Sunday 30 September 2012


♥♥♥♥♥प्रीत(एक अमूल्य अनुभूति)♥♥♥♥♥♥♥♥
मन की कोमल अनुभूति में, जग गयी देखो प्रीत!
एक अनजाने शख्स को मैंने, बना लिया मनमीत!

फूलों की टहनी से लिखा, दिल पर उसका नाम!
छवि बहुत प्यारी है उसकी, जैसे हो गुलफ़ाम!
जब से मेरे मन जागी है, उसके प्रेम की सोच,
तब से देखो खिली खिली है, मेरी सुबहो-शाम!

उसकी बोली लगती जैसे, वीणा का संगीत!
मन की कोमल अनुभूति में, जग गयी देखो प्रीत!

उसके सपनों से रौशन है, मेरी तो हर रात!
मेरे सीने पर सर रखकर, करती है वो बात!
महक रहा उसकी खुशबु से, ये अपना घर आंगन,
उससे बतियाते बतियाते, हो जाती प्रभात!

उसकी सूरत दिखती पहले, लिखुब ग़ज़ल या गीत!
मन की कोमल अनुभूति में, जग गयी देखो प्रीत!

जिस दिन मेरा प्रेम निवेदन करेगी वो स्वीकार!
उस दिन देखो हो जायेगा, जीवन में श्रृंगार!
लेकिन कोई शर्त नहीं, वो बदले में दे प्रेम.
कभी प्रेम में हाँ होती है, और कभी इनकार!

"देव" प्रेम एहसास है जिसमे, नहीं हार, न जीत!
मन की कोमल अनुभूति में, जग गयी देखो प्रीत!"

" प्रीत-की अनुभूति जब भी कोमल मन में जगती है, तो जीवन सचमुच खिला खिला हो जाता! भले की कोई अनजाना व्यक्ति आकर ह्रदय में प्रेम की दस्तक दे, लेकिन वो फिर भी अपना लगता है! प्रेम की अनुभूति के ये शब्द बहुत कर्णप्रिय होते हैं, इन शब्दों में एक सरगम होती है! तो आइये इस सरगम में खो जायें!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-०१.१०.२०१२

"रचना अपनी अनदेखी प्रेम की अनुभूति समर्पित!"


सर्वाधिकार सुरक्षित!



♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥मन का रिश्ता.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
प्रेम से पूर्ण रखो ह्रदय को, द्वेष से मुक्त रखो तुम मन को!
मन से मन का रिश्ता जोड़ो, न देखो तुम केवल तन को!

धन, दौलत, सोने, चांदी से, न आंको अच्छाई किसी की,
धन-दौलत को धवल मानकर, नहीं स्याह समझो निर्धन को!

तुम मदिरा और नशे में बहकर, न मुंह मोड़ो कर्तव्यों से,
तुम बनकर के नशे के आदी, नहीं नाश करना यौवन को!

तुम जीवन के पदचिन्हों में, इतना आकर्षण तो भर दो,
लोग जो तुमसे प्रेरित होकर, करें सफल अपने जीवन को!

"देव" निराशा से तुम अपने, जीवन की हिम्मत न हारो,
एक दिन अपनी मेहनत से तुम, कर लोगो के स्पर्श गगन को!"

..."शुभ-दिन".............चेतन रामकिशन "देव".....................

Friday 28 September 2012


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥मानवता का दीप..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
अपने मन से मानवता का, दीप कभी न बुझने देना!
तुम शोषण के आगे अपना, शीश कभी न झुकने देना!

अपने शब्दों में मर्यादा और नैतिकता का पालन कर,
अपने शब्दों से श्रोता का, ह्रदय कभी न दुखने देना!

युद्द में देखो विजय-पराजय, किसी के हिस्से तो आनी है,
बिना लड़े ही अपने मन का, जोश कभी न चुकने देना!

मिथ्या के धुंधले मेघा में, सच का सूरज छुपेगा कब तक,
इसीलिए अपने हाथों से, सत्य कभी न बिकने देना!

जिसको पढ़कर देश में दंगा, हिंसा, द्वेष के अंकुर फूटें,
"देव" तुम अपने कलम को ऐसा, काव्य कभी न लिखने देना!"


