Wednesday 31 October 2012


♥♥♥पुत्री( एक फुलवारी)♥♥♥
पुत्री को अभिशाप न समझो!
उसके जन्म को पाप न समझो!

तुम उसकी मीठी वाणी को,
क्षुब्ध ऋषि का श्राप न समझो!

मात्र पुत्र की आशा में न,
ईश के सम्मुख शीश झुकाओ!

पुत्री भी ईश्वर की कृति,
उसे भी हंसकर गले लगाओ!

बिन पुत्री के मानव जीवन का,
श्रंगार नहीं होता है,

घर भी रहता सूना सूना,
जितना चाहो उसे सजाओ!

पुत्री जैसी फुलवारी को,
कंटक सा संताप न समझो!  

पुत्री को अभिशाप न समझो!
उसके जन्म को पाप न समझो!"

... (चेतन रामकिशन "देव") ...

सर्वाधिकार सुरक्षित!
रचने मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित! 

Tuesday 30 October 2012

♥ लड़ने की कला ♥


♥♥♥♥♥♥♥ लड़ने की कला ♥♥♥♥♥♥♥♥
तू अपने मन से घोर निराशा का नाश कर,
तू दर्द से लड़ने की कला का विकास कर,
तू अपने आप में ही सिमटना नहीं मानव,
आकाश में उड़ने के तू अवसर तलाश कर!

तू अपने विचारों को न लाचार बनाना!
तू युद्ध से पहले ही कभी हार न जाना!

तू हार के भय से नहीं खुद को हताश कर!
तू अपने मन से घोर निराशा का नाश कर..

साधन विहीन होने से कमजोर न होना!
तू अपने मन से चेतना के भाव न खोना!
देखो उन्हें जो सड़कों की बत्ती में पढ़े थे,
जो लोग न साधन का कभी रोये थे रोना!

तू खुद को अंधेरों का न गुलाम बनाना!
दुनिया जो करे याद, ऐसा नाम कमाना!

तू "देव" दर्द छोड़ के, हंसमुख लिबास कर!
तू अपने मन से घोर निराशा का नाश कर!"

.......... (चेतन रामकिशन "देव") ...........






♥♥♥♥♥♥आंसुओं का समुन्दर..♥♥♥♥♥♥♥
नफरत ही सही तुमने मुझे कुछ तो दिया है!
इतनी बड़ी दुनिया में मुझे तन्हा किया है!

मैं तुमसे शिकायत भी यार कर नही सकता,
रब ने ही वसीयत में, मुझे दर्द दिया है!

तुम मुझको आंसुओं की, ये बूंदें न दिखाओ,
मैंने तो आंसुओं का समुन्दर भी पिया है!

जाने क्यूँ दर्द ज़ख्मों से बाहर निकल आया,
ज़ख्मों का तसल्ल्ली से रफू तक भी किया है! 

तुम "देव" मुझे कोई उजाला न दिखाओ,
अब मेरा ही दिल मानो कोई जलता दिया है!"

........... (चेतन रामकिशन "देव") ..............


Monday 29 October 2012

♥माँ(एक वटवृक्ष)♥


♥♥♥♥♥♥♥♥माँ(एक वटवृक्ष)♥♥♥♥♥♥♥♥♥
दुनिया में कोई माँ की जगह ले नहीं सकता!
कोई माँ की तरह प्यार हमे दे नहीं सकता!
यूँ तो हजारों रिश्ते हैं, जीवन के सफर में,
पर माँ की तरह कोई दुआ दे नहीं सकता!

माँ प्रेम की गंगा है माँ प्रेम की जमुना!
माँ के अटूट प्रेम की होती नहीं तुलना!

माँ की तरह दुलार कोई दे नहीं सकता!
दुनिया में कोई माँ की जगह ले नहीं सकता...

माँ प्रेम की देवी है, माँ स्नेह की परी!
माँ की मधुर पुकार भी स्नेह से भरी!
माँ दीप की ज्योति की तरह रौशनी देती,
माँ ने ही अपने दूध से ये चेतना भरी!

माँ प्रेम का प्रकाश है, माँ प्रेम की किरण!
माँ रखती है हम पर सदा ममता का आवरण!

माँ की तरह बहार कोई दे नहीं सकता!
दुनिया में कोई माँ की जगह ले नहीं सकता...

माँ जब भी अपनों बच्चों को सीने से लगाये!
जिस ओर भी देखो, वहीँ ममता नजर आये!
सुन "देव" माँ का प्यार है, बेहद ही सुगन्धित,
माँ की छवि में रहते हैं, भगवान के साये!

माँ प्रेम का भंडार है, माँ प्रेम का सागर!
खुश हो नही पाओगे कभी माँ को सताकर!

माँ की तरह विचार कोई दे नहीं सकता!
दुनिया में कोई माँ की जगह ले नहीं सकता!"

"
माँ, एक दिव्यशक्ति, ममता का सागर, प्रेम का नीला आसमान, दुलार की सरिता, अपनत्व की ज्योति, सचमुच माँ अनमोल है! जीवन पथ में अनेकों संबंधों के पश्चात भी माँ का सम्बन्ध प्रमुख इसीलिए है क्यूंकि हम माँ से हैं, रिश्ते माँ से उपजे हैं..माँ वटवृक्ष है और हम मात्र शाखायें..आइये माँ को नमन करें!"

"अपनी दोनों माताओं माँ कमला जी और माँ प्रेम लता जी को समर्पित रचना"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-३०.१०.२०१२

(सर्वाधिकार सुरक्षित)
रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित!

♥आपकी निकटता ♥


♥♥♥♥♥♥♥♥आपकी निकटता ♥♥♥♥♥♥♥♥
निकटता आपकी पाकर मेरा मन हर्ष पाता है!
तुम्हारी बाहों में आकर मेरा दिल गुनगुनाता है!

जो तुम मेरी निगाहों से जरा भी दूर जाती हो!
कसम से कह रहा हूँ मैं, बड़ा ही याद आती हो!
मुझे मालूम है के तुम भी मेरे बिन अधूरी हो,
मेरी तस्वीर तुम भी अपने सीने से लगाती हो!

उधर दिल आह भरता है, इधर आंसू बहाता है!
निकटता आपकी पाकर मेरा मन हर्ष पाता है!"

............. (चेतन रामकिशन "देव") ...............

♥♥♥♥♥♥बाल्मीकि(अद्भुत चरित्र)♥♥♥♥♥♥♥♥♥
थे अद्भुत बाल्मीकि जी, धवल उनकी रामायण है!
नहीं दुनिया में उन जैसा कोई दूजा उदहारण है!

चलो उनकी तरह हम अपने मन को स्वच्छता देंगे!
हम अपनी सोच को चिंतन, बहुत ही सभ्यता देंगे!
तभी तो त्याग पाएंगे, ये हिंसा, द्वेष और लालच,
जब अपनी आत्मा को, ज्ञान से हम दिव्यता देंगे!

कभी पथभ्रष्ट होने से नहीं मिलता निवारण है!
थे अद्भुत बाल्मीकि जी, धवल उनकी रामायण है!"

..(प्रकट दिवस पर महर्षि बाल्मीकि को नमन)...

................(चेतन रामकिशन "देव")..................

Sunday 28 October 2012


♥♥♥♥♥♥♥तुम्हारे वास्ते..♥♥♥♥♥♥♥
सीने में दिल धड़क रहा तुम्हारे वास्ते!
चेहरा मेरा दमक रहा तुम्हारे वास्ते!
गालों पे भी देखो बड़ी सुर्खी ये छाई है,
कंगना मेरा खनक रहा तुम्हारे वास्ते!

तुम साथ हो तो देखो ये मौसम हसीन है!
आकाश भी प्यारा लगे, सुन्दर जमीन है!
तुम्हे देख के मिलती है, जमाने की हर ख़ुशी,
तेरे प्यार पे हमदम मुझे इतना यकीन है!

मन का चमन महक रहा तुम्हारे वास्ते!
मेरा ये दिल बहक रहा तुम्हारे वास्ते!
सीने में दिल धड़क रहा तुम्हारे वास्ते!
चेहरा मेरा दमक रहा तुम्हारे वास्ते!"

