रेम बिना सब कुछ सूना है, सबको है ये बात बतानी!
तेरे प्यार के बादल उमड़े, बरस रहा है रिमझिम पानी..

बिना प्रीत के कोई दौलत, किसी का आँचल भर नहीं सकती!
ये दुनिया कोशिश करके भी, जुदा रूह को कर नहीं सकती!
"देव" जहाँ में मिलना ही बस, प्यार की मौलिक शर्त नहीं है,
सखी प्रेम की नातेदारी, बिना मिले भी मर नहीं सकती!

सखी प्रेम की आंखे पाकर, जग मनभावन हो जाता है!
सखी प्रेम का धारण करके, मन भी पावन हो जाता है!

सखी हमें एक दूजे के संग, ख्वाबों की बारात सजानी!
तेरे प्यार के बादल उमड़े, बरस रहा है रिमझिम पानी!"

...................चेतन रामकिशन "देव".......................
दिनांक-१७.०६.२०१३

Friday 14 June 2013

♥♥चाहत का किरदार ...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥चाहत का किरदार ...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मुझे तेरी चाहत का हमदम, एक ऐसा किरदार चाहिए!
जब भी मेरी आंखे तरसे, मुझे तेरा दीदार चाहिए!
हाँ सच है के इस दुनिया में, वक्त किसी के पास नहीं है,
भले ही मुझको एक पल देना, पर रूहानी प्यार चाहिए!

नाम प्यार का मैं नहीं करता, प्यार तुझे दिल से करता हूँ!
इसीलिए तो तेरे दुःख में, अपनी आंखे नम करता हूँ!

हाथ मैं तेरा पकड़ सकूँ जो, मुझको वो अधिकार चाहिए!
मुझे तेरी चाहत का हमदम, एक ऐसा किरदार चाहिए....

प्यार के ढाई अक्षर भर से, शपथ प्रेम की तय नहीं होती!
बिना समर्पण के दुनिया में, प्रेम भाव की जय नही होती!
"देव" जहाँ में प्यार करो तो, करना पूरी सच्चाई से,
वो चाहत किस काम की जिसमे, सच्चाई की लय नहीं होती!

प्यार से बढ़कर इस दुनिया में, कोई भी सौगात नहीं है!
प्यार तो होता है रूहानी, बस अधरों की बात नहीं है!

बिन तेरे मैं गिर जाऊंगा, मुझे तेरा आधार चाहिए!
मुझे तेरी चाहत का हमदम, एक ऐसा किरदार चाहिए!"

....................चेतन रामकिशन "देव".......................
दिनांक-१४.०६.२०१३

Thursday 13 June 2013

♥♥मेरी टहनियां...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥मेरी टहनियां...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
किसे ने मेरे पत्ते तोड़े, कोई टहनी काट ले गया!
किसी ने मेरी छाल को छीला, कोई फलों को छांट ले गया!
इस दुनिया में बेदर्दी से, सभी ने मेरे दिल को काटा,
कोई ऐसा नहीं मिला जो, थोड़ा सा गम बाँट ले गया!

यूँ तो जग में बहुत मिले हैं, मुझे चाँद से दिखने वाले!
जगह जगह देखे हैं मैंने, बड़ा बड़ा सा लिखने वाले!

मैंने माँगा जिससे रेशम, वही दुखों की टाट दे गया!
किसे ने मेरे पत्ते तोड़े, कोई टहनी काट ले गया....

कट गयीं जब से मेरी टहनियां, छाया मुझसे मुक्त हो गई!
अपनेपन की खाद मिली न, एक एक क्रिया सुप्त हो गई!
"देव" हमारी आँखों से अब, सूखे में जल बरस रहा है,
मिट गई मेरी हर एक निशानी, मेरी दुनिया लुप्त हो गई!

नहीं समझ आया पर मुझको, लोगों में बेदर्दी क्यूँ है!
जिसे चाहिए धूप खुशी की, वहां गमों की सर्दी क्यूँ है!

जो कुछ बचा खुचा था मुझमें, गम का दीमक चाट ले गया!
किसे ने मेरे पत्ते तोड़े, कोई टहनी काट ले गया!"