रचनाकार-चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-२९.०९.२०१२





♥♥♥♥♥♥♥♥बदलाव की चकाचोंध..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
वो क्या जानें मेरे प्यार को, मेरी चाह को, मेरी आह को,
जिन लोगों ने मेरे दिल का शीशा चकनाचूर कर दिया!

उन लोगों को बस मतलब है, केवल रूपये और पैसे से,
जिसने देख गरीबी मेरी, खुद को मुझसे दूर कर लिया!

जो अक्सर दावे करता था, मुझ पर जान लुटाने के भी,
आज उसी इंसान ने मुझको, मरने पर मजबूर कर दिया!

आज भला वो किन हाथों से, मेरे ज़ख्म की शिफ़ा करेंगे,
गुजरे वक़्त में जिन लोगों ने, ज़ख्म मेरा नासूर कर दिया!

"देव" देखिए लोग आज के, आँखों पर पट्टी बांधे हैं,
गुंडों को भी नेता कहकर, इन सबने मशहूर कर दिया!"

................चेतन रामकिशन "देव"........................

Thursday 27 September 2012


♥♥♥♥♥♥♥♥♥जीवन की चौखट.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जीवन की चौखट पर देखो, नया दिवस फिर से आया!
बाग़ में कोयल गीत सुनाये, और सूरज भी मुस्काया!

मन में आशा की बूंदे भर, जीवन को ताजा करना है!
न निंदा, उपहास किसी का, हमको जीवन में करना है!
हमको जीवन में रहना है, सच्चा और सरल बनकर के,
सच्चाई के संग जीना है, सच्चाई के संग मरना है!

ओस की बूंदों से धरती में, नव अंकुर भी उग आया!
जीवन की चौखट पर देखो, नया दिवस फिर से आया!"
................चेतन रामकिशन "देव"........................

♥♥♥♥♥♥♥आज भगत के जन्मदिवस पर.♥♥♥♥♥♥♥♥♥
आज भगत के जन्मदिवस पर, इतना प्रण तो करना होगा!
शोषण से लड़ने की खातिर, जोश रगों में भरना होगा!

हम लोगों के मुर्दापन से, नहीं भगत सिंह खुश हो सकते!
न ही हम उनके सपनों के, भारत का अंकुर बो सकते!
चित्र पे फूल चढ़ाने भर से, नहीं पूर्ण होती है भक्ति,
भय का खून रगों में भरके, नही भगत पैदा हो सकते!

देश की खातिर जीवन-यापन, देश की खातिर मरना होगा!
आज भगत के जन्मदिवस पर, इतना प्रण तो करना होगा!"

......................चेतन रामकिशन "देव"...............................

♥♥♥♥♥♥♥♥♥उनके शहर की हवा ..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
उनके शहर की हवा भी मेरे, दिल को ज़ख़्मी कर जाती है!
मुझको उनकी याद दिलाकर, आंख में आंसू भर जाती है!

कई दफा इस हवा ने खुलकर, अपना दर्द बताना चाहा!
अपनी मज़बूरी का किस्सा, मुझको बहुत बताना चाहा!

सोच के पर उनकी बदनामी, कुछ कहने से डर जाती है!
उनके शहर की हवा भी मेरे, दिल को ज़ख़्मी कर जाती है!"

....................चेतन रामकिशन "देव".............................



♥♥♥♥♥♥♥♥♥उनके शहर की हवा ..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
उनके शहर की हवा भी मेरे, दिल को ज़ख़्मी कर जाती है!
मुझको उनकी याद दिलाकर, आंख में आंसू भर जाती है!

कई दफा इस हवा ने खुलकर, अपना दर्द बताना चाहा!
अपनी मज़बूरी का किस्सा, मुझको बहुत बताना चाहा!

सोच के पर उनकी बदनामी, कुछ कहने से डर जाती है!
उनके शहर की हवा भी मेरे, दिल को ज़ख़्मी कर जाती है!"

....................चेतन रामकिशन "देव".............................


Wednesday 26 September 2012



♥♥♥♥♥♥♥रहो अग्रसर जीवन पथ में.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
रहो अग्रसर जीवन पथ में, मुश्किल से घबराना त्यागो!
मात्र नयन ही मत खोलो तुम, मन की निद्रा से भी जागो!