..........(चेतन रामकिशन "देव").........


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥नयी पीढ़ी..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
नयी पीढ़ी तो मानो इश्क की बीमार लगती है!
सलाह तालीम की उसको बड़ी बेकार लगती है!

यहाँ पर एक माँ देती दुआ लम्बी उम्र की तो,
कहीं माँ गर्भ में कन्या का भी संहार करती है!

तुम अपने चेहरे को झूठी हंसी में कैद कर लेना,
यहाँ सूरत भी दिल के हाल का इजहार करती है!

खुदा भी इन गरीबों से नजर शायद फिर बैठा,
तभी कुदरत गरीबों पे ही ज्यादा मार करती है!

मुझे जब याद आती "देव" उन खोये बुर्जुर्गों की, 
नजर ये चाँद का घंटों तलक दीदार करती है!"

...........(चेतन रामकिशन "देव").................





Saturday 27 October 2012


♥♥♥♥सुख की प्रकृति..♥♥♥♥
प्रेम से रिक्त ह्रदय न करना,
समस्याओं से भय न करना,
तुम औरों को पीड़ा देकर,
अपने को सुखमय न करना!

जो औरों को पीड़ा देकर, बस अपना हित कर जाते हैं!
वही लोग अपनी आँखों से, एक दिन देखो गिर जाते हैं!
लोग भला वो इस दुनिया में, कहाँ कोई इतिहास बनाते,
जो अपने जीवन में देखो, नाकामी से डर जाते हैं!

तुम मिथ्या की जय न करना!
गलत लक्ष्य को तय न करना!
"देव" किसी के जीवन में तुम,
दुःख का सूर्य उदय न करना!

प्रेम से रिक्त ह्रदय न करना,
समस्याओं से भय न करना!"

.....(चेतन रामकिशन "देव")......


♥♥♥♥♥♥♥♥♥दिल के लफ्ज़.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मैं अपने दिल के लफ्जों की तहरीर लिख रहा हूँ!
ग़ालिब कभी मुंशी तो कभी मीर लिख रहा हूँ!

मैं एक मुसाफिर हूँ, मोहब्बत के सफ़र का,
राँझा कभी मजनूं तो कभी हीर लिख रहा हूँ!

न झूठ की रंगत न कोई सोच पे पहरा,
मैं मुल्क के हालात की तस्वीर लिख रहा हूँ!

देकर के नेक इन्सां को मैं दिल से सलामी, 
नेताओं का बिकता हुआ ज़मीर लिख रहा हूँ!

वो लोग देखो "देव" को भुलाने लगे हैं,
मैं जिनके लिए प्यार की जागीर लिख रहा हूँ!"

............(चेतन रामकिशन "देव")..............

Friday 26 October 2012


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥दिल की मुलाकात..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
दिल तुमसे मिलना चाहता है, चुपके चुपके तन्हाई में!
धवल चांदनी की रंगत में, शीतल-शीतल पुरवाई में!

तुमसे मिलने की आशा में, दिल की सूरत दमक रही है!
और दिल के आंगन में देखो, मानो कोयल चहक रही है!
जब से इस दिल की आँखों ने, देखा सुन्दर स्वप्न तुम्हारा,
तब से इस दिल की राहों में, मानो चन्दन महक रही है!

दिल तुमको ही देख रहा है, अब तो खुद की परछाई में!
दिल तुमसे मिलना चाहता है, चुपके चुपके तन्हाई में!

दिल कहता अपनी आँखों से, उनके पथ में बिछ जाना है!
वो समझाता है अधरों को, उन्हें देखकर मुस्काना है!
पाठ पढ़ाता है हाथों को, तुम उनका अभिवादन करना,
और वो कहता है कदमों से, तुमको उनके संग आना है!

"देव" भी देखो खड़ा साथ में, दिल की हिम्मत अफजाई में!
दिल तुमसे मिलना चाहता है, चुपके चुपके तन्हाई में!"

.................(चेतन रामकिशन "देव").......................

Thursday 25 October 2012


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥जीवन(एक चुनौती ).♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जब जीवन को एक चुनौती समझ के तुम व्यतीत करोगे!
जात-धर्म से ऊपर उठकर, जब मानव से प्रीत करोगे!
अपनी आंखे लक्ष्य पे रखकर, यकीं करोगे जब मेहनत पर,
वो दिन ऐसा होगा जिस दिन, हर मंजिल पर जीत करोगे!

जो जीवन में कंटक सहकर भी आगे बढ़ते जाते हैं!
वही लोग एक दिन दुनिया में तारे बनकर छा जाते हैं!

जिस दिन अपने चिंतन में तुम, साहस का संगीत भरोगे!
जब जीवन को एक चुनौती समझ के तुम व्यतीत करोगे...

दुरित सोच के पोषक बनकर, तुम मन की शक्ति न खोना!
तुम अपने हाथों से जग में, नफरत के अंकुर न बोना!
जो कल पर छोड़ोगे सब कुछ, तो कुछ भी न मिल पायेगा,
इसीलिए अपने जीवन में, तुम आलस की नींद न सोना!

जो बे-संसाधन होकर भी, कुछ करने का प्रण करते हैं!
वही लोग एक दिन दुनिया में, लोगों को प्रेरित करते हैं!

जीते जी मृत हो जाओगे, जो उर्जा को शीत करोगे!
जब जीवन को एक चुनौती समझ के तुम व्यतीत करोगे...

मुश्किल तो आएँगी पथ में, जीवन केवल सरल नहीं है!
घनी अमावस भी आती हैं, जीवन केवल धवल नहीं है!
"देव" नहीं जीवन में केवल, हरियाली का आंचल होता,
लेकिन अपने बल के आगे कोई, मुश्किल सबल नहीं है!

जो मन में उर्जा भर कर के, मुश्किल से डटकर लड़ते हैं!
वही लोग एक दिन दुनिया में, मंजिल की सीढ़ी चढ़ते हैं!

जिस दिन साहस के पुष्पों से, जीवन को अभिनीत करोगे!
जब जीवन को एक चुनौती समझ के तुम व्यतीत करोगे!"

"
जीवन-जब चुनौती के साथ जिया जाता है तो हमारे कर्मों में उत्कृष्ट क्षमता का विकास होता है! जीवन में, सुख की बेला आती हैं तो दुःख का वज्रपात भी! किन्तु जो दुःख सहने की शक्ति को, अपने मन में समाहित कर लेते हैं, वे लोग निश्चित जीवन में उर्जावान बनकर, लक्ष्य प्राप्ति की ओर रुख करते हैं....तो आइये चिंतन करें!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-२६.१०.२०१२ 

"सर्वाधिकार सुरक्षित"
ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित!


♥♥♥♥♥♥♥♥♥तेरी याद ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तन्हाई में जब मुझको तेरी याद आ गयी!
तो गम की घटा फिर से मेरे दिल पे छा गयी!

जब याद में मिलना था तो बेहद सुखद लगा,
जब आई जुदाई तो, वो मुझको सता गयी!

आया जो बुरा वक़्त तो अंजाम ये हुआ,
साहिल पे आती कश्ती भी मुझको डुबा गयी!

अब मेरी नजर चाँद पे रूकती ही नहीं है,
जब से ये गम की रात, मेरे दिल को भा गयी!

उसने तो "देव" मुझको गिराया था बहुत पर,
कुदरत मुझे हर बार ही जीना सिखा गयी!"

.............(चेतन रामकिशन "देव")...............







Wednesday 24 October 2012


♥♥♥♥♥♥♥आम आदमी(क्रांति का दूत)♥♥♥♥♥♥♥♥♥
आम आदमी नींद से जागो, तुम्ही क्रांति ला सकते हो!
तुम ही फिर से आजादी के, दीपक यहाँ जला सकते हो!

खुद को दीन समझना छोड़ो, हमे जुल्म से टकराना है!
लूट मार की हमें न चाहत, हमको अपना हक पाना है!
हमको अपनी रगों का देखो, खून गर्म करना ही होगा,
शीश झुकाने से अच्छा तो, रण भूमि में मर जाना है!