...................चेतन रामकिशन "देव"................
दिनांक-१४.०६.२०१३ 

Monday 10 June 2013

♥♥बेटी(धरती की परी).♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥बेटी(धरती की परी).♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
परियों जैसी प्यारी प्यारी, मिश्री जैसी मधुर है बेटी!
एक मानव के जीवन पथ में, फूलों जैसी डगर है बेटी!
जिस आंगन में बेटी न हो वो, उस घर में रहती नीरसता,
कड़ी धूप में जलधारा की, एक मनभावन लहर है बेटी!

बेटी की तुलना बेटों से, करके उसको कम न आंको!
बेटी है बेटों से बढ़कर, कभी रूह में उसकी झांको!

वो कविता का भावपक्ष है, किसी गज़ल की बहर है बेटी!
परियों जैसी प्यारी प्यारी, मिश्री जैसी मधुर है बेटी...

जन्मकाल से ही बेटी को, कुदरत से ये गुण मिलते हैं!
बचपन से ही उसके मन में, नम्र भाव के गुल खिलते हैं!
बेटी के मन में बहता है, सहनशीलता का एक सागर,
नहीं आह तक करती है वो, भले ही उसके हक छिलते हैं!

बेटी तो है ज्योति जैसी, वो घर में उजियारा करती!
वो चिड़ियों की तरह चहककर, घर आंगन को प्यारा करती!

बेटे यहाँ बदल जायें पर, अपनी आठों पहर है बेटी!
परियों जैसी प्यारी प्यारी, मिश्री जैसी मधुर है बेटी....

आशाओं की ज्योति है वो, पूनम जैसी निशा है बेटी!
अंतर्मन को सुख देती है, कुदरत की वो दुआ है बेटी!
"देव" जहाँ में बेटी जैसा, कोई अपना हो नहीं सकता,
किसी मनुज के बिगड़े पथ की, सही सार्थक दिशा है बेटी!

बेटी है तो घर सुन्दर है, बिन बेटी के घर खाली है!
बेटी है तो खिला है उपवन, बेटी है तो हरियाली है!

हंसकर वो कुर्बानी देती, ऐसा पावन रुधिर है बेटी!
परियों जैसी प्यारी प्यारी, मिश्री जैसी मधुर है बेटी!"


"
बेटी-एक ऐसा चरित्र, जिसके बिना किसी मनुज का जीवन पूर्ण नही होता, जिसकी किलकारी के बिना, जिसकी चहक के बिना, कोई घर सम्पूर्ण नहीं होता, वो ऐसा चरित्र जो अपने हर सुख का दमन करते हुए, अपने परिजनों के लिए अपने रुधिर की एक एक बूंद तक कुर्बान कर देती है, तो आइये कुदरत के ऐसा अनमोल चरित्र "बेटी" का सम्मान करें!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-११.०६.२०१३ 

"
सर्वाधिकार सुरक्षित"


♥♥मेरे जज्बात..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥मेरे जज्बात..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
काश मेरे जजबातों को तुम, पढ़ लेते मन की आँखों से,
फिर न तुमको रत्ती भर भी, कभी शिकायत होती मुझसे!

तुमने कैसे सोच लिया के, अदल बदल कर मैं जीता हूँ,
मैं जैसा हूँ, मैं वैसा हूँ, नहीं बनावट होती मुझसे!

तू जितना भी दर्द मुझे दे, मैं उफ तक भी नहीं करूँगा,
क्यूंकि रूहानी रिश्तों की, नहीं बगावत होती मुझसे!

नाम प्यार का भले नहीं दो, पर तू मेरा दर्द समझना,
तेरी दुआ के बिन जीवन की, नहीं हिफाजत होती मुझसे!

जो एक पल भी मिला चैन का, उससे अपनी झोली भर ली,
मानवता के नाम पे देखो, नहीं तिजारत होती मुझसे!

जो मेरा दिल कहता है मैं, उसको ज्यों का त्यों लिखता हूँ,
किसी लफ्ज के साथ झूठ की, नहीं सजावट होती मुझसे!

तूने मुझको "देव" अगर जो, कातिल अपना मान लिया तो,
खुद को फांसी लटका दूंगा, नहीं रियायत होती मुझसे!"