अभिमान से दूर रहो तुम, हिंसा का प्रयोग न करना!
धन-दौलत आनी जानी है, उसका कभी वियोग न करना!
काम करो कुछ ऐसा जिससे, जग में चमके नाम तुम्हारा,
अपने पद और अधिकार का, भूले से दुरूपयोग न करना!

मात-पिता की सेवा के बिन, तुम मंदिर-मस्जिद न भागो!
रहो अग्रसर जीवन पथ में, मुश्किल से घबराना त्यागो!"

........."शुभ-दिन"........चेतन रामकिशन "देव"............

Tuesday 25 September 2012


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥जो मेरा अपना था .♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कल तक जो मेरा अपना था और मेरा हमसाया भी था!
मेरे दर्द में रोया था वो, और सुख में मुस्काया भी था!
जिसके कंधे पर सर रखकर, मैंने अक्सर अश्क बहाए,
जिसने मुझको बच्चा बनकर, छेड़ा और सताया भी था!

आज वही इनसान मेरे संग, गैरों सा बरताव कर रहा!
कल तक ख्वाब सजाने वाले, चूर हमारे ख्वाब कर रहा!

आज वही आंसू देता है, जिसने कभी हंसाया भी था!
कल तक जो मेरा अपना था और मेरा हमसाया भी था...

जो मुझसे अक्सर कहता था, अपना रिश्ता रूह तलक है!
तेरी सूरत में ए हमदम, दिखती रब की एक झलक है!
बिना तुम्हारे मेरा जीवन, है जीते जी मरने जैसा,
तेरे ही आगोश में हमदम, मेरी धरती और फलक है!

आज वही इन्सान देखिए, मेरे नाम से नफरत करता!
मेरी आँखों की घाटी में, वो आंसू की नदियाँ भरता!

वही ज़ख्म को दुखा रहा है, जिसने मरहम लगाया भी था!
कल तक जो मेरा अपना था और मेरा हमसाया भी था...

बदल गया वो उसका मन है, मुझको उससे नहीं शिकायत!
बेशक वो अब गम देता है, लेकिन याद है उसकी चाहत!
"देव" मोहब्बत में तो ऐसे, पल अक्सर आते रहते हैं,
कोई दिल को ज़ख़्मी करता, कोई दिल की करे हिफाजत!

मेरी नजरों में उसका कद, आज भी पहले ही जैसा है!
कल तक भी अपने जैसा था, आज भी अपने ही जैसा है!

वही लौटकर न आया क्यूँ, मैंने उसे बुलाया भी था!
कल तक जो मेरा अपना था और मेरा हमसाया भी था!"

" जीवन के पथ में अनेकों ऐसे जन भी मिलते हैं, जो बहुत अपना बताने के बाद भी, किसी को तनहा कर जाते हैं! जो परस्पर प्रेम के सम्बन्ध को, नष्ट/ जीर्ण/ प्रभावित कर जाते हैं, किन्तु उनकी याद फिर भी आती है, ये सोचकर की, उसने दुःख दिया तो क्या, कभी सुख भी उसी ने दिया था! हालाँकि ये वेदना के पल बहुत जानलेवा होते हैं, तो प्रयास किया जाये कि किसी को अपने कारन ये वेदना न मिले!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-२६.०९.२०१२ 





♥प्रेम आराधना♥
प्रेम आराधना,
प्रेम सदभावना!
प्रेम सुमन है,
प्रेम साधना!

प्रेम को वासना से नहीं जोड़िए
प्रेम के पथ को तुम न कभी छोड़िए!

प्रेम ह्रदय की,
मधुर भावना!
प्रेम आराधना,
प्रेम सदभावना!

प्रेम रिमझिम सितारों का आकाश है!
प्रेम दिव्य छटा, प्रेम विश्वास है!

प्रेम सबके हितों की,
सरल भावना!
प्रेम आराधना,
प्रेम सदभावना!"

"शुभ-दिन"
चेतन रामकिशन "देव"


Saturday 22 September 2012


♥♥♥♥♥♥नारी(एक दिव्य छवि..)♥♥♥♥♥♥
न ही नारी चरणपादुका, न कंटक, न शूल!
नारी है खिलते उपवन का, एक सुगन्धित फूल!
नारी वंदन की अधिकारी और पूजन के योग्य,
नारी के अपमान की देखो, कभी न करना भूल!

नारी दुःख-सुख की साथी है, नारी दे उत्साह!
नारी जीवन में करती है, खुशियों का प्रवाह!