देश के काले अंग्रेजों की, तुम ही नींव हिला सकते हो!
आम आदमी नींद से जागो, तुम्ही क्रांति ला सकते हो...

शोषण करने वालों का डर, अपने जीवन में न भरना!
अपना मन निर्भीक बनाकर, युद्ध कला को विकसित करना!
रणभूमि में बिगुल बजाकर, तुम करना आरम्भ युद्ध का,
तुम शत्रु की फौज देखकर, अणु बराबर भी न डरना!

तुम उर्जा के वाहक बनकर, हिम के पिंड गला सकते हो!
आम आदमी नींद से जागो, तुम्ही क्रांति ला सकते हो...

किन्तु जब तक सोए हो तुम, तब तक मुक्त नहीं हो सकते!
रहोगे यूँ ही सहमे सहमे, साहस युक्त नहीं हो सकते!
"देव" यदि स्वीकार्य है तुमको, यही गुलामी इस जीवन में,
तो तुम केवल दीन रहोगे, शक्ति पुंज नहीं हो सकते!

तुम शक्ति पहचानो अपनी, गगन को भू पर ला सकते हो!
आम आदमी नींद से जागो, तुम्ही क्रांति ला सकते हो!"

"
देश में लोगों की गाढ़ी कमाई लूटने वाले, आम जनों को जात धर्म की आग और महंगाई की तपिश में झोंकने वाले, सफेदपोशों से मुकाबला करना है तो, आम आदमी को नींद से जागना होगा, अपनी सुप्त अवस्था से मुक्ति पाकर, क्रांति का अग्रदूत बनना होगा..तभी आम आदमी को उसके अधिकारों की प्राप्ति हो सकेगी!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-२५.१०.२०१२

सर्वाधिकार सुरक्षित!


♥♥♥♥♥♥गम का दीदार.♥♥♥♥♥♥♥
गम का बड़े करीब से दीदार किया है!
हाँ मैंने भी दुनिया में कभी प्यार किया है!

मेरे लफ्जों में देखो नहीं कोई भी बनावट,
अश्कों से मैंने लफ्जों का सिंगार किया है!

अब रंग सियासत का भी चौखा हुआ यारों,
नेताओं ने जब से इसे बाजार किया है!

जिस शख्स को चाहती रही, वो पूजती रही,
उसने ही तो इज्ज़त को तार-तार किया है!

वो लोग मुझे "देव" बहादुर नहीं लगे,
जिन लोगों ने पीछे से, मुझपे वार किया है!"

.............(चेतन रामकिशन "देव")............

Tuesday 23 October 2012


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रेम-भाव.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सखी जगे हैं जब से मन में, तेरी प्रीत के भाव!
तब से मन में नहीं रहा है, हिंसा का प्रभाव!
सुखमय रहता है मेरा मन, जलें हर्ष के दीप,
सखी तुम्हारे प्रेम से पाया, जीवन में सद्भाव!

मन भी पावन हो जाता है, जब मिलता है प्यार!
सखी प्रेम से रच जाता है, सपनों का संसार!

सखी प्रेम से भर जाते हैं, दुःख के गहरे घाव!
सखी जगे हैं जब से मन में, तेरी प्रीत के भाव..

रंग बिरंगी, सतरंगी किरणों का हो प्रवेश!
सखी प्रेम से धूमिल होता, हिंसा और आवेश!
सखी प्रेम की छाँव से होता बैर-भाव का अंत,
सखी प्रेम से शीश दमकता, लहराते हैं केश!

सखी प्रेम की अनुभूति है, दुनिया में अनमोल!
सखी प्रेम से स्फुट होते, मुख से मीठे बोल!

सखी प्रेम से मिट जाते हैं, सब मैले मनोभाव!
सखी जगे हैं जब से मन में, तेरी प्रीत के भाव..

सखी प्रेम की हरियाली से, चलो करो श्रृंगार!
सखी प्रेम के कंगन पहनो, सखी प्रेम के हार!
सखी तुम्हारे रूप में देखो, निहित हुआ है प्रेम,
सखी "देव" को मोहित करती, प्रेम की ये रस धार!

सखी प्रेम से मृत होता है, अभिमान का दंश!
सखी प्रेम से रंग दें आओ, जीवन का हर अंश!

प्रेम से शोधन हुआ है मन का, धवल हुए दुर्भाव!
सखी जगे हैं जब से मन में, तेरी प्रीत के भाव!"

"
प्रेम-संसार में बढ़ते जा रही हिंसा, अमानवीयता को समाप्त करने/ कम करने के लिए प्रेम ही एक सशक्त माध्यम है! मेरी कविता को सखी के इर्द-गिर्द रचने का मकसद ये नही कि, प्रेम सिर्फ सखी का पर्याय है! प्रेम जीवन के प्रत्येक सम्बन्ध के लिए आवश्यक है!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-२४.१०.२०१२

सर्वाधिकार सुरक्षित!





♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥मन का रावण.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
हम सबके मन में रावण है, पहले उस रावण को मारो!
अपना मुख दर्पण में देखो, तुम अपने मन को धिक्कारो!

जिस दिन हम सबके मन से, रावण का विष मर जायेगा!
उस दिन देखो कलयुग में भी, राम राज का सुर गायेगा!
एक दूजे से प्यार बढेगा, मानवता भी सुखमय होगी,
हिंसा, नफरत, भेद भाव से, अपना जीवन तर जायेगा!

औरों को तब इंगित करना, पहले खुद की सोच सुधारो!
हम सबके मन में रावण है, पहले उस रावण को मारो!"

...................(चेतन रामकिशन "देव")......................

♥♥♥♥♥न कलम-न किताब..♥♥♥♥
न हाथ में कलम है न, कोई किताब है!
मजदूर बालकों की तो हालत खराब है!

वो सोचेंगे कैसे भला तालीम के लिए,
मजबूरी का, लाचारी का उन पर दवाब है!

पैरों की बिवाई से छलकने लगा लहू,
और आँखों से होने लगा गम का बहाव है!

नेताओं के फिर झुंड यहाँ दिखने लगे हैं,
लगता है कोई आ गया फिर से चुनाव है!

चुभते हैं "देव" उसको ही कांटे यहाँ देखो,
जिस शख्स ने सबको दिया खिलता गुलाब है!"
............(चेतन रामकिशन "देव")...............

Monday 22 October 2012


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥कन्या का पूजन.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कन्या का पूजन करते हो, तो उसका अपमान न करना!
कभी किसी कन्या को देखो, गर्भ में तुम अवसान न करना!

ये भक्ति और पूजन क्रिया, तभी सार्थक हो पायेगी!
जब कन्या भी पुत्रों जैसे, समता भावों को पायेगी!
कन्या के हित की सोचे बिन, ये पूजा पाखंड सरीखी,
कैसे माँ का मन खुश होगा, कैसे कन्या मुस्काएगी!

दुरित सोच को धारण भरके, तुम भक्ति में ध्यान न करना!
कन्या का पूजन करते हो, तो उसका अपमान न करना!"
.................(चेतन रामकिशन "देव").....................


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥याद..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुम्हारी याद भी देखो, बहुत से रंग लाती है!
कभी हमको हंसी देती, कभी हमको रुलाती है!
कभी तो भीड़ में तनहा, मुझे कर देती है लेकिन,
कभी तन्हाई में वो साथ, मेरे गुनगुनाती है!"

...............(चेतन रामकिशन "देव").............

Sunday 21 October 2012

♥मन की उर्जा.♥


♥♥♥♥मन की उर्जा.♥♥♥♥
मन में उर्जा धारण करके, 
लक्ष्यों का निर्धारण करके!

अपने मन की घोर निराशा, 
तुम साहस से आहरण करके!

जिस दिन अपने जीवन में तुम, 
सही दिशा को तय कर लोगे!

त्याग के अपनी अनिद्रा को, 
दिनचर्या में लय कर लोगे!