................चेतन रामकिशन "देव"....................
दिनांक-१०.०६.२०१३

Sunday 9 June 2013

♥♥दामन के घाव.♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥दामन के घाव.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
आंसू पीना मुझे आ गया, घाव भी सिलना सीख गया हूँ!
इस दुनिया से दर्द छुपाकर, हंसकर मिलना सीख गया हूँ!
भले ही गम के तेजाबों ने, जड़ें खोखली कर दीं मेरी,
लेकिन फिर भी फूलों जैसा, जग में खिलना सीख गया हूँ!

हाँ दामन पर घाव बहुत हैं, सिलने में कुछ वक़्त लगेगा!
लगता है के मरते दम तक, गम का साया नहीं रुकेगा!

इसीलिए जल प्रपातों में, नमक सा घुलना सीख गया हूँ!
आंसू पीना मुझे आ गया, घाव भी सिलना सीख गया हूँ....

भौतिक मिलन भले न हो पर, मन से मन का मिलन जरुरी!
तुम हिंसा को ठोकर मारो, मगर प्रेम का नमन जरुरी!
"देव" जहाँ में मानवता को, चलो जरुरी कर दें इतना,
जैसी दुनिया में धरती की, खातिर देखो गगन जरुरी!

सपने शीशे के होते हैं, कुछ टूटें तो गम न करना!
और अपने मन के साहस को, तुम जीते जी कम न करना!

मैं पथरीले रस्ते पर भी, खुशी पे चलना सीख गया हूँ!
आंसू पीना मुझे आ गया, घाव भी सिलना सीख गया हूँ!"

....................चेतन रामकिशन "देव".........................
दिनांक-०९.०६.२०१३

Saturday 8 June 2013

♥♥बेदर्दी का ठोस धरातल..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥बेदर्दी का ठोस धरातल..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
बेदर्दी का ठोस धरातल, इन अश्कों से नहीं पिघलता!
बदकिस्मत लोगों के घर में, खुशी का सूरज नहीं निकलता!
इस दुनिया से तुम कितनी भी, मिन्नत करना अपनायत की,
लेकिन जिनका दिल पत्थर हो, उनका आंसू नहीं निकलता!

लोग सड़क पर घायल होकर, तड़प तड़प कर मर जाते हैं!
पर पत्थर के लोग दया की, कहाँ इनायत कर पाते हैं!

मजलूमों पर जुल्म देखकर, खून भी इनका नहीं उबलता!
बेदर्दी का ठोस धरातल, इन अश्कों से नहीं पिघलता...

सही आदमी के चेहरे पर, गम की काई चढ़ जाती है!
और पीड़ा की घनी लिखावट, नई कहानी गढ़ जाती है!
सुनो "देव" यूँ तो दुनिया में, हर इन्सां को दर्द है लेकिन,
बिना जुर्म के सजा मिले तो, चीख दर्द की बढ़ जाती है!

ये अँधा कानून किसी का, रोता मुखड़ा देख सके न!
कभी किसी के टूटे दिल का, जलता दुखड़ा देख सके न!

कभी कभी ये दर्द का मौसम, अंतिम पल तक नहीं बदलता!
बेदर्दी का ठोस धरातल, इन अश्कों से नहीं पिघलता!"

.....................चेतन रामकिशन "देव".....................
दिनांक-०९.०६.२०१३

Friday 7 June 2013

♥♥♥सुलगता दिल..♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥सुलगता दिल..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
गमों से दिल सुलगता है, सुलगने दो, सुलगने दो!
मेरी आँखों से तुम अब, दर्द का सैलाब गिरने दो!
जो तपता है, जो जलता है, वही कुंदन सा बन पाए,
गमों की आग में मुझको, जरा दिन रात जलने दो!

जो डरकर हार से, आँखों के सपने तोड़ देते हैं!
कहाँ हैं वो आदमी होंगे, जो जीना छोड़ देते हैं!

नया दिन फिर से निकलेगा, जरा ये रात ढलने दो!
गमों से दिल सुलगता है, सुलगने दो, सुलगने दो...

अंधेरों से उजालों का, सफर हर रोज होता है!
कोई खुशियों का पाता है, कहीं एहसास रोता है!
सुनो हम "देव" इस दुनिया को, आखिर क्या सिखायेंगे,
वही नेकी पढाता है, यहाँ कातिल जो होता है!

अगर तुम खुद जरा संभलो, तो ये हालात बदलेंगे!
अंधेरों में भी ज्योति के यहाँ, एहसास निकलेंगे!