नारी देती साथ भले ही, समय हो प्रतिकूल!
न ही नारी चरणपादुका, न कंटक, न शूल......

नारी का मन अभिमान से, रहता मीलों दूर!
नारी अपने प्रेम से करती, हम सबके दुख दूर!
हर रिश्ते के दायित्वों को, नारी करती पूर्ण,
धन-दौलत के मद में नारी, कभी न होती चूर!

नारी कोमल सरिता जैसी, एक निर्मल जलधार!
कानों में अमृत सा घोलें, नारी के उद्गार!

नारी धवला किरणों जैसी, न मिटटी, न धूल!
न ही नारी चरणपादुका, न कंटक, न शूल......

नारी भी जीवित प्राणी है, नहीं है वो पाषाण!
हमे हृदय से करना होगा, नारी का सम्मान!
"देव" बिना नारी के देखो, जग है रंग-विहीन,
घर, दम्पत्ति और जीवन की, नारी है मुस्कान!

नारी के इस दिव्य रूप को, शत-शत है प्रणाम!
हरियाली सी मनमोहक है, नारी जिसका नाम!

नारी की छाया से होते, दुख के क्षण अनुकूल!
न ही नारी चरणपादुका, न कंटक, न शूल!"

"नारी-जिसके बिना संसार की कल्पना ही नहीं की जा सकती! जो जन्म-दायित्री है तो वहीँ जीवन पथ में पग पग पर कभी पत्नी, कभी बहिन, कभी बेटी बनकर, हमे अपनत्व देती है! नारी की छवि वन्दनीय है, नारी नहीं चाहती कि उसकी देवी बनाकर आराधना की जाये, नारी तो केवल समानता का सम्मान चाहती है! आइये दिव्य स्वरूप नारी का सम्मान करें.................."

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-२३.०९.२०१२



♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥कलम की शक्ति....♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कलम की शक्ति, शब्द संयोजन और भावना कम न करना!
अपने लेखन और चिंतन से, तुम मिथ्या का तम न करना!

सुन्दर और सच्चे शब्दों से, मानवता के दीप जलाना!
जात, धर्म और पूर्वाग्रह से, ऊपर उठकर कलम चलाना!

तुम शब्दों को दूषित करके, मानवता को नम न करना!
कलम की शक्ति, शब्द संयोजन और भावना कम न करना!"

.......................चेतन रामकिशन "देव"..............................

Friday 21 September 2012




♥♥♥♥♥♥लक्ष्य..♥♥♥♥♥♥♥
अपनी आंखे रखो लक्ष्य पर, 
लक्ष्य को धूमिल होने न दो!
आशा और साहस को अपने, 
जीवन से तुम खोने न दो!

हार गए तो क्या घबराना,
क्यूँ आँखों से नीर बहाना!
नजर लक्ष्य से हटने न दो,
फिर से अपने कदम बढ़ाना!

अपने मन की आशाओं को,
हार के डर से सोने न दो!
अपनी आंखे रखो लक्ष्य पर,
लक्ष्य को धूमिल होने न दो!

नहीं गिराकर कभी किसी को,
तुम अपना स्थान बनाओ!
स्वच्छ भावना मन में लेकर,
तुम मेहनत के दीप जलाओ!

अपने कारण "देव" किसी की,
आँखों को तुम रोने न दो!
अपनी आंखे रखो लक्ष्य पर,
लक्ष्य को धूमिल होने न दो!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-२२.०९.२०१२

रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित!


Wednesday 19 September 2012




♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥हर्ष का वितरण....♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
हर्ष का वितरण करना होगा, सच का विचरण करना होगा!
प्रेम को उन्नत करने हेतु,  हमे समर्पण करना होगा!

नैतिकता के संवाहक बन,  मर्यादा का पालन करके,
अपने जीवन में लक्ष्यों को, चयनित और निर्धारण करके!
हम सबको जीवन के पथ में, शुद्ध आचरण करना होगा.....

नहीं पराजय से भय खाकर,  हमको भूमिगत होना है!
हमे सदा अपने जीवन में, साहस का अंकुर बोना है!
मन में भरके विजय की आशा, पुन: अवतरण करना होगा!"
........"शुभ-दिन"........चेतन रामकिशन "देव".............