उस दिन तुमको ही निश्चित ये,
जीवन पथ आसान लगेगा,

जीवन में आयेंगी खुशियाँ,
तुम मंजिल पे जय कर लोगो!

पीड़ा को तुम बह जाने दो,
नहीं रखो अधिकारण करके! 

मन में उर्जा धारण करके,
लक्ष्यों का निर्धारण करके!"

..(चेतन रामकिशन "देव")..



♥♥♥♥♥♥♥♥ग़म की गर्द..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
आँखों से अश्क बहते हैं और दिल में दर्द है!
जीवन में जाने छाई क्यूँ ये ग़म की गर्द है!

अनजाने में समझा था जिसे रूह का साथी,
वो जिस्म का भूखा है, बड़ा प्यासा मर्द है!

मुफ़लिस के हक में खुशियों की आवो-हवा कहाँ,
गरमी है, सुनामी है, ये मौसम भी सर्द है!

अपनों ने की दगा तो ये सांसें उखड़ गयीं,
पथराई सी आंखें हैं, ये चेहरा भी ज़र्द है!

दुश्मन से मुझे "देव" है कोई गिला नहीं,
अपनी ही शराफत पे, मुझे आता अर्द है!"

.............(चेतन रामकिशन "देव")..........
(अर्द-क्रोध, ज़र्द-लगभग पीला, गर्द-धूल)

Saturday 20 October 2012


♥♥♥♥♥♥♥रूह की आवाज..♥♥♥♥♥♥♥
मायूसी से जीवन का गुजारा नहीं होता!
सब कुछ ही जिंदगी में, हमारा नहीं होता!

जिन लोगों को खुद पे नहीं होता है भरोसा,
उन लोगों का कोई भी सहारा नहीं होता!

हर शख्स को आँखों में वसायें भी तो कैसे,
हर कोई यहां चाँद सा प्यारा नहीं होता!

मिल जाती है मंजिल उसे इक रोज जहाँ में,
जिसे हारके भी थकना गवारा नही होता!

तुम "देव" सच की राह से हरगिज न भटकते,
गर रूह की आवाज को मारा नहीं होता! "

..........(चेतन रामकिशन "देव")...........

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥दिल की मज़बूरी..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जीवन के लालन पालन को, काम भी देखो बड़ा जरुरी!
पर दिल उनकी याद में उलझे, नहीं समझता ये मज़बूरी!

जब भी दिल से कहता हूँ के, काम पे उनको याद न करना!
तब तब ही दिल की आँखों से, बह जाता अश्क़ों का झरना!

दिल कहता हैं रुंधे गले से, सही न जाती उनकी दूरी!
जीवन के लालन पालन को, काम भी देखो बड़ा जरुरी!"

........................चेतन रामकिशन "देव".......................

♥♥♥♥♥♥प्यार की दरकार..♥♥♥♥♥
मेरे नसीब में तुम्हारा प्यार नहीं है!
या तुमको मेरे प्यार की दरकार नहीं है!

अश्कों से धोके मैंने निखारा है ये चेहरा,
मेरे चेहरे पे देखो कोई, श्रंगार नहीं है!

मैं कैसे काटूं आदमी को जानवर समझ,
मेरे हाथ में कोई मजहबी तलवार नहीं है!

ए दोस्त मैंने फिर से अपने दिल को संवारा,
अब दिल का कोई टूटा हुआ तार नहीं है!

आओ के "देव" चलते हैं, आकाश की तरफ,
जिस राह पे कोई मजहबी दीवार नहीं है!"
..........(चेतन रामकिशन "देव")...............

Friday 19 October 2012


♥♥♥♥♥♥♥♥जीवन(एक गतिशील अवस्था)♥♥♥♥♥♥♥♥
जीवन पथ में कभी विरह तो, कभी मिलन के पल आते हैं!
कभी यहाँ चुभते हैं कंटक, कभी सुमन भी खिल जाते हैं!
किन्तु अपने जीवन से तुम, साहस का परित्याग न करना,
साहस का धारण करने से, मुश्किल के पल ढल जाते हैं!

जीवन की नियति में देखो, सुख दुःख दोनों की नीति है!
कभी हारती है किस्मत तो, कभी यहाँ मेहनत जीती है!

कभी यहाँ बुझते हैं दीपक, कभी सितारे जल जाते हैं!
जीवन पथ में कभी विरह तो, कभी मिलन के पल आते हैं...

भूले से भी अपने मन को, नहीं कभी अवचेतन करना!
पीड़ा की घातक किरणों का, तुम न कभी विभेदन करना!
जीवन में अपने हाथों से, किसी का जीवन न बंजर हो,
आशाओं के वाहक बनकर, नहीं निराशा प्रेषण करना!

जीवन के आँगन में देखो, कभी हर्ष की ज्योति जलती!
और कभी अपनों के हाथों, जीवन में पीड़ा भी मिलती!

कभी आज पीड़ामय होता, कभी सुनहरे कल आते हैं!
जीवन पथ में कभी विरह तो, कभी मिलन के पल आते हैं...

जो जीवन को युद्ध समझके, युद्ध कला को विकसित करते!
वही लोग एक दिन दुनिया में, इतिहासों की रचना करते!
"देव" जिन्हें अपने लक्ष्यों की, यहाँ प्राप्ति करनी होती,
वो न देखें तिमिर रात का, न कल की प्रतीक्षा करते!

जीवन के इस पथ में देखो, नहीं पराजय से घबराना!
अपने मन में आशाओं के, मरते दम तक दीप जलाना!

गर्म लहू की आंच से देखो, दुःख के हिम भी गल जाते हैं!
जीवन पथ में कभी विरह तो, कभी मिलन के पल आते हैं!"

"
जीवन पथ-ऐसे कोई व्यक्ति नहीं जो संघर्ष की अवस्था में नहीं हो, हर व्यक्ति आगे बढ़ना चाहता है, किन्तु आगे बढ़ने के लिए स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की भावना और साहस का होना अति आवश्यक है! हाँ ये भी सत्य है कि कुछ लोग सफलता के लिए दूसरों से प्रतिस्पर्धा नहीं बल्कि उन्हें गिराने/छलने का प्रयास करते हैं, किन्तु यदि आप में जीतने का जज्बा है, तो पहाड़ जैसी समस्याएँ/बाधायें भी बाधक नहीं बन सकतीं!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-२०.१०.२०१२ 

सर्वाधिकार सुरक्षित!
ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित!



♥♥♥♥♥♥♥♥♥वक़्त के साथ.♥♥♥♥♥♥♥♥♥
वक़्त के साथ जो चलते हैं, वो बढ़ जाते हैं!
आलसी लोग यहाँ कुछ नहीं कर पाते हैं!

जंगे-मैदान में वो खाक भला जीतेंगे,
जंग के नाम से ही लोग जो डर जाते हैं!

ऐसे लोगों में कहाँ जिन्दादिली होती है,
गम के तूफान से जो पल में बिखर जाते हैं!

ऐसे लोगों को भला कैसे भुलाये कोई,
रूह में चांदनी बनके जो उतर जाते हैं!

लोग ऐसे भी "देव" कम नहीं जमाने में,
मुल्क के नाम जो हँसते हुए मर जाते हैं!"

.........(चेतन रामकिशन "देव").........

♥♥♥♥♥♥♥♥उनकी जुदाई.♥♥♥♥♥♥♥♥♥
उनकी जुदाई का बड़ा, गहरा असर हुआ!
मंजिल भी खो गईं सभी, सुनसान घर हुआ!

आँखों से अश्क बहते हैं, सांसों में चुभन है,
बिन उनके जिंदगी का ये मुश्किल सफर हुआ!

आया जो बुरा वक़्त तो हालात ये हुए,
अपनों की तरह अजनबी मेरा शहर हुआ!

अख़बारों में भी छपते हैं दमदार के बयां,
अख़बार भी मजलूमों से अब बेखबर हुआ!

अब "देव" कौन किसके लिए फिक्रमंद है,
गुम अपने में देखो यहाँ, हर इक बशर हुआ! "
..........(चेतन रामकिशन "देव")............