चलो कुछ देर को मुझको, जरा खुद से ही मिलने दो!
गमों से दिल सुलगता है, सुलगने दो, सुलगने दो!"

....................चेतन रामकिशन "देव".......................
दिनांक-०८.०६.२०१३

Thursday 6 June 2013

♥♥दर्द के गहरे घाव ..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥दर्द के गहरे घाव ..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुम जो मेरी आंख से बहता, अश्कों का सैलाब समझते!
मेरे लफ्ज़ भी नहीं बिलखते, जो तुम उनका भाव समझते!
दवा से ज्यादा दुआ तुम्हारी, असर मेरे ज़ख्मों पे करती,
गर तुम मेरे दिल में शामिल, दर्द के गहरे घाव समझते!

बिन महसूस किये तुम मेरा, दर्द भला क्या सुन सकते हो! 
तुम मेरे जीवन के पथ से, कांटे कैसे चुन सकते हो!

नहीं काटते मेरी जड़ को, जो मेरा फैलाव समझते!
तुम जो मेरी आंख से बहता, अश्कों का सैलाब समझते...

बहुत सरल है ये कहना के, तुम खुद को समझाकर देखो!
गला दर्द से रुंधा हो लेकिन, गीत खुशी के गाकर देखो!
इस दुनिया में "देव" किसी की, चोट तभी तुम समझ सकोगे,
जब तुम जलती धूप में तपकर, दर्द को खुद अपनाकर देखो!

ये दिल के एहसास ही तो हैं, जो दूरी को कम करते हैं!
जो गैरों की चोट देखकर, अपनी आँखों नम करते हैं!

तुम भी रोते तन्हाई में, गर अपना बरताव समझते!
तुम जो मेरी आंख से बहता, अश्कों का सैलाब समझते!"

.................चेतन रामकिशन "देव".................
दिनांक-०६.०६.२०१३

Tuesday 4 June 2013

♥♥दिल के टुकड़े..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥दिल के टुकड़े..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥ 
सांसें भी भारी भारी हैं, अधर धूप से चटक रहे हैं!
और हमारे दिल के देखो, टुकड़े होकर छिटक रहे हैं!
कभी किसी से अपनेपन में, हमने सच को सच बोला तो,
वो कहते हैं मेरे सच को, हम रस्ते से भटक रहे हैं!

लगता है के हमदर्दी की, आस लगाकर भूल हो गयी!
जीवन में जो हरियाली थी, वो इक पल में शूल हो गयी!

गैरों की तो बात छोड़िये, अपनों को हम खटक रहे हैं!
सांसें भी भारी भारी हैं, अधर धूप से चटक रहे हैं.....

बड़ा बड़ा क्या लिखना जब तक, सीने में दिल बड़ा नहीं हो!
वो आंखे किस काम जिसमे, प्रेम का मोती जड़ा नहीं हो!
"देव" यहाँ पर उस मानव को, किन शब्दों से अपना लिखूं,
जो जीवन के बुरे वक़्त में, साथ हमारे खड़ा नहीं हो!

दुनिया का ये हाल रहा तो, प्यार जहाँ से मिट जायेगा!
और जहाँ से अपनेपन का, एक एक पौधा कट जायेगा!

वो क्या देंगे मुझे सहारा, हाथ जो मेरा झटक रहे हैं!
सांसें भी भारी भारी हैं, अधर धूप से चटक रहे हैं!"

.................चेतन रामकिशन "देव"..................
दिनांक-०५.०६.२०१३

♥♥गम की काली रात ..♥♥

♥♥गम की काली रात ..♥♥
गम की काली रात न आये!
ज़ख्मों की सौगात न आये!
यही दुआ है, मुझे रुलाने,
अश्कों की बरसात न आये!

एक अकेली जान हूँ आखिर,
इतना दर्द सहूँ मैं कब तक!
पलक मेरी भी छलनी होतीं,
आंसू बनकर बहूँ मैं कब तक!
दर्द के गहरे अँधेरे में,
आसपास का कुछ नहीं दिखता,
अँधेरे में सहम सहम कर,
इस तरह से रहूँ मैं कब तक!

खुशी का रस्ता देख रहा हूँ,
मगर खुशी भी हाथ न आये!
यही दुआ है, मुझे रुलाने,
अश्कों की बरसात न आये...