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥आँखों की बरसात..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
रिमझिम रिमझिम बारिश जैसी, आँखों से बरसात हुई !
गम के साये में दिन निकला, और गम में ही रात हुई!

कल तो जो मेरी चाहत की, अम्बर से तुलना करता था,
आज उसी के हाथों देखो, मेरे प्यार की मात हुई!

जिधर भी देखो आज उधर ही, नफरत का धुआं उड़ता है,
इंसानों की कौम भी देखो, खुंखारों की जात हुई!

जो मिलने का वादा करके, वक़्त से पहले आ जाता था,
आज न जाने किस वजह से, उसको बड़ी अनात हुई!

"देव" जो मेरी तस्वीरों को, सिरहाने रखकर सोता था,
आज उसी इंसान से मानो, गैरों जैसी बात हुई!"

"अनात-देरी"

...............चेतन रामकिशन "देव"..................

Tuesday 18 September 2012


♥♥♥♥♥♥शोषण से संघर्ष(एक आह्वान)♥♥♥♥♥♥♥♥♥
अपने मन की शक्ति को तुम, मन से बाहर लाना सीखो!
अपने अधिकारों की खातिर, तुम आवाज उठाना सीखो!
जीवन में शोषण के आगे, तुम नतमस्तक न हो जाना,
शोषण करने वालों की तुम, ईंट से ईंट बजाना सीखो!

कमजोरी के भाव जगाकर, जीवन यापन क्यूँ करते हो!
मौत तो एक दिन आनी ही है, तो मरने से क्यूँ डरते हो!

वीरों जैसे बनकर के तुम, मौत को गले लगाना सीखो!
अपने मन की शक्ति को, तुम मन से बाहर लाना सीखो...

सच को सच कहने की आदत और झूठ को झूठ कहो तुम!
शोषण से संघर्ष करो, यूँ आँख मूंदकर नहीं सहो तुम!
हार-जीत दोनों मिलती हैं, रणभूमि का यही नियम है,
नहीं हारकर हिम्मत छोड़ो, मुर्दा बनकर नहीं रहो तुम!

रणभूमि में हार क्यूँ पाई, इसका चिंतन करना होगा!
और दुबारा उन कमियों को, युद्ध से बाहर करना होगा!

इक दिन जीत मिलेगी हमको, ये खुद को समझाना सीखो!
अपने मन की शक्ति को तुम, मन से बाहर लाना सीखो...

जीवन में जो भय खाते हैं, वो इतिहास नहीं रच पाते!
वो जीते हैं मुर्दों जैसे और मुर्दा बनकर मर जाते!
"देव" न केवल तन से हमको, मन से भी जिंदा रहना है,
मन से मृतक होने वाले, कोई साहस न कर पाते!

इसी तरह चुपचाप रहे तो, शोषण-मुक्ति नही मिलेगी!
अंधकार ही रहेगा पथ में, कोई दीपिका नहीं जलेगी!

अपने मन को तुम निद्रा से, अब तो जरा जगाना सीखो!
अपने मन की शक्ति को, तुम मन से बाहर लाना सीखो!"

"शोषण- से भय खाकर, अपने आप को जीते जी मुर्दा बनाकर, अपने को कमजोर मानकर, जीवन में कोई युद्ध नहीं जीता जा सकता! जीवन में यदि शोषण से संग्राम करना है, तो अपने आप को तन से नहीं, मन से भी जिन्दा रखना होगा! तो आइये चिंतन करें......................."

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-१९.०९.२०१२

सर्वाधिकार सुरक्षित..
रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित!

♥♥♥♥♥♥♥♥मन की चहल-पहल...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मन की चहल-पहल खोई है, खुशियों की दुनिया रोई है!
न जाने क्यूँ मेरी किस्मत, लम्बे अरसे से सोई है!

जो मेरे जीवन को अक्सर, अमृत से सिंचित करते थे,
आज उन्ही अपनों ने देखो, नफरत की क्यारी बोई है!

आज तो अपने ही अपनों का, गले काटने पर आतुर हैं,
आज दिलों से ने जाने क्यूँ, अपनायत की शै खोई है!

ऐसा करने वाले बिल्कुल, रोयेंगे और पछतायेंगे,
जिन लोगों ने मजलूमों के, खून से ये धरती धोई है!