Wednesday 17 October 2012


♥♥♥♥♥♥♥कविता(एक उत्कृष्ट अभिव्यक्ति)♥♥♥♥♥♥♥♥
कभी कविता चाँद सी प्यारी, तारों जैसी झिलमिल लगती!
कभी कविता मित्र सरीखी, मानव दुःख में शामिल लगती!
कभी कविता प्रेम मिलन तो कभी विरह में गोते खाती, 
कभी कविता शिक्षक जैसी, पढ़ी-लिखी और काबिल लगती!

कविता भी बेहद अच्छी है, जो सुख दुख का बोध कराए!
कभी लौटकर बचपन में वो, बालक की भांति मुस्काए!

कभी कविता खद्दर जैसी, और कभी ये मलमल लगती!
कभी कविता चाँद सी सुन्दर, तारों जैसी झिलमिल लगती...

कभी कविता हरियाली के परिधानों में मन को भाती!
कभी कविता कोयल जैसे मधुर मधुर संगीत सुनाती!
कभी कविता बंजर भूमि और कृषक का दर्द उभारे,
कभी कविता मजदूरों के शोषण की तस्वीर दिखाती!

कविता भी बेहद अपनी है, ये आँखों में स्वप्न जगाए!
और कभी दर्पण की तरह, सच्चाई का चित्र दिखाए!

कभी कविता गर्म लहू तो, गंगाजल सी शीतल लगती!
कभी कविता चाँद सी प्यारी, तारों जैसी झिलमिल लगती...

कविता के रचनाकारों तुम, कविता का सम्मान बढ़ाना!
कविता को न दूषित करना, कविता का न शीश झुकाना!
"देव" कविता अपने मन की, और ह्रदय की अभिव्यक्ति है,
किन्तु अपनी प्रस्तुति से, हिंसा की न आग लगाना!

कविता को भी कुछ लोगों ने, अपने पथ से भटकाया है!
कुछ लोगों ने कविता से भी, जन मानस को भड़काया है!

कभी कविता दुरित विचारक, और कभी ये दलदल लगती! 
कभी कविता चाँद सी प्यारी, तारों जैसी झिलमिल लगती!"

"
कविता-मन की अभिव्यक्ति-चूँकि कलमकार समाज का दर्पण होता है, इसीलिए ऐसे में उसकी जिम्मेदारी और भी ज्यादा हो जाती है कि वो समाज को एक ऐसा द्रश्य दिखाए, जिससे पाठक का अंतर्मन, स्वस्थ भावना के साथ उन शब्दों से जुड़े और उन शब्दों का अनुकरण होने पर समाज में मानवीयता भंग न हो!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-१८.१०.२०१२ 

"सर्वाधिकार सुरक्षित"
ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित!

♥♥♥♥♥♥♥काँटों की चुभन.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
आजकल रिश्ते भी कमजोर बहुत होने लगे!
आज अपने ही मुझे दर्द में डुबोने लगे!

कल तलक जो मेरी राहों में फूल रखते थे,
वही बेदर्दी से अब काँटों को चुभोने लगे!

आज कल मुल्क के नेताओं की हालत देखो,
अपने लालच में अछूतों के घर भी सोने लगे!

बूंद भर को प्यार को तरसेंगे वही लोग यहाँ,
बीज नफरत के जो सारे जहाँ में बोने लगे!

"देव" बाजार में अब कीमतें घटीं देखो,
चंद सिक्कों के लिए लोग ईमां खोने लगे!"

...........(चेतन रामकिशन "देव").............

Tuesday 16 October 2012


♥♥♥♥♥♥♥♥♥मेरे खत..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुम भले ही मेरे खत को संभाल कर रखना!
हाँ मगर उसको लिफाफे में डाल कर रखना!

भूल से भी नहीं पढ़ना कभी अलफ़ाज मेरे,
गर पढ़ो तो जरा आंसू संभाल कर रखना!

तेरे होठों पे कभी, नाम न आ जाये मेरा.
अपनी यादेँ मेरे दिल से निकाल कर रखना! 

गम के जितना करीब लाओगे तो तड़पोगे,
गम के सूरज को तुम ऊँचा उछाल कर रखना!

अब अलग होके "देव" जीने की मजबूरी है,
तुम मेरे प्यार को, ख्वाबों में ढाल कर रखना!"

............चेतन रामकिशन "देव"...............

सर्वाधिकार सुरक्षित!
ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित!

Monday 15 October 2012


♥♥♥♥♥♥♥♥देश के नाम ♥♥♥♥♥♥♥♥♥
देश के नाम जो मर जाते हैं, मिट जाते हैं!
लोग ऐसे कहाँ अब, याद किये जाते हैं!

हम तो डरते हैं यहाँ मौत की खनक से ही,
और वो फांसी के फंदे पे भी मुस्काते हैं!

उनकी तस्वीर पे दो फूल भी नहीं साहब,
और हम पत्थरों पे लाख धन लुटाते हैं!

मुल्क में रहते हैं अब सिर्फ तमाशाई ही,
और गुंडे यहाँ इज्ज़त को लूट जाते हैं!

इससे तो अच्छा है वो "देव" पुराना भारत,
लोग बच्चों को जहाँ, होंसला सिखाते हैं!"

........चेतन रामकिशन "देव"...........


♥♥♥♥♥♥♥न ही देखा माँ दुर्गे को..♥♥♥♥♥♥♥♥
न ही देखा माँ दुर्गे को, न देखा माँ सरस्वती को!
न लक्ष्मी को देखा मैंने, न ही देखा शैल छवि को!

अपनी दोनों माताओं में, पर इनके दर्शन होते हैं!
देवी शक्ति के ह्रदय भी, माँ जैसे कोमल होते हैं!

देवी जैसे सुन्दर करतीं, दोनों माता मेरी मति को!
न ही देखा माँ दुर्गे को, न देखा माँ सरस्वती को!"
♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-१६.१०.२०१२ 


"
नवरात्रि के पवित्र दिवसों की बेला पर अपनी दोनों माताओं( माँ कमला देवी और माँ प्रेमलता जी) को 


समर्पित पंक्तियाँ, मैंने माँ दुर्गे अथवा उनके रूप अपनी आँखों से भले नहीं देखे हों, किन्तु मुझे अपनी दोनों 

माताओं में उनकी छवि दिखती है! क्यूंकि माँ(नारी) होती हैं और नारी स्वयं देवी होती हैं"


♥♥♥♥शब्दों का तन..♥♥♥♥♥
आज कलम का मन ज़ख़्मी है 
और शब्दों का तन ज़ख़्मी है!

हिंसा से भूमि घायल है,  
और ये नील गगन ज़ख़्मी है!

हंसी भला कैसे आये,
जब मानवता की लाश पड़ी हो!

नहीं कफ़न तक के पैसे हों,
और निर्धन की रुदन घड़ी हो!

संतानों के होते भी जब,
घर के बूढ़े मांगे भिक्षा,

और लोगों की जान से ज्यादा,
जब दौलत की छवि बड़ी हो!

हरियाली का वध करने से,
आज हमारा वन ज़ख़्मी है!

आज कलम का मन ज़ख़्मी है!
और शब्दों का तन ज़ख़्मी है!"

....चेतन रामकिशन "देव"......

Sunday 14 October 2012


♥♥♥♥♥♥♥वियोग(वेदना की यात्रा).♥♥♥♥♥♥♥♥♥
प्रीत का धागा टूट गया और मन को मिला वियोग!
छोड़ गए हैं मुझको अपना कहने वाले लोग!
जीवन पथ में भी चुभते हैं, अब पीड़ा के शूल,
हँसते गाते इस जीवन को, लगा दुखों का रोग!

न जाने क्यूँ बन जाते हैं, लोग यहाँ पाषाण!
उनको क्या निकलें तो निकलें भले किसी के प्राण!

सोचा न था भावनाओं का, होगा यूँ प्रयोग!
प्रीत का धागा टूट गया और मन को मिला वियोग...

