Friday 1 March 2013

♥रूह के आंसू..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥रूह के आंसू..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
आँखों में नमी, दिल में दुखन होने लगी है!
गम इतना है के, रूह मेरी रोने लगी है!

मरते हुए इन्सां को, बचाता नहीं कोई, 
इंसानियत भी लगता है, के सोने लगी है!

बारूद से धरती की कोख, भरने लगे सब,
मिट्टी भी अपनी गंध को, अब खोने लगी है!

आँखों में अँधेरा है, हाथ कांपने लगे,
लगता है उम्र मेरी, खत्म होने लगी है!

एक कौम को गद्दार यहाँ, "देव" क्यूँ कहो,
हर कौम ही अब खून से, मुंह धोने लगी है!"

............चेतन रामकिशन "देव".............
दिनांक-०१.०३.२०१३



4 comments:

अरुन अनन्त said...

आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (02-03-2013) के चर्चा मंच 1172 पर भी होगी. सूचनार्थ

Unknown said...

बहुत सुन्दर भाव से सज्जित आपकी यह रचना श्रीमान |शुभकामनाएं आपको

दिल की आवाज़ said...

एक कौम को गद्दार यहाँ, "देव" क्यूँ कहो,
हर कौम ही अब खून से, मुंह धोने लगी है!"
बहुत ही सत्य एवं बढ़िया ग़ज़ल ...

अज़ीज़ जौनपुरी said...

सत्य का दर्शन है यह ग़ज़ल