"देव" देखिए एक दिन वो भी, मेरी चाहत को तरसेंगे,
आज वो जिनकी वजह से मेरी, रूहानी चाहत रोई है!"

.............,........चेतन रामकिशन "देव"...................."

♥♥♥♥♥♥♥♥मन की चहल-पहल...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मन की चहल-पहल खोई है, खुशियों की दुनिया रोई है!
न जाने क्यूँ मेरी किस्मत, लम्बे अरसे से सोई है!

जो मेरे जीवन को अक्सर, अमृत से सिंचित करते थे,
आज उन्ही अपनों ने देखो, नफरत की क्यारी बोई है!

आज तो अपने ही, अपनों का, गले काटने पर आतुर हैं,
आज दिलों से ने जाने क्यूँ, अपनायत की शै खोई है!

ऐसा करने वाले बिल्कुल, रोयेंगे और पछतायेंगे,
जिन लोगों ने मजलूमों के, खून से ये धरती धोई है!

"देव" देखिए एक दिन वो भी, मेरी चाहत को तरसेंगे,
आज वो जिनकी वजह से मेरी, रूहानी चाहत रोई है!"

.....,........चेतन रामकिशन "देव"...................."

Monday 17 September 2012


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥दिल की चुभन...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
दिल में एक चुभन रहती है, मन में एक अगन रहती है!
आँखों में आंसू की लड़ियाँ, जीवन में उलझन रहती है!

ये सच है कुछ दिन पहले तक, नयन में अश्रुधार नहीं थी!
न ही दिल टुकड़े टुकड़े था, और गमों की मार नहीं थी!
मैं भी हँसता था जी भर के, मैं भी गाता मुस्काता था,
पानी चाही जीत हमेशा और चिंतन में हार नहीं थी!

लेकिन ये बदलाव देखिए, तब से जीवन में आया है!
जब से मेरे अपनों ने ही, मेरे दिल को ठुकराया है!
जो खुद को कहते थे अक्सर, मेरे दुख का सच्चा साथी,
आज उन्ही के दुख से देखो, नीर नयन में भर आया है!

यही सोचकर इस जीवन की, ये बस्ती निर्जन रहती है!
दिल में एक चुभन रहती है, मन में एक अगन रहती है!"


.....................चेतन रामकिशन "देव"......................

Saturday 15 September 2012

♥प्रेम की जल-तरंग.♥


♥♥♥♥♥♥♥प्रेम की जल-तरंग.♥♥♥♥♥♥♥♥♥
चलो सखी हम दूर जहाँ पर, करे न कोई तंग!
एक दूजे के साथ रहें हम, सात जनम तक संग!
सपनों की छोटी सी दुनिया, आओ करैं तैयार,
आसमान के इन्द्रधनुष से, भर दें उसमें रंग!

धन-दौलत से भी बढ़कर है, सखी जहाँ में प्रीत!
इसी प्रीत की छाँव में हमको, रहना है मनमीत!

प्रेम की अनुभूति पाकर के, मन में उठी तरंग!
चलो सखी हम दूर जहाँ पर, करे न कोई तंग....

सपनों की ये दुनिया देखो, होगी जब तैयार!
आसमान से भी बरसेगी, प्रेम की मधुर फुहार!
भ्रमर का गुंजन होगा और कोयल का संगीत,
हरियाली के हाथों होगा, जीवन का श्रंगार!

सखी तुम्हारे साथ लिखेंगे, हम भी प्रेम के गीत!
सखी तुम्हारे साथ मिलेगी, जीवन पथ में जीत!

सखी तुम्हारे प्रेम ने बदला, इस जीवन का ढंग!
चलो सखी हम दूर जहाँ पर, करे न कोई तंग....

चन्द्रकिरण जैसे उज्जवल है, सखी प्रेम का नाम!
इसी प्रेम के पथ पर चलकर, मिलता है आराम!
प्रेम जहाँ होता है उस घर, होते नहीं विवाद,
प्रेम नहीं बाजार की वस्तु, नहीं है इसका दाम!

प्रेम तो मन की चंचलता है, प्रेम सुगन्धित फूल!
"देव" प्रेम चुनता है देखो, जीवन पथ से शूल!

प्रेम की शक्ति से मिलती है, मन को एक उमंग!
चलो सखी हम दूर जहाँ पर, करे न कोई तंग!"