हुआ है मन के रिश्ते का भी क्षण भर में अवसान!
मेरे दुखों का, मेरे घाव का, नहीं है उनको ध्यान!
मेरे रोते नयनों से भी, नहीं है उनको नेह,
इस पीड़ा से जीवन पथ में, हुआ बड़ा व्यवधान!

मेरी याचना की भी रखी, नहीं उन्होंने लाज!
नहीं पसीजे सुनकर मेरी रुंधी हुयी आवाज!

अपनों ने बस छला है मुझको, किया है बस उपयोग!
प्रीत का धागा टूट गया और मन को मिला वियोग...

ऐसे लोग नहीं अपने जो, नहीं समझते पीर!
ऐसे लोग तो भेद रहे, बस ह्रदय और शरीर!
"देव" नहीं पीड़ा तक में, वो करते हैं स्नेह,
मुखमंडल से स्फुट करते, वो जहरीले तीर!

मेरे नयनों के अश्रु से, भीग गया आकाश!
न ही मन में हर्ष है कोई, न कोई उल्लास!

औरों को दुख देकर कैसे, हर्षित रहते लोग!
प्रीत का धागा टूट गया और मन को मिला वियोग!"

"
वियोग- के कारण किसी का जीवन, पीड़ा और वेदना के अति निकट पहुँच जाता है और उस व्यक्ति के जीवन से हर्ष और उल्लास के रंग लुप्त हो जाते हैं, वो व्यक्ति हंसने की चेष्टा भी करे, तो भी उसके नयन सजल हो जाते हैं, तो आइये किसी को वियोग और वेदना देने से पहले मंथन करें!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-१५.१०.२०१२

सर्वाधिकार सुरक्षित!
ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित!

Saturday 13 October 2012



♥♥♥♥♥♥♥धूप की जलन..♥♥♥♥♥♥♥♥
धूप में जलने की आदत तो डालनी होगी!
वक़्त में ढलने की आदत तो डालनी होगी!

झूठ से रूह को सुकून नहीं मिल सकता,
झूठ से डरने की आदत तो डालनी होगी!

हाथ पे हाथ जो रख दोगे, तो क्या पाओगे,
कुछ कर गुजरने की आदत तो डालनी होगी!

दर्द को देख के कमजोर नहीं पड़ जाना,
दर्द को सहने की आदत तो डालनी होगी!

प्यार है "देव" तो इजहार भी जरुरी है,
हाले दिल कहने की आदत तो डालनी होगी!"

("शुभ-दिवस"..चेतन रामकिशन "देव")




♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥हे मानव...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मर्यादा का परदा मन से, तार-तार जब हो जाता है!
और नैतिकता की नीति का, संस्कार जब खो जाता है!
संबंधों के अपनेपन में, बढ़ जाती है जब कड़वाहट,
और मनुज के ह्रदय का जब, शुद्ध आचरण सो जाता है!

ऐसी दुरित दशा में देखो, सामाजिकता भी रोती है!
नहीं पता मानव की बुद्धि, क्यूँ मन से चेतन खोती है!
क्यूँ लालच के हाथों मानव, मानव का ही रक्त बहाता,
जाने क्यूँ उसकी अनुभूति, चिर निद्रा में सो जाती है!

जागरूक होकर के इसका, चिंतन तो करना ही होगा!
हे मानव! तुझे ह्रदय में अपने, प्रेम भाव भरना ही होगा!"

.................चेतन रामकिशन "देव".........................







Friday 12 October 2012


♥♥♥♥♥♥♥मन की उड़ान.♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कुछ करने की मन में जरा उड़ान तो भरो!
सच्चाई से हासिल कोई मुकाम तो करो!

जीने को तो जीते हैं, करोड़ों यहाँ मगर,
जो भीड़ में चमके, जरा वो नाम तो करो!

नफरत से रंज बढ़ता है, बढती है दूरियां,
लोगों के दिल में, प्यार का पैगाम तो भरो!

इस मुल्क को जो दे गए, आजादी का तोहफा,
उनको जरा अदब से तुम, सलाम तो करो!

एक दिन तुम्हारे क़दमों पे, चलेगा ये जहाँ,
पर "देव" कोई यादगार, काम तो करो!"
..........चेतन रामकिशन "देव"...........

Thursday 11 October 2012


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥वक्त..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
वक्त तो वक्त है, अच्छा भी है, खराब भी है!
जिंदगी स्याह कभी और आफ़ताब भी है!

कोई हँसता है यहाँ, चेहरे पर रौनक लेकर,
किसी की आंख में, आंसू भरा सैलाब भी है!

कोई तो तरसे यहाँ, एक बूंद भर पानी को,
किसी की राह में बहती, यहाँ शराब भी है!

कोयला खोदने वाला यहाँ काला पड़ता,
कोयला बेचने वाला यहाँ महताब भी है!

"देव" गुमनामी में मर जाता है कोई देखो,
कोई दुनिया में मगर हीरे सा, नायाब भी है!"

"वक्त-का अपना एक नियम है! कभी वक्त अच्छा होता है तो कभी ख़राब! कभी वक्त हमे उत्कृष्टता प्रदान करता है तो वहीँ कभी ये वक्त जमींदोज कर देता है! वक्त के इन्ही क्षणों को शब्द देने भर की कोशिश की है.."

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-१२.१०.२०१२

सर्वाधिकार सुरक्षित!
ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित!


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
दूर हो मुझसे मगर पास नजर आती हो!
रात में ख्वाब की तरह से मचल जाती हो!
जब भी होता है अँधेरा मेरे जीवन पथ में,
चांदनी बनके चंहुओर तुम खिल जाती हो!"

..........चेतन रामकिशन "देव"...........

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
बंद आँखों से न ख्वाबों का नजारा देखो!
उतरो सागर में नहीं सिर्फ किनारा देखो!

तुमको पानी है जो, जीवन में बुलंदी अपने,
करो मेहनत नहीं किस्मत का सितारा देखो!

जिंदगी है तो यहाँ दुख भी और सुख भी हैं,
बिना दुख के नहीं, जीवन का गुजारा देखो!

मुल्क में छूट भी मिलती है बस अमीरों को,
कोई बनता नहीं, मुफलिस का सहारा देखो!

मिट रहे रिश्ते "देव", चंद रुपयों की खातिर,
बाप को बेटे ने, बेदर्दी से मारा देखो!"

................चेतन रामकिशन "देव".............


Wednesday 10 October 2012



♥♥♥♥♥♥♥♥♥अपनों का दंश...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
निर्मोही होकर अपनों ने, दर्द दिया है अंतर्मन को!
गम की स्याही से रंग डाला, अपनों ने मेरे जीवन को!

अपनी लय में आने की, यूँ तो कोशिश करता हूँ लेकिन,
गर अपने पर नहीं काटते, तो छू लेता नील गगन को!

रूप रंग की चमक देखकर, लोग यहाँ सुध-बुध खो देते,
नहीं झांकता दिल में कोई, नहीं बाँचता कोई मन को!

गैरों से क्या करें शिकायत, उनका कोई गुनाह नहीं है,
रोंद रहा है जब माली ही, बगिया के हर खिले सुमन को!

"देव" एक दिन आएगा वो, जब वो बेटी को तरसेंगे,
आज कोख में कुचल रहे जो, अजन्मी बेटी के तन को!"

...................चेतन रामकिशन "देव"....................


Tuesday 9 October 2012


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥मन की सोच..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सुन्दर रखो मन को अपने, दुरित भावना न अपनाओ!
मानवता के प्रहरी बनकर, अपनायत के दीप जलाओ!

जीवन में संसाधन हेतु, सीमित धन का संचय कर लो,
किंतु इस दौलत को अपनी, तुम कमजोरी नहीं बनाओ!

ये जीवन है चार दिनों का, दुःख में इसे बिताते क्यूँ हो,
संतुष्टि को धारण करके, इस जीवन में खुशी मनाओ!

जीवन की ये आपा धापी, चलती रहती है जीवन भर,
इसीलिए तुम इस जीवन की, परीक्षाओं से न घबराओ!

ये पक्का है इक दिन अपनी, मेहनत देखो रंग लाएगी,
"देव" यही आशा लेकर के, तुम जीवन में बढ़ते जाओ!"

