Monday 26 September 2011

♥♥♥♥♥...नहीं देश से प्यार ♥

"♥♥♥♥♥♥♥♥...नहीं देश से प्यार ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
हमको अपने हित से मतलब, नहीं देश से प्यार |
हमको मतलब नहीं देश की कैसी हो सरकार |
हमको क्या ये देश बिके या हो जाये ये राख,
इसी सोच से इस भारत के टुकड़े हुए हजार |

देश प्रेम का समझ न पाए हम जीवन में अर्थ |
ऐसा जीवन तो निष्फल है और साँस भी व्यर्थ |

माँ जननी के करुण रुदन की हम न सुने पुकार |
हमको अपने हित से मतलब, नहीं देश से प्यार.....

जात धर्म के नाम पे करते हम अपना मतदान |
खुद की झोली भरे भले ही देश का हो नुकसान |
अपनेपन की सोच नहीं है समरसता बेजान,
हम अब खुद ही बेच रहे हैं अपना हिंदुस्तान |

माँ जननी का ह्रदय दुखाकर हम गाते हैं गीत |
अब तो मन में नहीं रही है माँ जननी से प्रीत |

देश का नक्शा नहीं नयन में, याद नहीं आकार |
हमको अपने हित से मतलब, नहीं देश से प्यार...

प्रेम जगाओ माँ जननी से, नहीं करो अपमान |
देश की इज्जत होती ऐसी, जैसे माँ का मान |
"देव" यदि न बदलोगे तुम अपने मन की सोच,
मिट जायगी कुछ वर्षों में, देश की हर पहचान |

देश को सबसे ऊपर रखकर, लो मन में संकल्प |
माँ जननी सा नहीं दूसरा, न ही कोई विकल्प |

देश प्रेम के मधुर भाव की, हरदम करें फुहार |
हमको अपने हित से मतलब, नहीं देश से प्यार |"

"सोचिये हम कहाँ हैं? क्या देश के प्रति हमारा कोई उत्तरदायित्व नहीं है? क्या हम केवल अपने हित साधने के लिए इस पवित्र भूमि पर जन्मे हैं | चिंतन तो करना होगा, वरना ये देश आने वाले कुछ समय में फिर से देशी और विदेशी ताक़तों का गुलाम होगा |- चेतन रामकिशन "देव"

Friday 23 September 2011

♥ प्रेम के टूटे तार ♥♥♥♥

"♥♥♥♥♥♥♥♥ प्रेम के टूटे तार ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुम बिन अब तो हुआ अधूरा मेरा घर संसार!
तोड़ दिए हैं जब से तुमने प्रेम के कोमल तार!

कहाँ गए वो स्नेह, मधुरुता, कहाँ गयीं सौगंध!
कहाँ गया वो प्रेम का दर्पण, कहाँ गया सम्बन्ध!
एक पल ही में तुमने कैसे प्रेम के सोखे प्राण,
तुमने मिश्रित की वायु में विरहा की क्यूँ गंध!

तुम बिन न ही जल भाता है न भाता आहार!
तोड़ दिए हैं जब से तुमने प्रेम के कोमल तार........

तुम बिन मन की चंचलता के सुप्त हुए हैं भाव!
प्रेम की इस पीड़ा ने मन को किये हैं प्रेषित घाव!
अब तक उत्तर खोज रहा हूँ, हूँ किन्तु अनभिज्ञ,
किस कारण से तुमने खुद में ढाले थे बदलाव!

यदि कमी थी हम में कोई, कहते तो एक बार!
तोड़ दिए हैं जब से तुमने प्रेम के कोमल तार........

देह के नाता टूट गया है, मन में किन्तु वास!
एक दिन मेरी कमी का तुमको भी होगा आभास!
प्रेम की पीड़ा की व्याकुलता पल पल देती शूल,
इस पीड़ा में जीवन धारा भी न आती रास!

विजय सिखाकर ही तुम हमको क्यूँ दे बैठे हार!
तोड़ दिए हैं जब से तुमने प्रेम के कोमल तार!"



"प्रेम, में मिलने वाली पीड़ा बहुत घातक होती है! इससे व्यक्ति के आत्मविश्वास, लक्ष्य और गतिशीलता पर भी प्रभाव पड़ता है! तो आइये प्रयास करें कि किसी को प्रेम की पीड़ा न दें!-चेतन रामकिशन "देव"
















Sunday 11 September 2011

♥ पश्चिम का तूफान ♥♥ ♥ ♥ ♥



" ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ पश्चिम का तूफान   ♥♥ ♥ ♥ ♥ ♥  
देश की लाज को मिटा रहा है, पश्चिम का तूफान!
लड़की सर पे आंचल रखना, समझ रही अपमान!
लड़कों ने भी नैतिकता का बंद किया अध्याय,
हवा में उड़ना चाहते जबकि आती नहीं उड़ान!

पश्चिम से हम महज सीखते नंगेपन की सोच!
उनके ज्ञान को अपनाने में करते पर संकोच!

उनको बस भाती है "ब्रिटनी", भूल "मदर" का नाम!
देश की लाज को मिटा रहा है, पश्चिम का तूफान......

नहीं रहें हैं याद "डार्विन" न ही "जेम्स" की याद!
भूल गए हैं "रदरफोर्ड" को, याद नहीं संवाद!
इन लोगों से न हम पाते ज्ञान की निर्मल धार,
क्यूँ फिर देश की संस्कृति को हम करते बर्बाद!

दोहरेपन की सोच बनी है, मन में पलें विकार!
नंगेपन को अपनाते हैं, ज्ञान का कार दुत्कार!

इन लोगों के भूल गए हैं हम तो कर्म महान!
देश की लाज को मिटा रहा है, पश्चिम का तूफान.....

हाँ ये सच है नहीं है सारा इन लोगों को दोष!
मात पिता भी कर्तव्यों का नहीं रख रहे होश!
बैठके अपने लाल के आगे पिता करे मधपान,
बेटी नैतिकता त्यागे पर नहीं है माँ को रोष!

 बेटे को "न्यूटन" बनने का नहीं कराते बोध!
"मैडम क्यूरी" बने जो बेटी नहीं हैं वो उद्बोध!

मात पिता की सीख सिखाती इनको झूठी शान!
देश की लाज को मिटा रहा है, पश्चिम का तूफान!"

"दोहरी सोच क्यूँ? बस अपसंस्कृति ही ग्रहण की जाती है! पर वहां के महान शिक्षा विदों से कोई ज्ञान नहीं! आखिर क्यूँ, कम वस्त्र पहनने या व्यसन करने या झूठी शान से,
सम्रद्ध इतिहास का निर्माण तो नहीं हो सकता, हाँ ये हो सकता है कि," आपका नाम काजल से जरुर लिखा जा सकता है! आइये चिंतन करें- चेतन रामकिशन "देव"




Wednesday 7 September 2011

♥ ..टूट रहे सम्बन्ध ♥ ♥

""♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ..टूट रहे सम्बन्ध ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥
अपने भी अब बदल रहें हैं टूट रहे सम्बन्ध!
अब अपनों के खून से आती बारूदों की गंध!
कोई सताता अपनी माँ को, भाई कहीं दुश्मन,
एक ही पल में टूट रहें हैं जन्मों के अनुबंध!

कोई पति अपनी पत्नी पर करता अत्याचार!
कहीं कोई पत्नी भी करती पत्थर सा व्यवहार!

एक पल में ही जला रहे वो सात वचन गठबन्ध!
अपने भी अब बदल रहें हैं टूट रहे सम्बन्ध.......

हुए संकुचित घर भी अपने, और अपने परिवार!
भाई ने भाई के बीच लगाई, नफरत की दीवार!
अब बच्चे भी त्याग रहें हैं मात पिता का प्यार,
अब खाली खंडहर दिखते हैं, नहीं रहे घर-द्वार!

जगह जगह हम करते हैं अब अपनों का अपमान!
ना ही सेवा मात पिता की , ना उनका सम्मान!

उनकी भूख मिटाने का भी भूल गए प्रबंध!
अपने भी अब बदल रहें हैं टूट रहे सम्बन्ध.......

अपनों का सम्मान करो तुम, देकर उनको प्यार!
अपनों के दिल में ना घोंपो, ना खंजर तलवार!
अपनों की पीड़ा बांटो तुम बनकर के हमदर्द,
जो बंटवारा करे दिलों का, गिरा दो वो दीवार!

अपनेपन की महक से महके अपना ये घरवार!
कभी ना खंडित करना लोगों तुम अपनों का प्यार!

स्वार्थ से अपनी आँखों को तुम, करो ना ऐसे अंध!
अपने भी अब बदल रहें हैं टूट रहे सम्बन्ध"


"आइये संबंधो को जोड़ने का, कायम रखने का प्रयास करैं, जब आपस में प्रेम होगा तभी हम समाज से, देश से प्रेम कर सकेंगे! इसके लिए समर्पण और नम्रता अपनानी होगी! आइये चिंतन करें, इन टूटते संबंधों पर, क्या पता अगला टूटता सम्बन्ध हम सब में से ही हो-चेतन रामकिशन "देव"



Tuesday 6 September 2011

♥ तेरा प्यार ♥

        "♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ तेरा प्यार ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥
        ख़ुशी बहुत होती है हमदम पाकर तेरा प्यार!
        नील गगन में उड़ता हूँ मैं अब तो पंख पसार!
        धूप हो कितनी तेज मगर अब जलन नहीं होती,
        प्रेम तेरा गिरता है मुझपर बनकर मधुर फुहार!

        जब से तूने मुझे लगाया प्यार का सुन्दर रंग!
        जीवन में आयीं हैं खुशियाँ पाकर तेरा संग!

        तूने मेरे गिरते पग को दिया है एक आधार!
        ख़ुशी बहुत होती है हमदम पाकर तेरा प्यार....

        हमदम तेरे प्रेम से सीखा सच्चाई का ज्ञान!
        तेरे प्रेम में भूल गया हूँ क्या होता अभिमान!
        तुमने उर्जा दी है मन को, होठों पे मुस्कान,
        प्रेम बिना मानव सूना है, आज लिया ये जान!

        तेरा प्यार है गंगाजल सा, पावन और पुनीत!
        साथ हमेशा रहना साथी बनकर मेरे मीत!

        भूख से व्याकुल होता हूँ तो देती तू आहार!
        ख़ुशी बहुत होती है हमदम पाकर तेरा प्यार....

        प्रेम जगाये मन मंदिर में मानवता के भाव!
        प्रेम दवा से पहले भरता, हर एक गहरा घाव!
        प्रेम तुम्हारा पाकर के है "देव" बड़ा हर्षित,
        तुमने मुझको सरल बनाया देकर के सदभाव!

        तेरे प्यार की बजती मेरे मन में मधुर तरंग!
        तेरे प्यार में भूल गया हूँ नीरसता के ढंग!

        महक रहा तेरी खुश्बू से, मेरा ये घरवार!
        ख़ुशी बहुत होती है हमदम पाकर तेरा प्यार!"

"जहाँ शुद्ध प्रेम होता है, वहां अपनत्व होता है! उर्जा होती है, साहस होता है, उड़ने को होंसला होता है, स्वाभिमान, कोमलता, सदभाव होता है! तो आइये इन सब को अपनाने के लिए शुद्ध प्रेम करैं- चेतन रामकिशन "देव"