"प्रेम-का अर्थ बड़ा व्यापक है! विभिन स्वरूप हैं प्रेम के,
जिस सम्बन्ध में वो स्वरूप, निहित होता है, वो अपनत्व देता है! मार्गदर्शन करता है,
दुःख दर्द बांटता है और जीवन पथ को सरल और सदभाव पूर्ण बनाता है! तो आइये प्रेम का सम्मान करें !"

सर्वाधिकार सुरक्षित!
ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित!

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-१६.०९.२०१२ 


♥♥♥♥महंगाई.♥♥♥♥♥
आसमान छूती महंगाई!
बेकारी ने ली अंगडाई!
आम आदमी की आँखों में,
आंसू की बदली घिर आई!

देश की सत्ता अंधी होकर,
जनता का शोषण करती है!
घोटाले और लूटपाट कर, 
बस अपना पोषण करती है!

राज धर्म का पालन करना,
भूल गए हैं सत्ताधारी!
भूल गए निर्धन की पीड़ा,
भूल गए उनकी लाचारी!

आम आदमी के घर देखो,
दर्द भरी मायूसी छाई!
आसमान छूती महंगाई!
बेकारी ने ली अंगडाई!"

.........चेतन
रामकिशन "देव".......

Friday 14 September 2012

♥जीते जी..♥


♥♥♥♥जीते जी..♥♥♥♥
जीते जी मरने की बातें!
मुश्किल से डरने की बातें!
न जाने क्यूँ इस जीवन को,
तहस नहस करने की बातें!

क्या रखा है इन बातों में, इन बातों से क्या मिलना है!
जब अंकुर को सींचोगे तुम, तभी तो आगे गुल खिलना है!
ये जीवन है और जीवन का सुख-दुख से है गहरा नाता,
पर हमको जिंदादिल रहकर, जीवन में आगे चलना है!

क्यूँ आंसू से भिगो रहे दिन,
क्यूँ गीली रखते हो रातें!
जीते जी मरने की बातें!
मुश्किल से डरने की बातें!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-१५.०९.२०१२

Thursday 13 September 2012

♥♥♥♥♥♥हिंदी एक महीप...♥♥♥♥♥♥♥♥
भाषायें तो बहुत हैं किन्तु, हिंदी एक महीप!
आओ जलायें सारे जग में, हम हिंदी का दीप!

गलत नहीं इस जीवन में, बहुभाषा का ज्ञान!
किन्तु अपने हाथ से न हो, हिंदी का अपमान
हिंदी के आंचल में सिमटी, भारत की संस्कृति,
देश के माथे की बिंदी का, आओ करें सम्मान!

जिससे मोती स्फुट होता, हिंदी है वो सीप!

भाषायें तो बहुत हैं किन्तु, हिंदी एक महीप!

बड़ी मधुरता स्फुट करता, हिंदी का प्रयोग!
हिंदी को न मानो मित्रों, पिछड़ेपन का रोग!
अन्य बोलियों से ये हिंदी, न रखती है बैर,
हिंदी भी प्रकट करती है, प्रेम तत्व का योग!

शब्दकोष को उज्जवल करती, हिंदी बन प्रदीप!
भाषायें तो बहुत हैं किन्तु, हिंदी एक महीप!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-१४ सितम्बर २०१२,हिंदी दिवस!

♥♥♥♥♥♥♥♥♥तुम्हारी जरुरत♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सूनी घर की चाहरदिवारी, सूना घर का आंगन!
सूख गया तुलसी का पौधा, टूट गया है दर्पण!
कमरे की सब तस्वीरें भी, चुप चुप सी रहती हैं,
रंग पड़ गए फीके उनके, सिमट गया है योवन !

मैं अपना क्या हाल बताऊ, जान जरा सी नहीं बदन में!
दिन कटता है पल पल तन्हा, रात कट रही करुण रुदन में!

खिड़की के परदे खिसका कर, हाथ को चेहरे तले लगाकर,
अपनी दोनों अंखियो से मैं, अश्कों की धारा बरसा कर!

पल-पल, लम्हा, मिनट-मिनट, तेरा  इंतजार करता हूँ!
पैमाने से नप ना पाय, तुम्हें इतना प्यार करता हूँ………

बिन तेरे ये सुबह अधूरी, तुम बिन है ये शाम अधूरी!
कौनसी ऐसी बात पे तुमने, कर डाली मीलों सी दूरी!
तुम कहती थी जीते जी मैं, साथ नहीं छोडूंगी पल को,
कौन सी ऐसी बात हुयी जो, जाना इतना बना जरुरी!