........."शुभ-दिन"......चेतन रामकिशन "देव".........


♥♥♥♥♥♥दर्द का आसमान..♥♥♥♥♥♥♥
दर्द का आसमान, जिंदगी पे छाने लगा!
उसकी यादों का असर, आज फिर सताने लगा!

जो कल तलक मेरा हमदर्द, मेरा अपना था,
आज वो शख्स ही, मुझसे नजर चुराने लगा!

आज कल रिश्तों का कैसा, हश्र हुआ देखो,
भाई अपने ही भाई का, लहू बहाने लगा!

जिसको ताक़त यहाँ मिल जाती है, धन दौलत की,
वही इन्सान गरीबों पे, कहर ढ़ाने लगा!

"देव" अब देखिये हालात कैसे आये हैं,
आईना भी मेरी सूरत को, अब भुलाने लगा!"

............चेतन रामकिशन "देव".................

Monday 8 October 2012


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥न रुकना तुम.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
पथ हो चाहे दुर्गम कितना और सीने में गम हो कितना!
न रुकना तुम चलते जाना, तूफानी मौसम हो कितना!

समस्याओं से लड़ने की जब, शक्ति अपने मन भर लोगे!
अपने मन की दुरित भावना पर, जब तुम काबू कर लोगे!
उस दिन निश्चित ही जीवन में, उदय हर्ष का सूरज होगा,
जिस दिन तुम अपने जीवन में, नफरत से तौबा कर लोगे!

न डरना तुम अंधकार से, भले उजाला कम हो कितना!
पथ हो चाहे दुर्गम कितना और सीने में गम हो कितना...

बस किस्मत की राह देखकर, इस जीवन को नष्ट करो न!
तुम मिथ्या के संवाहक बन, इस जीवन को भ्रष्ट करो न!
इस जीवन में अभिमान के, अंकुर अपने मन में बोकर,
असहायों और कमजोरों के, जीवन में तुम कष्ट भरो न!

संतुष्टि से रहना सीखो, भले ही साधन कम हो कितना!
पथ हो चाहे दुर्गम कितना और सीने में गम हो कितना...

जो जीवन में लक्ष्य की खातिर, अपनी पीड़ा सह जाते हैं!
वही लोग एक दिन जीवन में, विजय लक्ष्य पर कर पाते हैं!
"देव" जो जीवित होकर के भी, रहते हैं मुर्दा बनकर के, 
कहाँ भला ऐसे जन देखो, दुनिया में कुछ कर पाते हैं!

खून में अपने गर्मी रखो, मौसम चाहें नम हो कितना!
पथ हो चाहे दुर्गम कितना और सीने में गम हो कितना!"

"
जीवन, जब जब आत्मविश्वास, साहस, दृढ संकल्प, संघर्ष और मेहनत के साथ जिया जाता है, तब तब जीवन में देखे गए लक्ष्य पूर्ण होते चले जाते हैं, जीवन में कमजोर और मृत प्राय रहने, जीवन अपनी उत्कृष्ट योग्यता को कभी प्राप्त नहीं कर पाता, तो आइये जीवित जीवन को, जीवित होकर जीने का प्रयास करें....."

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-०९.१०.२०१२ 

सर्वाधिकार सुरक्षित!
मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित!














Sunday 7 October 2012


♥♥♥♥♥♥जगा है जब से प्यार..♥♥♥♥♥♥♥♥
सखी जगा है जब से, मेरे मन में तेरा प्यार!
बड़ा ही सुन्दर लगता तब से, मुझको ये संसार!
मधुमयी है मेरा हर दिन, मधुमयी है रात,
सखी तुम्हारे प्रेम की बहती, हर क्षण मधुर बयार!

सखी जहाँ में प्रेम से पावन, नहीं कोई सम्बन्ध!
सखी प्रेम ही महकाता है, चन्दन भरी सुगंध!

सखी प्रेम ही शीतल करता, हिंसा के अंगार!
सखी जगा है जब से, मेरे मन में तेरा प्यार...

सखी प्रेम सूरज बनकर के, देता है प्रकाश!
सखी प्रेम से सुन्दर लगते, धरती और आकाश!
सखी प्रेम में हमें परस्पर, सुख-दुख का हो बोध,
सखी प्रेम में एक दूजे पर, बढ़ता है विश्वास!

सखी प्रेम है हरियाली की, हरी-भरी सौगात!
सखी प्रेम न देखे दौलत, न देखे औकात!

सखी प्रेम है उपवन जैसी, खिलती हुयी बहार!
सखी जगा है जब से, मेरे मन में तेरा प्यार...

सखी प्रेम देता है हमको, समरसता का ज्ञान!
सखी प्रेम से खिल जाती है, अधरों पर मुस्कान!
सखी तुम्हारे प्रेम से देखो, मिली "देव" को जीत,
सखी तुम्हारे प्रेम से मेरा, मन है आशावान!

सखी प्रेम से दुश्मन भी, बन जाते देखो मित्र!
सखी प्रेम है गंगाजल सा, मीठा और पवित्र!

सखी प्रेम से मिलता हमको, जीवन में सत्कार!
सखी जगा है जब से, मेरे मन में तेरा प्यार!"


"प्रेम-के भाव जब मन में जगते हैं तो ये संसार, बहुत सुन्दर लगने लगता है! मन से हिंसा और द्वेष के भाव लुप्त हो जाते हैं और मन गंगाजल की तरह शीतल और पवित्र हो जाता है! प्रेम के ये अनमोल भाव, किसी व्यक्ति की दौलत और संपत्ति से प्रभावित होकर नहीं उपजते, बल्कि ये प्रेम के भाव तो स्वयं दुनिया की सबसे बड़ी दौलत और संपत्ति हैं"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-०८.१०.२०१२

सर्वाधिकार सुरक्षित!
मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित!


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
आज उन्हीं लोगों ने हमसे, दूरी बहुत बना ली देखो,
जो हमसे कहते थे अपना, सात जनम तक का रिश्ता है!

घर में गर बेटी जन्मे तो, सबके चेहरे मुरझा जाते,
और अगर बेटा जन्मे तो, लगता कोई फरिश्ता है!

चंद रुपयों की खातिर देखो, होता कत्लेआम यहाँ पर,
मानो पानी से ज्यादा तो, खून यहाँ पर सस्ता है!

देश के दौलत वाले बेशक, छु लें अम्बर, आसमान को,
लेकिन "देव" करोड़ों की तो, आज भी हालत खस्ता है!"

.................चेतन रामकिशन "देव".......................

Saturday 6 October 2012


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥अपनायत के दीप ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
पत्थर जैसा दिल न करना, तुम मंजिल बोझिल न करना!
तुम औरों को दुख देकर के, अपना सुख हासिल न करना!

नफरत का माहौल बहुत है, लेकिन फिर भी प्यार निभाना!
मानवता को छलनी करके, मजलूमों को नहीं सताना!
कोई अपना दुख भी दे तो, उससे तुम नफरत न करना,
तुम दिल में अपनायत भरकर, अपनायत के दीप जलाना!

मानवता का खून बहाकर, तुम खुद को कातिल न करना!
पत्थर जैसा दिल न करना, तुम मंजिल बोझिल न करना!"

............शुभ-दिन".....चेतन रामकिशन "देव"...............

♥♥♥♥♥♥♥♥दिल की आवाज..♥♥♥♥♥♥♥♥
मेरे दिल की कभी आवाज, जो तुम सुन पाते!
मेरी राहों से कभी खार, अगर चुन पाते!

तुम भी गर देखते नजदीक से, तड़प मेरी,
मेरा दावा है, उस रोज तुम भी रो जाते!

हमको लगता जहाँ, उस रोज बहुत ही प्यारा,
जिस दिन एक दूसरे के, हम जो यहाँ हो जाते!

नींद आती हमें, उस वक़्त बहुत ही मीठी,
उनकी जो गोद में, सर रखके कभी सो जाते!

"देव" हमको भी जमाना ये याद करता गर,
हम भी कुर्बान जो, इंसानियत पे हो जाते!"

.............चेतन रामकिशन "देव".............

Friday 5 October 2012


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥तंगहाल..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
देश का निर्धन तंगहाल है, दुखी है बेरोजगार!
इनकी आँखों से बहती है, हर क्षण अश्रुधार!
खुले गगन के नीचे सोना, इनकी है मजबूरी,
इनका हित अनदेखा करती, देश की हर सरकार!

भूख प्यास से देखो इनके, जर्जर हुए शरीर!
बड़ी ही धुंधली देखो, इनके जीवन की तस्वीर!

अपनी मांग उठाते हैं तो पड़ती इन पर मार!
देश का निर्धन तंगहाल है, दुखी है बेरोजगार...

पढ़ लिखकर कुछ बन जाएँ, स्वप्न हुए सब चूर!
देश का हर एक निर्धन वासी , हुआ बड़ा मजबूर!
इनके दुख और बेचैनी को, मिलता नहीं करार,
इनके ज़ख्म भी बिना दवा के, बन जाते नासूर!

न भाए फिर इनके मन को, लेखन और किताब!
इनकी आंखे भूले से भी, फिर नहीं देखती ख्वाब!

जीर्ण-शीर्ण हो जाता, इनके जीवन का आधार!
देश का निर्धन तंगहाल है, दुखी है बेरोजगार...

जाने कब इनके जीवन का, बदलेगा ये ढंग!
जाने कब इनके जीवन में, भरेगा कोई रंग!
"देव" न जाने कब तक, इनको मिलेगा यूँ ही दर्द,
न जाने कब खुशी की, इनके मन में बजे तरंग!

दुख में जीवन यापन करते, देश के वंचित लोग!
इस पर भी नेता करते हैं, इनका बस उपयोग!

जाने कब इनके जीवन में, आये सुखद बहार!
देश का निर्धन तंगहाल है, दुखी है बेरोजगार!"

"देश- के निर्धन और बेरोजगार, वास्तव में मर मर के जिंदगी जीने को विवश हैं! देश की सरकारें, इनके हित के लिए भले ही अनेकों योजनायें चल रही हों, किन्तु भ्रष्ट अफसरशाही और नेताओं/ प्रतिनिधियों की लूटमार की नीति, उस पात्र तक लाभ नहीं पहुँचने देती, जो उन योजनाओं/रोजगार का पात्र है! "

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-०६.१०.२०१२

रचना संपादन-सम्मानित सीमा गुप्ता जी!

सर्वाधिकार सुरक्षित!
मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित!

♥♥♥♥♥♥♥♥प्यारा मुखड़ा.. ♥♥♥♥♥♥♥♥♥
बड़ा ही प्यारा मुखड़ा तेरा, सुन्दर है मुस्कान!
तू ही धड़कन मेरे दिल की, तू ही तन की जान!

नयन तुम्हारे बड़े ही प्यारे, मन को भाते केश!
बड़े ही सुन्दर लगते तुम पर, रंग बिरंगे वेश!
झुमकों के मोती भी, देखो बढ़ा रहे हैं रंग,
और तुम्हारी वाणी में है, न हिंसा, न द्वेष!

तुम सरिता जैसी निर्मल हो, फूलों सी नादान!
बड़ा ही प्यारा मुखड़ा तेरा, सुन्दर है मुस्कान!"

................चेतन रामकिशन"देव"................


Thursday 4 October 2012


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥पथरीला पथ.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जीवन का पथरीला पथ भी, एक दिन समतल हो जायेगा!
घनी अमावस स्याह रात का, रंग धवल भी हो जायेगा!

किन्तु ऐसा तब ही होगा, जब तुम आशावान बनोगे!
जात-धर्म से ऊपर उठकर, जब अच्छे इन्सान बनोगे!
अपने मन से कमजोरी के, भावों को तुम मुक्ति देकर,
शक्ति के संवाहक बनकर, तुम जिस दिन बलवान बनोगे!

जब तुम अच्छा सोचेगे तो, मन भी निर्मल हो जायेगा!
जीवन का पथरीला पथ भी, एक दिन समतल हो जायेगा..

ये सच है के जीवन पथ में, बड़े बड़े दुख के क्षण आते!
दिल भी खून के आंसू रोता, आँखों से आंसू बह जाते!
किन्तु इस जीवन में देखो, बिना दर्द रक्खा क्या है,
दर्द भरे ये क्षण ही देखो, जीवन में शक्ति भर जाते!

आज दर्द को सहन करो तुम, इक दिन अच्छा कल आयेगा!
जीवन का पथरीला पथ भी, इक दिन समतल हो जायेगा!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-०५.१०.२०१२ 






Wednesday 3 October 2012




♥♥♥♥♥♥♥बनावटी चेहरे..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
आजकल रूह के रिश्ते की बात क्या करनी,
लोग तो पल में मोहब्बत को, भुला देते हैं!

आजकल देखिये ज़माने का ये हाल हुआ,
घर के मुखिया ही, आज घर को जला देते हैं!

जिन पर रखो यकीन, अर्श पे ले जाने का,
लोग वो देखिये, मिटटी में मिला देते हैं!

जो किये करते हैं, दावे यहाँ अपनेपन के,
लोग वो नींव ईमारत की हिला देते हैं!

"देव" शायद यही दस्तूर है मोहब्बत का,
बेवफा लोग ही, वफ़ा का सिला देते हैं! "

............चेतन रामकिशन "देव"...........

Tuesday 2 October 2012


♥♥♥♥♥♥यादें(अतीत का दर्पण)♥♥♥♥♥♥♥
याद एक रोज बहुत, तुमको मेरी आएगी!
बीते लम्हों की झलक, तुमको भी रुलाएगी!
तुमको याद आयेंगे, जब मेरी आंख के आंसू,
तो तुम्हारी भी आंख, अश्क से भर जाएगी!

भूल से भी तुम्हें बदनाम, मगर करता नहीं!
आपकी तरह झूठ को, सलाम करता नहीं!

झूठ की दुनिया, कब तलक यूँ जगमगाएगी!
याद एक रोज बहुत, तुमको मेरी आएगी....

रूह का रिश्ता भी, पल भर में मिटाया तुमने!
अपने ही हाथ से घर अपना, जलाया तुमने!
तुम तो कहते थे के, रिश्ता है सात जन्मों का,
और कुछ लम्हों में, हर रिश्ता भुलाया तुमने!

भरी दुनिया में मुझे, तनहा तुमने छोड़ दिया!
बड़ी बेदर्दी से दिल, तुमने मेरा तोड़ दिया!

मेरे दिल की ये आह, तुमको भी तड़पाएगी!
याद एक रोज बहुत, तुमको मेरी आएगी....

प्यार में मैं नहीं, हम बनके जिया जाता है!
आंसू एक दूजे का हंसकर के पिया जाता है!
"देव" हैं प्यार में, कुर्बानियां बहुत सारी,
उनका इल्जाम तक, सर अपने लिया जाता है!

प्यार के बिन तो ये संसार बस पराया है!
कहाँ नफरत से भला. कुछ यहाँ मिल पाया है!

प्यार के बिन तो ये, दुनिया भी सिमट जाएगी!
याद एक रोज बहुत, तुमको मेरी आएगी!"

" यादें-किसी के चले जाने के बाद भी, उसकी मौजूदगी को हमारे दिल में जिन्दा रखती हैं! कोई व्यक्ति भले ही हमारे प्रेम, हमारे अपनत्व का अंत करके चला जाये, किन्तु यादें उसे भी एक रोज जाकर बीते लम्हों की झलक दिखाती हैं! "

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-०३.०१०.२०१२

सर्वाधिकार सुरक्षित!

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥चलें निखरने.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
चलो रात की बाहों में हम, सपनो को आगोश में भरने!
कुछ जाने, अपने लोगों से, प्यार भरी दो बातें करने!
उनके बाजु पर सर रखकर, सुननें कोई गीत-कहानी,
धवल चांदनी में चंदा की, आओ चलें हम लोग निखरने!"

....."शुभ-रात्रि".............चेतन रामकिशन "देव"...........