दुनिया लेकिन पत्थर दिल है,
दर्द किसी का कब सुन पाये!
जब होता है बुरा वक़्त तो,
अपना कोई पास न आये!
"देव" यहाँ पर जिसको मैंने,
अपने दिल का हाल बताया,
उस इन्सां को मेरी तड़प का,
हाल जरा भी समझ न आये!

मार नहीं सकता मैं खुद को,
पर जिन्दा भी रहा न जाये!
यही दुआ है, मुझे रुलाने,
अश्कों की बरसात न आये!"

...चेतन रामकिशन "देव"..
दिनांक-०४.०६.२०१३

Monday 3 June 2013

♥♥♥गम की जडें..♥♥♥

♥♥♥गम की जडें..♥♥♥
दुख की भरी दुपहरी है पर,
जड़ें गमों की काट रहा हूँ!
तन्हाई में साथ रहे जो,
कुछ ऐसे पल छांट रहा हूँ!
इस दुनिया ने भले ही मुझको,
कभी प्यार से नहीं पुकारा,
मगर मैं फिर भी इस दुनिया को,
प्यार के लम्हें बाँट रहा हूँ!

नहीं पता के सच से मुझको,
आखिर क्या हासिल होता है!
वो क्या समझे किसी के आंसू,
जिसका पत्थर दिल होता है!
और ये देखो, इस दुनिया के,
लोगों का है अजब नजरिया,
उसी को अच्छा कहते हैं सब,
जो देखो कातिल होता है!

कभी कभी भलमनसाहत पर,
मैं खुद ही डांट रहा हूँ!
दुख की भरी दुपहरी है पर,
जड़ें गमों की काट रहा हूँ...

मुझको खुद से गिला नहीं है,
नजरें खुद से मिला रहा हूँ!
अपनी आँखों के अश्कों से,
बंजर में गुल खिला रहा हूँ!
"देव" यकीं है एक दिन मुझको,
पत्थर जैसे दिल पिघलेंगे,
इसीलिए मैं उम्मीदों के,
दीपक दिल में जला रहा हूँ!

बुरे वक़्त में अपने दिल को,
सूखी शबनम बाँट रहा हूँ!
दुख की भरी दुपहरी है पर,
जड़ें गमों की काट रहा हूँ!"

...चेतन रामकिशन "देव"..
दिनांक-०४.०६.२०१३

♥♥♥सूखा बादल...♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥सूखा बादल...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
दर्द बाँटने निकला हूँ मैं, मगर किसी ने लिया नहीं है!
मेरी आंख का बहता आंसू, कभी किसी ने पिया नहीं है!
यूँ तो मुझको बहुत मिले हैं, अपनायत दिखलाने वाले,
मगर किसी ने मेरे दर्द का, घाव जरा भी सिया नहीं है!

आसमान में चाँद देखकर, भले मेरे दिल मुस्काता है!
लेकिन झूठी हंसी का आलम, पलकों पे आंसू लाता है!

कभी किसी ने मेरे दुःख को, यहाँ भरोसा दिया नहीं है!
दर्द बाँटने निकला हूँ मैं, मगर किसी ने लिया नहीं है...

उसने ही मुंह मोड़ लिया है, जिससे मैंने आस रखी है!
वो निकला बस सूखा बादल, जिससे मैंने प्यास रखी है!
"देव" जहाँ में जिसको मैंने, हरियाली का वन समझा था,
उस इन्सां ने मेरे पथ में, गम की सूखी घास रखी है!

दर्द भरी इस तन्हाई का, वक़्त न जाने कब तय होगा!
नहीं पता के इस जीवन से, दुख का जाने कब क्षय होगा!

कभी किसी ने घने तिमिर में, यहाँ उजाला किया नही है!
दर्द बाँटने निकला हूँ मैं, मगर किसी ने लिया नहीं है!"

...................चेतन रामकिशन "देव".....................
दिनांक-०३.०६.२०१३

Sunday 2 June 2013

♥♥शब्दों की मधुरम वाणी...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥शब्दों की मधुरम वाणी...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
शब्दों की मधुरम वाणी का, एक उज्जवल प्रकाश तुम्हीं हो!
मेरे प्रेम के पंछी मन का, सखी सुनो आवास तुम्हीं हो!

मेरे मन के भावों का भी, अलंकरण तुमसे होता है,
इस जीवन में हंसी खुशी का, सखी सुनो आभास तुम्हीं हो!

ये सच है के इस जग में, अब प्रेम का वो स्थान नहीं है!
किन्तु फिर भी बिना प्रेम के, मानव का कल्याण नहीं है!

तुम्ही मिलन की अनुभूति हो, और विरह वनवास तुम्हीं हो!
शब्दों की मधुरम वाणी का, एक उज्जवल प्रकाश तुम्हीं हो....

सखी लाज तेरा गहना है, छुईमुई जैसी लगती हो!
सखी हमारी प्रतीक्षा में, रात रात भर तुम जगती हो!
सखी तुम्हारे प्रेम ने मेरे, सूने मन में रंग भरे हैं,
अपने कोमल हाथों पर तुम, प्रेम भरी मेहँदी रचती हो!

तुमको जबसे प्रेम किया है, मानवता मन में आई है!
सखी तुम्हारे प्रेम ने देखो, मेरी दुनिया महकाई है!

सखी तुम्हीं सावन की बारिश, सतरंगी आकाश तुम्हीं हो!
शब्दों की मधुरम वाणी का, एक उज्जवल प्रकाश तुम्हीं हो...

सखी तुम्हारे प्रेम में देखो, किंचित भी अभिमान नहीं है!
बिना प्रेम के इस जीवन में, मानव का सम्मान नहीं है!
"देव" जहाँ में प्रेम की युक्ति, करती है मिट्टी को सोना, 
इस दुनिया में प्रेम से बढ़कर, कोई मीठा गान नहीं है!

सखी तुम्हारी प्रीत ने मुझको, जिस दिन से भी गले लगाया!
तब से मेरे जीवन पथ में, खुशी का हर पल झोंका आया! 

सखी तुम्हीं शीतल जलधारा और हरियाली घास तुम्हीं हो!
शब्दों की मधुरम वाणी का, एक उज्जवल प्रकाश तुम्हीं हो!"


"
प्रेम-जिससे भी होता है, वो मानव, प्रेम करने वाले व्यक्तित्व में सब कुछ निहित कर देता है, वो कभी उसे प्रकृति की शीतल जल-धारा से जोड़ता है तो कभी हरियाली से, कभी चद्रमा के मुख से तो कभी कोयल की बोली से! सचमुच, प्रेम एक ऐसा विषय है, जिसके लिए सभी की अपनी अपनी परिभाषा हैं, मगर हर परिभाषा का उद्देश्य कथन प्रेम ही है, तो आइये प्रेम का अंगीकार करें!"
  

.............चेतन रामकिशन "देव"..............
दिनांक-०३.०६.२०१३
"सर्वाधिकार सुरक्षित"
"मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित."

Saturday 1 June 2013

♥♥धुआं धुआं सा..♥♥

♥♥♥धुआं धुआं सा..♥♥♥♥
धुआं धुआं सा छंट जाने दो!
गम की खाई पट जाने दो!
फिर से नया सवेरा होगा ,
अंधकार को हट जाने दो!

भले फिसल कर गिर जाओ तुम,
लेकिन अपने कदम बढ़ाओ!
जीवन की अंतिम साँसों तक,
अपना साहस नहीं मिटाओ!
कभी हार है, कभी जीत है,
जीवनपथ का यही नियम है,
तुम मन में आशायें लेकर,
सही दिशा में बढ़ते जाओ!

तुम नफरत की शिरा को देखो,
अपने मन से कट जाने दो!
फिर से नया सवेरा होगा ,
अंधकार को हट जाने दो...

उम्मीदों की धवल चांदनी,
नीरसता को दूर करेगी!
और हमारी हिम्मत देखो,
हर मुश्किल को चूर करेगी!
इस दुनिया में "देव" जो हमने,
खुद को इन्सां बना लिया तो,
फिर औरों की खुशी भी देखो,
अपने मन में नूर करेगी!

अपने मन को मानवता को,
पूरी पोथी रट जाने दो!
फिर से नया सवेरा होगा ,
अंधकार को हट जाने दो!"

...चेतन रामकिशन "देव"...
दिनांक-०२.०६.२०१३