मैं अपना क्या हाल बताऊ, जान जरा सी नहीं बदन में!
गर्दन रखकर सिरहाने पे, ताकता रहता दूर गगन में!

चेहरे पर जुल्फें बिखराकर, दूर दूर तक नयन घुमाकर!
पैर में छाले पड़ जाने पर, चरण पादुका हाथ उठाकर!

पल-पल, लम्हा, मिनट-मिनट, तेरा  इंतजार करता हूँ!
पैमानों से नप ना पाय, तुम्हें इतना प्यार करता हूँ………



"इंतजार की एक सीमा होती है, जब इंतजार हद से ज्यादा बढ़ जाता है और द्वितीय पक्ष, प्रथम पक्ष की भावनाओं को नहीं समझते हुए दूर रहता है, तब निश्चित रूप से वेदना होती है!

यही वेदना उकेरने का प्रयास-----चेतन रामकिशन (देव ) "

Wednesday 12 September 2012

♥♥आशा की मुस्कान♥♥
आशा की मुस्कान सजाकर,
अपने मन से तिमिर मिटाकर,
तोड़के बंधन जात धर्म के,
एक दूजे को गले लगाकर!

इक मानव जब इस नीति पर, अपना जीवन यापन करता!
मानवता के पाठ का वो जब, दुनिया में अध्यापन करता!

तब तब देखो मानवता का,
स्तर फिर से बढ़ जाता है!
संबंधों के आभूषण पर,
रंग नेह का चढ़ जाता है!

हिंसा की दीवार गिराकर,
लालच का हर दीप बुझाकर,
आओ चलो जीते हैं जीवन,
मानवता के फूल खिलाकर!"


चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-१२.०९.२०१२ 

Tuesday 11 September 2012

♥माँ की छवि महान..♥


♥♥♥♥♥♥माँ की छवि महान..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
माँ की ममता फूलों जैसी, माँ की छवि महान!
माँ की सूरत में दिखता है, धरती पर भगवान!
जब भी माँ के हाथ से मिलता, मस्तक को स्पर्श,
मिलता है साहस जीवन को, खिलती है मुस्कान!

माँ तो माँ है, माँ का कोई होता नहीं विकल्प!
माँ करती है संतानों का, जीवन कायाकल्प!

माँ अपनी संतान का हर पल, करती है उत्थान!
माँ की ममता फूलों जैसी, माँ की छवि महान....

माँ बच्चों का पालन करती, देती उन्हें दुलार!
माँ बच्चों को देती अपने, दूध की मीठी धार!
माँ बच्चों को देती हर पल सच्चाई की सीख,
माँ बच्चों के जीवन पथ से, चुन लेती है खार!

माँ बच्चों के हर्ष की खातिर, भूले अपना दर्द!
माँ से बढ़कर नहीं है कोई, दुनिया में हमदर्द!

माँ प्रथम शिक्षक बनकर के, हमको देती ज्ञान!
माँ की ममता फूलों जैसी, माँ की छवि महान...

माँ की इस अनमोल छवि को, है शत शत प्रणाम!
मधुर से भी मधुकर लगता है, माँ का प्यारा नाम!
हमको बिना सुलाए रहती, माँ निंदिया से दूर,
माँ बच्चों की खातिर भूले, अपने सुख, आराम!

माँ की एक दुआ से बनते,"देव" हजारों काज!
माँ का नाम सदा पावन है, कल को चाहें आज!

हिंसा, लोभ, कपट से रहता, माँ का दिल अनजान!
माँ की ममता फूलों जैसी, माँ की छवि महान!"

"
माँ-एक ऐसी छवि, जिसका कोई विकल्प नहीं! नारी त्याग का पर्याय है, किन्तु उस नारी में, माँ का रूप सबसे ज्यादा वन्दनीय और त्यागी है! माँ, अपनी संतान के हित के लिए, अपने जीवन के एक एक पल को समर्पित कर देती है! माँ को नमन!"

अपनी माँ प्रेमलता जी को समर्पित रचना!

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-११.०९.२०१२

रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित!